सुशील दीक्षित विचित्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर एक अनावश्यक विवाद खड़ा करने की कोशिश से सहमत नहीं हुआ जा सकता। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों अरविन्द केजरीवाल यदि ऐसी कोई मांग करते हैं तो इससे यही सन्देश जा रहा है कि अपनी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के मुकदमों से ध्यान हटाने के लिए अनावश्यक विवाद खड़ा कर रहे हैं । भारतीय संविधान में किसी जनप्रतिनिधि के लिए कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं की । अब तक कितने ही राजनेता हुए जिनकी कोई डिग्री नहीं थी लेकिन आज भी डिग्री लेने के लिए उनका अध्ययन जरूरी होता है । केजरीवाल के राजनीतिक गुरू अन्ना हजारे खुद कोई डिग्री होल्डर नहीं रहे लेकिन उन्होंने जो आंदोलन चलाया उसमें भारी भरकम डिग्रियों वाले न जाने कितने ही आलिम फाजिल उनके पीछे खड़े हो गए थे । .
विवाद अनावश्यक इसलिए है कि 2016 में जब पहली बार केजरीवाल ने मोदी की डिग्री का सवाल उठाया था तब दिल्ली विश्वविद्यालय ने उनकी स्नातक की और गुजरात विश्वविद्यालय ने परास्नातक की उनकी डिग्री अपनी पोर्टल पर डाली थी । केजरीवाल उसे बोगस करार दे कर अदालत गए । अदालत से उन्हें न केवल फटकार मिली बल्कि उन पर जुर्माना भी किया गया । इसके बाद भी वे यदि डिग्री का राग अलाप रहे हैं तो यह राग उनका वह दर्द जिससे उबरने का उनके पास कोई तरीका नहीं । उनके तीन डिग्रीधारी मंत्री जेल जा चुके हैं । इनमें एक कानून की फर्जी डिग्री लिए थे और केजरीवाल के कानून मंत्री थे । दूसरे डिग्रीधारी सत्येंद्र जैन और तीसरे डिग्री होल्डर मनीष सिसोदिया हैं । यह जेल में हैं । दिल्ली शराब घोटाले में पकडे गए कट्टर ईमानदार सिसोदिया को अदालत ने घोटाले का मास्टरमाइंड बताया है । यह हैं केजरीवाल के वे कट्टर ईमानदार और बड़ी बड़ी डिग्रियों के बोझ से दबे लोग जिनको कई बार अदालत जमानत देने से इंकार कर चुकी है । राजनीतिक गलियारों में इसे बहुत सस्ते स्तर की राजनीति बताया जा रहा है । इस मुद्दे पर विपक्ष के उद्धव ठाकरे को छोड़ कर अन्य किसी का साथ इसीलिए नहीं मिला कि यह मुद्दा फर्जी विमर्श गढ़ने के लिए खड़ा किया साबित होता है । एनसीपी के नेता अजित पवार ने सिरे से ही इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि 2014 या 2019 में जनता ने मोदी की डिग्री देख कर नहीं चुना था । इससे पहले शरद पवार भी इसे असंगत मुद्दा बता चुके हैं । न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करने के बाद अपने फैसले में टिप्पणी भी की कि प्रधानमंत्री की डिग्री सोशल मीडिया और और संबन्धित विश्वविद्यालय की वेबसाइड पर उपलब्ध है । डिग्री की डिटेल के जरिये केजरीवाल अवांछित विवाद पैदा करना चाहते हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि विश्वविद्यालय किसी तीसरी पार्टी को डिग्री नहीं दे सकता ।
अगर डिग्री ही जरूरी होती तो बिहार में राबड़ी देवी कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पातीं और न तेजस्वी प्रताप यादव आज उपमुख्यमंत्री होते । इंदिरा गांधी या राजीव गांधी से भी कभी डिग्री किसी ने नहीं मांगी । वी पी सिंह , चंद्रशेखर , नरसिंहाराव , देव गौड़ा , इंद्रकुमार गुजराल , अटल बिहारी बाजपेयी में से किसी से भी उनके प्रबल विरोधियों तक ने डिग्री नहीं मांगी। प्रधानमंत्री पद के लिए सोनियां गांधी का कभी नाम आने पर विरोध उनकी डिग्री को ले कर नहीं बल्कि भारत की मूल निवासी न होने के कारण किया गया था। 