- बतौर हॉकी खिलाड़ी मेरा कोई एक खिलाड़ी आदर्श नहीं है, सबसे सीखता हूं
- रीड का जोर ‘स्ट्रक्चर’ पर, सभी की कोशिश उसी के मुताबिक ढालने की
- गलतियों से डरने नहीं बल्कि सुधार कर और बेहतर करने की जरूरत
- पिता के अनुशासन से मुझे हॉकी का बढिय़ा खिलाड़ी बनने में मिली मदद
- विश्व कप के आगे बढऩे के साथ हमारे निशाने सटीक रहेंगे और हम खूब गोल करेंगे
सत्येन्द्र पाल सिंह
भुवनेश्वर : नौजवान अभिषेक अपनी कलाकारी और दुनिया की किसी भी टीम की रक्षापंक्ति को बिखेरने की कूवत के कारण भारतीय हॉकी टीम के विशेष स्ट्राइकर बन गए हैं। दिल्ली से सटे हरियाणा के सोनीपत के बाशिंदे 23 बरस के अभिषेक को खेल और जीवन में हॉकी के खेल में अनुशासन फौजी पृष्ठïभूमि से आने वाले अपने पिता सत्यनारायण से मिला। अपने इसी अनुशासन के चलते अभिषेक ने यहां 15 वें एफआईएच पुरुष हॉकी विश्व कप में शिरकत कर रही भारतीय टीम के ऑस्टे्रलियाई उस्ताद ग्राहम रीड का भरोसा जीता है। भारतीय हॉकी टीम अपने अंतिम मैच में वेल्स को 4-2 से हरा इंग्लैंड की तरह तीन मैचों से सात अंक लेकर उससे गोल अंतर में पिछड़ कर पूल डी में दूसरे स्थान पर रही। भारत अब क्वॉर्टर फाइनल में स्थान बनाने के लिए रविवार को क्रॉसओवर में पूल डी में तीसरे स्थान पर रही। भारत के चीफ कोच रीड युवाओं पर इसीलिए ज्यादा दांव खेलते हैं। रीड ‘कच्ची मिट्टïीÓ की तरह अपने मुताबिक नौजवान खिलाडिय़ों को अपने सांचे में ढालना खूब सकते है। मौजूदा विश्व कप मेंं अभिषेक को अभी अपने पहले गोल का इंतजार है। अभिषेक से उनकी अब तक की पिछले डेढ़ बरस की कामयाब हॉकी यात्रा, मौजूदा विश्व कप और आने वाले समय के लक्ष्यों पर बातचीत।
भारतीय सीनियर हॉकी टीम में जगह पाने पर अब बतौर खिलाड़ी आपके लक्ष्य, आपके आदर्श ?…
भारतीय सीनियर टीम में जगह बनाना मेरे लिए गौरव की बात है। अब चाहे फिर वह हॉकी विश्व कप हो, ओलंपिक या एशियाई खेल जैसा कोई भी बड़ा टूर्नामेंट, मैं इसमें मेरा लक्ष्य महज भागीदारी ही नहीं बल्कि भारत को पदक जिताना है। बतौर हॉकी खिलाड़ी कोई एक खिलाड़ी मेरा आदर्श नहीं है। मैं भारत और दुनिया के धुरंधर खिलाडिय़ों को खेलते देख उनमें जो भी सबसे बेहतर होता है उसे सीख अपने खेल में जोड़ निरंतर अपनी हॉकी बेहतर करना चाहता हूं। कोशिश हमेशा यह रहेगी कि मैं बतौर खिलाड़ी हमेशा फिट रहूं।
सीनियर भारतीय हॉकी टीम में जगह पाने पर क्या बदलाव महसूस करते हैं?
