शिशिर शुक्ला
हाल ही में 8 जनवरी को उत्तराखंड में लेखपाल भर्ती परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हो गया। एसटीएफ के द्वारा किए गए खुलासे से पता चला कि लोक सेवा आयोग के अति गोपनीय कार्यालय में कार्यरत अनुभाग अधिकारी के द्वारा इस कृत्य को अंजाम दिया गया। आरोपी ने यह भी कबूला कि उसके द्वारा तीन अन्य महत्वपूर्ण परीक्षाओं के प्रश्न पत्र भी लीक कराए गए हैं। प्रति अभ्यर्थी तीस से पचास लाख में प्रश्नपत्र बेचने वाले आयोग के कार्मिक ने यह भी स्वीकार किया कि उसके द्वारा यह खेल विगत चार वर्षों से खेला जा रहा है। इस घटना के बाद उत्तराखंड सरकार के द्वारा नकलचियों पर लगाम लगाने एवं नकल माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए एक सख्त नकल विरोधी कानून को अस्तित्व में लाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुसार यह देश का सबसे बड़ा नकल विरोधी कानून होगा। इसमें आरोपी पर दोष साबित होने पर उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है, साथ ही साथ नकल करने वाले दस साल तक किसी परीक्षा भर्ती में शामिल नहीं हो सकेंगे। नकल माफियाओं की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान भी इस कानून के अंतर्गत किया गया है। ऐसा ही कठोर कदम राजस्थान सरकार के द्वारा उठाया गया, जिसमें शिक्षक भर्ती परीक्षा का पेपर आउट हो जाने पर नकल गिरोह के सरगना के घर पर बुलडोजर चला दिया गया। दोनो ही सरकारों के निर्णय निस्संदेह सराहनीय हैं।
कोई भी भर्ती परीक्षा किसी प्रतियोगी के लिए एक स्वर्णिम अवसर के समान होती है। भारत जोकि शीघ्रातिशीघ्र जनसंख्या के मामले में संपूर्ण विश्व में अव्वल होने की ओर अग्रसर है, बेरोजगारी की ज्वलंत समस्या से भी जूझ रहा है। अपने घर से दूर रहकर प्रतियोगी विद्यार्थी तपस्वी जैसा जीवन जीने को विवश होता है, क्योंकि उसे केवल और केवल अपना लक्ष्य दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में जबकि वह अपने परिश्रम को प्रतिफल के रूप में परिणत करने के लिए पूर्णरूपेण तैयार होता है, बड़े-बड़े नकल माफिया एक रची हुई साजिश के तहत प्रश्नपत्र आउट कराने जैसा घृणित कृत्य करके उसकी सारी उम्मीदों एवं मेहनत पर पानी फेर देते हैं। परीक्षा को आयोजित करने वाले निकाय के अंदर का ही कोई लालची व्यक्ति पैसे के लिए स्वयं को एक स्तर से भी नीचे गिराने में जरा भी नहीं हिचकता और नतीजा यह होता है कि शासन के द्वारा प्रतियोगियों के लिए किए जा रहे समस्त प्रयास एवं व्यवस्थाएं निरर्थक हो जाती हैं। साथ ही साथ प्रतियोगी विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की किरण निराशा के अंधकार में तब्दील हो जाती है।
उत्तर प्रदेश में भी करीब तीन दशक पहले 1992 में तत्कालीन सरकार के द्वारा नकल रोकने का अध्यादेश बोर्ड परीक्षाओं में लागू किया गया था। इसके तहत नकल करने एवं कराने दोनों को अपराध घोषित करते हुए नकलचियों को जेल भेजने का कानून बनाया गया। नतीजा यह हुआ कि हाईस्कूल परीक्षा का परिणाम लगभग 15 प्रतिशत एवं इंटरमीडिएट का लगभग 30 प्रतिशत रहा, लेकिन नकल के मामले पर अच्छा खासा नियंत्रण करने में सफलता मिली। बाद में अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरी सरकार के द्वारा इस कानून को खत्म कर दिया गया। यहां पर एक बात ध्यातव्य है कि किसी बड़ी परीक्षा का प्रश्नपत्र यूं ही नहीं आउट हो जाता है, बल्कि इसके पीछे भलीभांति सोची समझी साजिश एवं परीक्षा प्रभारी निकाय के चुनिंदा भ्रष्ट लोगों की बड़े बड़े माफियाओं से मिलीभगत होती है। आज बड़े-बड़े कोचिंग सेंटर भी अपने परिणाम व प्रदर्शन की उत्कृष्टता को सुनिश्चित करने एवं मोटी कमाई करने के उद्देश्य से इस घिनौने कृत्य में संलिप्त हैं। किसी तरह मामले का पर्दाफाश होने से बच गया तो फिर उनकी बल्ले बल्ले हो जाती है। इन सभी घटनाओं का सर्वाधिक दुष्प्रभाव उन अभ्यर्थियों पर पड़ता है जो गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों से निकलकर प्रयागराज, लखनऊ व दिल्ली जैसे शहरों में कठिन परिश्रम एवं त्याग-तपस्या से युक्त जीवन जीते हैं। प्रश्नपत्र आउट हो जाने के खेल का खुलासा न हुआ, तो न जाने कितने अयोग्य अभ्यर्थी इन परिश्रमी युवाओं पर हावी होकर उनके स्थान पर हमेशा के लिए काबिज हो जाते हैं। यदि खुलासा हो भी गया तो परीक्षा स्थगित होती है और पुनः परीक्षा आयोजित होती है जिसमें सच्चे प्रतियोगियों का अमूल्य समय बर्बाद होता है। आए दिन किसी न किसी राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओं का प्रश्नपत्र लीक होना एक आम बात सी होती जा रही है। प्रतियोगियों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। निश्चित ही शासन स्तर से इस समस्या को समाप्त करने के लिए एक कठोर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। एक ऐसा कानून जोकि केवल औपचारिकता न हो अपितु जिसके बारे में सोचकर ही नकलचियों एवं नकल माफियाओं के द्वारा नकल के विचार को पूर्णतया त्याग दिया जाए। यह कटुसत्य है कि बोर्ड परीक्षा में आवश्यकता से अधिक ढिलाई की वजह से ही उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले अधिकांश विद्यार्थी गुणवत्ता एवं ज्ञान से विहीन हैं क्योंकि उन्होंने परीक्षा के भय एवं गंभीरता को अनुभव ही नहीं किया। बोर्ड परीक्षा को लेकर पुनः जेल जाने का कानून लाया जाना चाहिए। भले ही इससे परीक्षा परिणाम का प्रतिशत गिरेगा, किंतु उस नतीजे में केवल और केवल गुणवत्ता शामिल होगी। उसे किसी फिल्टर की आवश्यकता कदापि नहीं होगी। निस्संदेह उत्तराखंड सरकार द्वारा नकल पर सख्त कानून बनाने का निर्णय विद्यार्थियों की गुणवत्ता को सुधारने में प्रभावी साबित होगा।