2019 में राहुल गांधी कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थे और 2024 में भी होंगे । भाजपा समेत अन्य गैर कांग्रेस , गैर भाजपा दल उनका विरोध करेंगे तो उसका कारण राजनीतिक है न की राहुल गांधी की अकादमिक योग्यता । विपक्ष के कई नेताओ का विचार है कि सरकार से लड़ाई बेरोजगारी , महंगाई जैसे मुद्दों पर होनी चाहिए । जनता को किसी भी नेता की अकादमिक शिक्षा में कोई दिलस्चपी नहीं होती । उसे काम चाहिए होता है । उसे विकास के सपने नहीं चाहिए होते हैं , विकास होता दिखना भी चाहिए । यदि मोदी पर निजी हमलों के आगे कुछ सोंच नहीं पा रहे है तो उसके पीछे एक यह भी कारण है कि मोदी सरकार ने तमाम योजनाएं बनाई ही नहीं उन्हें जमीन पर उतारा भी । मोदी ने विकास का एक विमर्श गढ़ा । उसी को आगे बढ़ाया । जनता को मोदी की कार्यप्रणाली इतनी पसंद आयी कि सारे विपक्षी दलों के पुरजोर विरोध के बाद भी जनता हर मौके पर मोदी के पीछे खड़े हो कर विपक्ष के सारे विरोध की हवा निकाल देती है ।
राहुल गांधी की संसद सदस्यता निलंबित होने के बाद समूचे विपक्ष द्वारा छेड़े गए मोदी विरोधी आंदोलन के बाद भी विपक्ष को जनता का साथ नहीं मिला तो इसलिए कि उसे भरोसा है कि जांच एजेंसी बिना किसी विश्वसनीय इनपुट के बना बड़े रसूख वाले राजनेताओं पर हाथ नहीं डाल सकती । यदि वे बिना सबूतों के कुछ करती भी हैं तो अदालत में वह मुकदमा नहीं ठहरता । एक तरह से जनता को बड़े बड़े रसूखदार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही से जनता को सुखद आश्चर्य हो रहा है । ऐसे में जनता के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की बात ही नहीं करती बल्कि जीरो टालरेंस की नीति पर चल भी रही है । यह उसके लिए जरूरी है । यह जरूरी नहीं है कि ऐसी नीतियां लागू काने वाला डॉक्टरेट की उपाधि धारक है या अंगूठा टेक है। बेहतर होगा कि आम आदमी पार्टी को जब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिल गया है तो केजरीवाल भी छिछली राजनीति करने के स्थान पर गंभीर मुद्दे उठायें । कोई भी सरकार हो और उसकी कितनी ही उपलब्धियां हों लेकिन कहीं न कहीं न कहीं कमी जरूर होती है । कोई भी अपने में पूर्ण नहीं होता । सरकारें भी नहीं । इस कारण जो कमियां हो उन्हें उठाते हुए जनता के सामने लाना चाहिए । डिग्री की राजनीति करके उन्हें वही मिलेगा जो गुजरात उच्च न्यायालय से मिला और अब खीझ उतारने के लिए केजरीवाल अदालत के फैसले पर ही ऊँगली उठाने लगे हैं । जेल में बंद सिसोदिया भी मोदी को चिट्ठी लिख रहे हैं । तब लिख रहे हैं जबकि शिक्षा मंत्री होते हुए भी पैसों के लालच शराब के चलन को प्रमोट किया और ऐसा करके वे मंत्री बने रहने की योग्यता ही खो बैठे । डिग्रीधारक होने के बाद खो बैठे ।
मोदी की छवि खराब करने के लिए अभी पिछले तेईस वर्षों में न जाने कितने ही स्तर से षड्यंत्र रचे गए । जो तमाम दल और बुद्धिजीवी ऐसे षड्यंत्रों का हिस्सा पाए गए उनमें आम आदमी पार्टी और केजरीवाल का भी नाम शामिल हो गया है । केजरीवाल भी समझते हैं कि वे ऐसा करके मोदी और भाजपा को हरा देंगे । यह अलग बात है कि 2014 से अब तक वे कितनी ही बार वे भाजपा से हार चुके हैं । 2014 में तो वे मोदी के खिलाफ बनारस से लोकसभा चुनाव भी लड़ कर हार चुके हैं । इसलिए मोदी के डिग्री विवाद में न पड़ कर जनहित की राजनीति करनी चाहिए । मोदी की डिग्री देख लेने से न बेरोजगारी दूर होगी महंगाई का समाधान होगा और जब तक वे इन समस्याओं का रोडमैप दे पाते हैं तो ठोस टक्कर दे सकते हैं अन्यथा ऐसे विवाद समय की बर्बादी और उपहास से अधिक आगे नहीं बढ़ पाते ।