बच्चों के भविष्य के लिए मानसिक स्वास्थ्य भी जरूरी है

रेखा शाह आरबी

हर परिवार ,समाज, देश की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी वर्तमान जिम्मेदारियों को समझते हुए भविष्य की जिम्मेदारियों को भी गंभीरता पूर्वक समझे और उसकी जिम्मेदारी उठाएं। इसलिएआने वाली नस्लों के लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण , स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना भी उसकी अनेक जिम्मेदारियों में से एक जिम्मेदारी है ।स्वस्थ समाज और स्वस्थ वातावरण किसी एक व्यक्ति कौम या धर्म का नहीं अपितु उस देश में जितने वर्ग, कौम ,धर्म रहते हैं सब का कर्तव्य होना चाहिए।

सभी को आदर्श नैतिक आचरण स्वेच्छा पूर्वक लागू एवं पालन करना चाहिए एवं करने की ललक होनी चाहिए। तभी हम आने वाली नस्ल का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रख पाएंगे.. जी हां जितना जरूरी है कि हमारे शरीर का स्वस्थ रहना उतना ही जरूरी है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी स्वस्थ रहना चाहिए और विशेषकर बच्चों एवं किशोर और किशोरियों के समुचित विकास के लिए सही वातावरण और सही सामाजिक शिक्षा मिलना बेहद जरूरी है। क्योंकि यह लोग हमारे आने वाले भविष्य हैं उनके कंधों पर कल की जिम्मेदारी है और उन कंधों को मजबूत रहना चाहिए.. शारीरिक रूप से भी मानसिक रूप से भी और नैतिक रूप से भी तभी हमें एक आने वाला सुखद भविष्य मिल सकता है।

लेकिन आजकल जिस तरह का दूषित वातावरण और नैतिक रूप से पत्तोन्मुख समाज तैयार हो रहा है उसमें नैतिकता भरा आचरण एवं नैतिक शिक्षा संस्कार तो बिल्कुल विलुप्त हो गए है ।और आजकल बच्चों एवं किशोर किशोरियों को इंटरनेट और रील्स ,सोशल साइट के माध्यम से अश्लीलता , दोअर्थी संवाद के रूप में गंदगी परोसी जा रही है जो हार्मोनल विकास चक्र से जूझते बच्चों के लिए जहर के समान है .. ।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग एनसीपीसीआर ने एक स्टडी में पाया गया कि दस साल से कम उम्र के 37%8 बच्चों का फेसबुक पर अकाउंट है और इसी एज ग्रुप के 24% 3 परसेंट बच्चे इंस्टाग्राम पर भी एक्टिव हैं पीटीआई की खबर के मुताबिक एनसीपीआर का कहना है कि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के निर्धारित मापदंडों के उलट है.. ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा हो रहा है।

उस पर भी सबसे बड़ी त्रासदी यह है बच्चे और किशोर चाहे या ना चाहे उनके हर तरफ कुंठित बुद्धि वालों ने सिनेमा से लेकर सोशल मीडिया के सभी माध्यमों के द्वारा उनके चारों तरफ अश्लीलता, नैतिक पतन, अपराध ,शोषण का वातावरण भर दिया है कि वह चाह कर भी उस प्रभाव से बच नहीं सकते.. आजकल के मां-बाप खुद अपने बच्चों को अश्लील गानों पर डांस करते हुए देखकर वाह-वाह करते हैं.. ऐसा बन चुका है हमारा सभ्य समाज तो.. हम बच्चों से क्या उम्मीद करेंगे आखिर नैतिक शिक्षा और नैतिक संस्कार यह सब परिवार से समाज से ही तो बच्चों को मिलता है।

इन सभी का यह परिणाम हो रहा है सोशल मीडिया उन बच्चों के सोच और व्यवहार को बदल रहा है उन्हें कुंठित बना रहा है और जीवन को लेकर उनमें असंतुष्टता के भाव नजर आने लग रहे हैं सोशल मीडिया इतना बड़ा प्लेटफार्म है कि बच्चा क्या देख रहा है क्या नहीं देख रहा है यह माता-पिता के लिए कंट्रोल करना संभव नहीं है बच्चे सोशल मीडिया के लती बन जा रहे हैं कंट्रोल नहीं होने के वजह से बच्चों के भटकाव की आशंका हैं क्योंकि बच्चे तो परिपक्व होते नहीं हैं क्या अच्छा क्या बुरा उनके अंदर अभी इतनी समझ नहीं होती है।

उपरोक्त बातें बच्चों और किशोर- किशोरियों के समूचे व्यक्तित्व पर बहुत ही बुरा एवं गलत प्रभाव डाल रहा है इन्हीं सब का नतीजा है कि पहले जिन शैक्षिक संस्थानों को शिक्षा का पवित्र मंदिर समझा जाता था जो बच्चों के व्यक्तित्व के नीव का निर्माण करते थे वहीं पर आज सातवीं और आठवीं क्लास के बच्चों के हॉस्टल और रूम चेक करने पर आपत्तिजनक सामग्रियां बरामद हो रही है। लड़कियों के हॉस्टल से गर्भनिरोधक गोलियां ,नशे की गोलियां इत्यादि अनेक आपत्तिजनक सामग्री बरामद हो रही है यह सब देखकर समझा जा सकता है .. कैसे इन बच्चों का भविष्य सुनियोजित तरीके से बर्बाद हो रहा है।

आजकल हर बच्चे बूढ़े किशोर सबको स्मार्टफोन अवेलेबल है जो कभी पढ़ाई तो कभी मनोरंजन के वजह से तो कभी अन्य जरूरतों के वजह से हम लोगों के जिंदगी में बेहद जरूरी बन चुका है। अब माता-पिता के पास बस यही उपाय शेष है कि वह अपने बच्चों में यह समझ विकसित करें क्या सही है और क्या गलत है.. कौन सी सामग्री ग्रहण योग्य है और किसको अनदेखा करना चाहिए। इन विकास क्रम से जूझते बच्चों के सवालों और दुविधाओं का निस्तारण धैर्य और संयम के साथ करना होगा । बच्चों के एकाकीपन और प्रेम के भूख को अपने स्नेह एवं ममता द्वारा माता-पिता को पूर्ति करनी होगी ।जिससे बच्चों और किशोर किशोरियों को भटकाव से मुक्ति मिले.. और वह अपना विकास करते हुए नैतिक आचरण और संस्कार भी सुरक्षित रख पाएं। और यह सब हम बच्चों के माता-पिता से ज्यादा बच्चों के दोस्त बनकर करना होगा यह करना कहने जितना आसान नहीं है लेकिन इसमें यदि माता-पिता से जरा भी चूक हुई तो बच्चों का भटकाव तय है।