सीता राम शर्मा ‘चेतन’
पुरानी कहावत है बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाएगा ! नापाक पाकिस्तान इस कहावत का ताजा उदाहरण है । 30 जनवरी को पाकिस्तान के पेशावर की एक मस्जिद में आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के हुए आत्मघाती आतंकी हमले से जारी अधिकारिक आंकड़ो के अनुसार अब तक 100 लोगों की मौत हो गई है और कई अभी इलाजरत हैं । हमला बेहद अमानवीय और निंदनीय है । हर निर्दोष की मौत पर मानवीय संवेदनाओं का विचलन और असमय मौत के मुंह में गए निर्दोष लोगों और उनके परिजनों के लिए स्वतः दुआओं का आना स्वाभाविक है, पर जब सैकड़ों लोगों की असमय मौत का कारण कोई मानवीय क्षमताओं से परे की प्राकृतिक आपदा विपदा ना होकर प्रायोजित आतंकवाद हो तो संवेदनाओं और दुआओं से ज्यादा क्रोध का आना स्वाभाविक है । निःसंदेह इस आतंकवादी हमले के बाद हर अमन पसंद पाकिस्तानी नागरिक के मन-मस्तिष्क में अपनी आतंकवाद समर्थक सत्ता और सेना के प्रति व्यापक आक्रोश होगा । होना भी चाहिए । जिनमें नहीं है, वे या तो अशिक्षित, विक्षिप्त और अवांछित लोग हैं या फिर खुद उसी आतंकवाद के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थक, प्रशंसक और संरक्षक । जिनका जीवन भी आज नहीं तो कल आतंकवाद की भट्ठी में जले झुलसेगा ही । शांति, सुरक्षा, विकास और भाईचारा मनुष्य जाति का जन्मजात स्वभाव है । इसलिए यह तो बिल्कुल असंभव है कि हर पाकिस्तानी नागरिक आतंकवाद का प्रशंसक और समर्थक होगा । गौरतलब है कि इस बेहद घृणित और निंदनीय आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के भीतर सत्ता, सेना और शासन के कुछ ईमानदार लोगों से लेकर बहुतायत आम आदमी तक के द्वारा वहां की दशकों पुरानी आतंक परस्त सरकारी नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश उबाल पर है । वहां के बहुतायत लोग ना सिर्फ खुलकर पाकिस्तान में आतंकवाद के लिए अपने देश की सरकारी नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं बल्कि यह भी जानते हैं कि आज पाकिस्तान की हर क्षेत्र में जो दुर्दशा है, उसके पिछे का सबसे बड़ा कारण भी आतंकवाद ही है और पाकिस्तान जब तक इसमें सुधार नहीं करेगा, उसकी स्थिति में पर्याप्त सुधार नहीं आ सकता ।
अब सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान की आम जनता क्या अब भी अपनी वर्तमान दुर्दशा और भविष्य की दुर्गति से बचने उबरने के लिए सरकार के विरुद्ध कोई ठोस और कारगर आंदोलन करेगी ? यदि हां, तो अमन पसंद वैश्विक बिरादरी उसके साथ है और नहीं, तो फिर उसे अपनी सोच समझ पर थोड़ा-बहुत नहीं व्यापक चिंतन विमर्श और आत्म संघर्ष करने की जरूरत है । जो उसे पूरी प्राथमिकता के साथ करना ही चाहिए । पाकिस्तानी आवाम को इस आतंकवादी हमले से विचलित हुए अपने रक्षा मंत्री के मुंह से निकली उस स्वीकारोक्ति पर भी ना सिर्फ पूरी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है बल्कि अपनी सरकार और सैन्य व्यवस्था के साथ रक्षा मंत्री से उनकी इस स्वीकारोक्ति पर समुचित जवाब लेते हुए सुधार और आतंकवाद पर कठोर प्रहार करने का दबाव निरंतर बनाए रखने की जरूरत है । गौरतलब है कि 30 जनवरी को हुए इस आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि – हमने आतंकवाद के बीज बोए हैं, इस वजह से पाकिस्तान में ऐसी घटनाएं होती है ! हालांकि पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में अपने देश की सत्ता और सैन्य व्यवस्था द्वारा लंबे समय से चलाई जा रही आतंकवाद समर्थक काली करतूतों का बखान करते हुए भी रक्षा मंत्री पाकिस्तानी सत्ता की नापाक सोच से ग्रस्त ही दिखाई दिए । उन्होंने आतंकवाद का बीज बोने और उसके पालन-पोषण करने की सरकारी स्वीकारोक्ति के साथ यह कहकर अपनी दुषित मानसिकता का ही परिचय दिया कि भारत और इजराइल में भी प्रार्थना के दौरान श्रद्धालू नहीं मारे गए, लेकिन यह पाकिस्तान में हुआ ! सवाल यह कि ऐसा बयान क्यों और इस बयान के पिछे संदेश या मंशा क्या ? पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के द्वारा अपने देश की नेशनल असेंबली में अपनी पूर्ववर्ती सरकारों के द्वारा आतंकवाद को जन्म देने और उसका समुचित पालन-पोषण करने की स्वीकारोक्ति के साथ भारत और इजराइल को लेकर ऐसे विवादास्पद और संदिग्ध बयान देने पर भारत और इजराइल के साथ पूरे विश्व को भी उससे जवाब मांंगना चाहिए । बेहतर होगा कि वैश्विक बिरादरी वैश्विक आतंकवाद से सुरक्षा और मुक्ति के लिए आतंकवाद के बीज बोने और उसे संरक्षण समर्थन देने की पाकिस्तानी सत्ता की इस स्वीकारोक्ति के बाद उस पर इस दिशा में पूरी तरह सुधार करने का ना सिर्फ दबाव बनाए बल्कि उसकी सामने आई इस हकीकत पर पूरी कठोरता से हर संभव नीतिगत प्रहार भी करे । उस पर किसी भी तरह की दया और सहायता की अपनी नीतियों में बदलाव लाए । उसे तब तक अपनी दया और सहायता से पूरी तरह वंचित करे जब तक वह विश्व विख्यात और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और खुंखार आतंकवादियों का पूरी तरह खात्मा ना कर दे । हां, उनके खात्मे के लिए यदि वह अपनी अक्षमता, असमर्थता, दीनता और विवशता प्रकट करे तो उसे प्रत्यक्ष सैन्य सहयोग अवश्य करे । वहां अपने समर्थ, सशक्त और योग्य सैनिकों के साथ हर जरुरी अत्याधुनिक हथियार और तकनीकी संसाधन भेजे, पर यह सबकुछ उसे उपलब्ध कराते हुए इस बात का विशेष ध्यान अवश्य रखे कि भेजे गए उन हथियारों और संसाधनों का सदुपयोग पूरी पारदर्शिता के साथ उनके सैनिकों के साथ और सहयोग से ही हो, वर्ना इसमें कोई संदेह नहीं कि वह इनका भी दुरुपयोग ही करेगा । भारत को पाकिस्तानी आतंकवाद विरोधी इस अभियान की शुरुआत और अगुवाई करने की जरूरत है क्योंकि पाकिस्तानी आतंकवाद का सबसे ज्यादा नुकसान अब तक वही झेलता रहा है । फिलहाल इसका एक उपयुक्त और बड़ा अवसर है, जो उसे खुद नापाक पाकिस्तान ने उपलब्ध कराया है । आशा है भारत सरकार इस अवसर का भरपूर सदुपयोग करेगी ।