मैं खुशकिस्मत हूं कि भारतीय सीनियर हॉकी टीम में आने पर मुझे सभी साथियों खासतौर पर सीनियर साथियों का बहुत सहयोग मिला। सीनियर भारतीय टीम में आने से मेरा तालमेल तो बढिय़ा हुआ है। मेरी ऑफ द बॉल, विद दÓ बॉल रनिंग तो बेहतर हुई है मेेरे खेले मे जरूरी धैर्य भी आ गया है। हमारे चीफ कोच ग्राहम रीड का सबसे ज्यादा जोर ‘स्ट्रक्चरÓ से खेलने पर है। टीम में हम सभी खुद को उसी के मुताबिक खुद को ढालने की कोशिश करते हैं।
आपने चीफ कोच ग्राहम रीड का ऐसा विश्वास कि जीता की वह आपके मुरीद हो गए?
मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि चीफ कोच रीड साहब ने मुझ पर भरोसा जताया। इससे ही मुझे यहां चल रहे हॉकी विश्व कप में भारतीय टीम में जगह दिलाई। रीड साहब ने मुझसे कहा कि मैं खुल कर अपना नैसर्गिक खेल खेलूं। उस्ताद रीड साहब ने मुझे समझाया कि गलतियों से डरने की नहीं बल्कि उससे सबक लेकर उन्हें सुधार कर अपना खुलकर और बेहतर करने की जरूरत है। रीड साहब ने तो मुझे यहां तक कहा कि किसी भी डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कोई बेवजह कुछ कहने की कोशिश कर तो मैं इस बाबत सीधे उन्हें बता सकता हूं। रीड साहब के भरोसे से ही मैं भारतीय टीम में जगह बनाने के बाद सहज होकर खेल पाया।
टोक्यो ओलंपिक में कांसा दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले चोट के कारण बाहर सिमरनजीत सिंह की कमी भारत को कितनी अखर रही है।
सिमरनजीत सिंह ने आठ बार के चैपियन भारत को 41 बरस के लंबे अंतराल के बाद कांसे के रूप में पहला दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। वह चोट से नहीं जूझते होते तो भारत की मौजूदा हॉकी विश्व कप में जरूर होते। दबाव में सिमरनजीत बेहतरीन प्रदर्शन करना जानते हैं । वह अपने शांत स्वभाव के कारण खुद दबाव को झेल कर बतौर खिलाड़ी आपको ही नहीं पूरी टीम को सहज होकर खेलने का मौका देते हैं।
बतौर खिलाड़ी अनुशासन एक खिलाड़ी के लिए कितना अहम है?
मेरे पिता सत्यनारायण जी हमेशा बेहद अनुशासनप्रिय रहे हैं। मेरे पिता सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में रहने के बाद अब आरपीएफ में हैं। उनका यह अनुशासन घर में सब पर चलता है। अनुशासन को लेकर जरा सी भी ढील मेरे पिता को गवारा नहीं है। मेरे पिता का यह अनुशासन घर में भी चलता है और कोई इससे भी जरा भी भटकता है तो वह बहुत जल्द गुस्सा हो जाते हैं। फिर भी कहूंगा कि पिता के इस अनुशासन से मुझे हॉकी का बढिय़ा खिलाड़ी बनने में मदद मिली।
मौजूदा विश्व कप के शुरू के मैचों आप सहित स्ट्राइकरों को क्यों जूझना पड़ा?
मेरे जैसे नौजवान और टीम के अनुभवी स्ट्राइकरों ने मौजूदा विश्व कप में प्रतिद्वंद्वी टीम के गोल पर सही निशाने साधे लेकिन बदकिस्मती से गोल नहीं कर पाए। हां वेल्स के खिलाफ अंतिम पूल मैच से हमारी टीम कुछ रंगत पाती लगी हे। इससे पहले के मैचों में अच्छश निशानों के बावजूद गेंद बस गोल में नही गई। मुझे उम्मीद है कि विश्व कप के आगे बढऩे के साथ हमारे निशाने सटीक रहेंगे और हम खूब गोल करेंगे। कई बार ऐसा होता भी आपके निशाने पूरी कोशिश के बाद भी निशाने बहुत करीब से चूक जाते हैं और आपका गोल करने का पूरा पुरुषार्थ धरा का धरा रह जाता है।