भारत में गिग इकॉनमी का क्या है भविष्य?

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

इंटरनेट एक बहुत शक्तिशाली व्यापार मंच है। बहुत से लोग नेटवर्क के माध्यम से अच्छी आमदनी सृजित करने में सक्षम हैं, आज डिजिटल होती दुनिया में रोजगार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से उभरकर सामने आ रही है, जिसको नाम दिया जा रहा है ‘गिग इकॉनमी’ का। गिग इकॉनमी एक मुक्त बाजार प्रणाली है जिसमें आम रूप से अस्थायी कार्य अवसर मौजूद होते हैं और विभिन्न संगठन अल्पकालिक संलग्नताओं के लिये स्वतंत्र कर्मियों के साथ अनुबंध करते हैं।

वित्तीय सेवा मंच (फाइनेंशियल सर्विसेस प्लेटफॉर्म) ‘स्ट्राइडवन’ द्वारा इस महीने जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 तक, भारत के कुल कार्यबल का लगभग 4 प्रतिशत हिस्सा ‘गिग सेक्टर’ से होने की उम्मीद है। इसके द्वारा साल 2024 तक लगभग 2.35 करोड़ श्रमिकों को रोजगार दिए जाने की उम्मीद है – यह साल 2020-21 में केवल 80 लाख कार्यबल के 1.5 प्रतिशत- से तीन गुना वृद्धि होगी.

हाल के वर्षों में इस प्रकार के कार्य की लोकप्रियता बढ़ी है क्योंकि यह कर्मियों के लिये अधिक लचीलापन एवं स्वतंत्रता प्रदान करता है और व्यवसायों के लिये एक लागत प्रभावी समाधान हो सकता है। गिग कर्मचारी सर्वव्यापक नए कार्यबल हैं। वे लोग हैं जो हमें ऑनलाइन ऑर्डर किए गए भोजन को प्राप्त करते हैं, हमें घर से कार्यालय या कहीं भी ले जाते हैं और आम तौर पर ऐसी कई सेवाएं प्रदान करते हैं जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

गिग इकॉनमी कर्मियों के लिये नौकरी की सुरक्षा और लाभों की कमी को लेकर चिंताएँ भी मौजूद हैं। अनुमान है कि भारत में भविष्य में गिग इकॉनमी का और विस्तार होगा और इसलिये इसे कर्मियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति उचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये सरकारी नियमों एवं नीतियों द्वारा समर्थित होना चाहिये। भारत में कई तरह के गिग कामगार श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते हैं और स्वास्थ्य बीमा एवं सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक उनकी पहुँच नहीं है।

कैटेलिस्ट फंड और कर्मलाइफ के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 88 प्रतिशत गिग इकॉनमी वर्कर्स के पास महीना खत्म होने से पहले ही पैसा खत्म हो गया था। उनमें से अधिकांश ने इसके लिए बढ़ते घरेलू और ईंधन खर्च को जिम्मेदार ठहराया। सर्वेक्षण में शामिल 90 प्रतिशत श्रमिकों ने यह भी कहा कि वे अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए व्यक्तिगत ऋण लेना चाहते हैं, लेकिन अपनी नौकरी की प्रकृति के कारण ऐसा नहीं कर सकते हैं।सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि लगभग 40 प्रतिशत गिग इकॉनमी श्रमिकों के पास कोई बीमा नहीं था, और उनमें से केवल 24 प्रतिशत के पास नियोक्ता द्वारा प्रदान किया गया बीमा कवर था। शेष 36 प्रतिशत श्रमिकों ने स्वयं प्रीमियम का भुगतान करके बीमा खरीदा।

फ्लोरिश वेंचर्स के एक शोध के अनुसार, महामारी से पहले अधिकांश गिग इकॉनमी वर्कर्स 25,000 रुपये से ऊपर कमाते थे, जबकि महामारी के बाद, दस में से नौ कर्मचारी 15,000 रुपये से कम कमा रहे थे। इस उच्च आय में उतार-चढ़ाव के कई संभावित कारण है। भारत में गिग कर्मियों को प्रायः पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और वे उनकी तरह कानूनी सुरक्षा से भी वंचित होते हैं।

गिग इकॉनमी व्यापक रूप से टेक्नोलॉजी और इंटरनेट एक्सेस पर निर्भर करती है, जो फिर उन लोगों के लिये एक बाधा उत्पन्न करती है जिनके पास इन संसाधनों तक पहुँच नहीं है और यह आय असमानता को और बढ़ा देता है। गिग कर्मी पारंपरिक कर्मचारियों के समान सामाजिक संबंध और समर्थन प्रणाली से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि वे प्रायः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं और भौतिक कार्यस्थल का अभाव रखते हैं।

सरकार गिग इकॉनमी में काम करनेवाले कर्मचारियों को कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के अस्पतालों व डिस्पेंसरी में सब्सिडी वाली दरों पर सस्ती चिकित्सा सेवा मुहैया कराने पर विचार कर रही है। इससे गिग इकॉनमी से जुड़ी कंपनियों को राहत मिल सकती है क्योंकि उन्हें अपने कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा की लागत को वहन नहीं करना होगा। संसद के पिछले सत्र में सरकार ने सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2019 लोकसभा में पेश किया था। इस विधेयक में गिग इकॉनमी में काम करने वाले कर्मचारियों को भारत में पहली बार सामाजिक सुरक्षा कवर देने का प्रस्ताव है। विधेयक में कहा गया है कि सरकार ईएसआईसी के तहत गिग कर्मचारियों को लाने के लिए एक योजना पेश करेगी।

भारत सरकार को गिग इकॉनमी के लिये स्पष्ट विनियम एवं नीतियाँ स्थापित करनी चाहिये ताकि गिग कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जा सके। सरकार को गिग कर्मियों के कौशल में सुधार और उनकी आय अर्जन क्षमता को बढ़ाने के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये।