ओम प्रकाश उनियाल
त्योहार किसी भी धर्म के हों वे उस धर्म की संस्कृति एवं परंपरा के परिचायक होते हैं। नयी उमंग, नया उत्साह और उल्लास लेकर आते हैं त्योहार। समय-समय पर कोई न कोई त्योहार परंपरागत रूप से मनाया ही जाता है। भारत तो वैसे भी त्योहारों का देश है। हर प्रकार के त्योहार मिलजुलकर मनाने की परंपरा भारत में देखने को मिलती है। ऐसा ही एक त्योहार है ‘होली’। रंगों का त्योहार। होली के त्योहार का असली रंग उत्तराखंड के कुमायूं एवं उत्तरप्रदेश के बृज में देखने को मिलता है। कुमाऊं की खड़ी, बैठकी, महिलाओं की होली काफी प्रसिद्ध है। जिसकी तैयारी होली के एक माह पहले से की जाने लगती है। होली गीतों के गायन में रागों का पुट अधिक सुनने को मिलता है। रंग (छर्वलि) तो होली के दिन ही खेले जाते हैं। अलग ही झलक देखने को मिलती है पर्वतीय अंचल में होली की। इसी प्रकार बृज के मथुरा की लट्ठमार होली भी खासी प्रसिद्ध है। भगवान कृष्ण की जन्मभूमि में मनायी जाने वाली होली भी अलग छाप छोड़ती है। राधा-कृष्ण के प्रति आस्था, प्रेम और भक्ति का जो समावेश बृज में देखने को मिलता है उसकी अलग ही अनुभूति होती है। बृज भाषा में गाए जाने वाले होली गीत भक्ति-रस से ओतप्रोत होते हैं। फाल्गुन मास की अमावस्या के पहले दिन से होली की शुरुआत होती है। बृज की होली में विदेशी कृष्ण भक्त शामिल होते हैं।
होली के त्योहार में रंगों की बहार न हो। भला ऐसा हो सकता है? रंगों में खूब सरावोर होकर होली खेलें। लेकिन कुछ जरूरी सावधानियां भी बरतें। किसी भी प्रकार का नशा न करें, लड़ाई-झगड़े से दूर रहें, गुब्बारे न फेंके, रंगों से परहेज करने वालों के साथ जबरदस्ती न करें, फूहड़ता दिखाने से बचें, जानवरों पर किसी प्रकार का सूखा व गीला रंग न डालें, राग-द्वेष के भाव से दूर रहें, कैमिकल मिले रंगों का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा पानी की खपत कम से कम करें। मौसम भी बार-बार रंग बदल रहा है स्वास्थ्य का ध्यान रखें। खासतौर पर बच्चों का। बच्चों की आजकल परीक्षाएं भी चल रही हैं। सावधानियां बरती जाएं तो त्योहार का मजा और अधिक बढ़ जाएगा।