गोविन्द ठाकुर
बीजेपी के सहियोगी और संभावित सहियोगी दलों को सरकार में शामिल होने की छटपटाहट जोर पकड़ रहा है। शिवसेना से अलग शिंदे गुट, चिराग पासवान और संभावित आकाली दल को लेकर संभावनायें टटोली जा रही है। चिराग पासवान ने इस बीच प्रंधानमंत्री से मिले उससे पहले दुसरे बड़े नेता से मिले तो यह बात जग जाहिर हो गया कि चिराग मोदीजी के हनुमान बने हुए हैं और वे जल्द पारितोषिक लेना चाह रहे हैं क्योकि बिहार के उपचुनाव में चिराग ने अपने मंत्री चाचा पशुपति पारस से बढकर बीजेपी को हेल्प किया था जिसके कारण बीजेपी को थोड़ा हीमार्जन सही मगर जीत मिली थी। माना जा रहा है कि बीजेपी पारस के साथ-साथ चिराग को भी साथ रखना चाहती है। नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी रहे चिराग को साथ रखने ही भलाई है वैसे भी कोई दुसरा और नहीं है ऐसे में चिराग को मंत्री पद का आस लगाना कोई गलती नहीं है। हां, एक अरचन जरुर है कि चिराग मात्र अकेले सांसद हैं बांकी सभी पांच सांसद पशुपति पारस के साथ हैं जो पहले से ही मंत्री हैं ऐसे में चिराग को कैसे मंत्री बना सकते हैं…मगर जिसे खुद मोदी और अमित शाह की कमान पर बैठे हों उसे मंत्री बनने के खुशफहमी पालने में कोई गलती नहीं है।
अब बात शिंदे गुट की– तो शिंददे गुट काफी समय से परेशान चल रहे हैं, खुद शिंददे बीजेपी बड़े नेताओं से गुजारिश कर चुके हैं कि उनके सांसदों को केंद्र सरकार में जगह दी जाए। माना जा रहा हैकि शिंददे ने शिवसेना से 12 सांसदों को तोड़ा था जिसे मंत्री और सरकार में जगह देने की बात कही थी। मगर अभी तक ऐसा नहीं होने से उन सांसदों में निराशा छा रही है, गाहे बगाहे कह भी रहे हैं कि वह खा-मखाह में बदनाम भी हुए और हाथ कुछ भी नहीं लगा। इसी तरह महाराष्टृ सरकार में भी आधीजगह खाली पड़ी है मगर मंत्री नहीं बनाये जा रहे हैं जिससे विधायकों में निराशा है और वे कभी भी उधव गुट के हितैषी हो सकते हैं । कई विधायकों ने तो यहां तक कहा है कि उनका धीरज जवाब दे रहा है। दुसरी ओर उन्हें अगली चुनाव में जनता का समना भी करनी है तो मंत्री बनकर काम करना जरुरी है बरना हार निश्चित है।
संभावित सहियोगी– अकाली दल बीजेपी की सबसे पुराने साथी रहे हैं अभी 2020 तक वे सरकार और एनडिए के सदस्य रहे हैं। मगर किसान आंदोलन में खुद की हो रही बदनामी से बचने के लिए अकाली दल की मंत्री हरसिमरत कौर ने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। मगर 2022 के विधानसभा चुनाव ने दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि वे अलग रहकर पंजाब में सरकार नहीं बना सकते हैं। इस चुनाव में दोनों पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रही थी। अब देखा जा रहा है कि अकाली दल और बीजेपी की करुवाहट खत्म हो रही है और वे फिर से शुर से शुर मिला रहे हैं। पिछले दिनों पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने अमित शाह से मुलाकात कीष बात सामने निकल कर नहीं आई है मगर गलबहिंयां इशारा कर रही है कि जल्द ही मंत्री पद से नबाजे जायेंगे…। क्यों ना हो.. अब कौन सा किसान आंदोलन चल रहा है जो डर होगा।
माना जा रहा है कि जनवरी के अंतिम सप्ताह में या फिर अप्रील में मंत्रीमंडल का फेरबदल हो सकता है जिसमें इन सबको जगह मिल सकती है।