संदीप ठाकुर
राष्ट्रपति अभिभाषण पर घन्यवाद प्रस्ताव करते हुए संसद में आज
प्रधानमंत्री मोदी ने देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों की तारीफ
करते हुए कहा कि सरकार उनकी हरसंभव मदद कर रही है। लेकिन सरकार वास्तव
में ऐसे खिलाड़ियाें का कितना ख्याल रखती है इसका जीता जागता उदाहरण हैं
तस्वीर में मैली कुचैली बनियान में खड़े राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी टेक चंद।
जी हाँ ये वही टेकचंद हैं जाे 1961 में उस भारतीय टीम के अहम खिलाड़ी थे
जिसने हालैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था। ये उस वक्त के स्टार
थे। आज दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। उम्र 82 साल हाे चुकी है।
झुग्गी में रहते हैं। मेहनत मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं। लेकिन अब
मजदूरी करने की शक्ति भी नहीं बची है। लेकिन शासन,प्रशासन और सरकार की
तरफ से इस खिलाड़ी का हालचाल पूछने कोई नहीं आता है। हॉकी देश का
राष्ट्रीय खेल है। शायद इसलिए सरकार 600 रूपये प्रतिमाह पेंशन देकर इनके
ऊपर एहसान कर रही है।
मध्यप्रदेश के सागर में रहने वाले टेकचंद के पत्नी व बच्चे नहीं हैं।
भोजन के लिए अपने भाइयों के परिवार पर आश्रित इस अभागे को कभी-कभी भूखे
भी सोना पड़ जाता है। ये उसी देश में रहते हैं, जहां एक बार विधायक-
सांसद बन जाने के बाद कई पुश्तों के लिए खजाना और जीवन भर के लिए
पेंशन-भत्ता खैरात में मिलता है। टेकचंद हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के
शिष्य रहे हैं। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का शिष्य और मोहरसिंह जैसे
खिलाडियों का गुरू आज एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को अभिशापित है।
जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक, जिन्हें इनकी कद्र करनी चाहिए, कहीं
दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। साल 1961 में उन्होंने भोपाल 11 टीम से
प्रदर्शन मैच में हिस्सा लिया था। इसमें न्यूजीलैंड और हॉलैंड टीम को
कड़ी टक्कर दी थी। इन दोनों ही टीमों से मैच ड्रॉ हुआ था। इसमें टेक चंद
यादव ने अपने खेल का शानदार प्रदर्शन किया था।
टेक चंद यादव स्कूल के समय से ही हॉकी खेलते थे। उनके पिता आर्मी में
ठेकेदार थे। उन्होंने टेकचंद की रुचि को देखते हुए उन्हें प्रोत्साहित
किया। इसके बाद अच्छा खेलने पर उन्हें जिला हॉकी टीम में शामिल भी कराया।
टेक चंद यादव ने डिस्ट्रिक्ट हॉकी एसोसिएशन के टीम में खेलते हुए भोपाल
दिल्ली चंडीगढ़ समेत कई शहरों में टूर्नामेंट खेले। कई टूर्नामेंट में
बेहतर प्रदर्शन कर जीत दिलाई। न्यूजीलैंड और हालैंड की टीम भारत आई।
उनका एक-एक मैच भोपाल-11 से कराया गया।
भोपाल -11 की टीम में टेकचंद यादव शामिल हुए। 1962 में पिता का निधन होने
के बाद उन्होंने हॉकी खेलना बंद कर दिया और घर चलाने के लिए प्राइवेट काम
करने लगे। पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया इसके बाद बेटी भी चल बसी। अब
टेक चंद यादव टूटी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। मामूली वृद्ध पेंशन
मिलती है और सुबह शाम सामाजिक संस्था सीताराम रसोई से खाना आता है।