डॉ प्रशांत अग्निहोत्री
निदेशक, रुहेलखंड शोध संस्थान
ईश्वर या प्रकृति जिसे भी हम माने, उसने धरती को जितना मनुष्य के लिए बनाया, उससे अधिक जानवरों के लिए बनाया। दोनों के सह अस्तित्व और परनिर्भरता पर प्रकृति के संपूर्ण परिस्थितिकी तंत्र का संतुलन स्थापित किया। मनुष्य ने अपने निहित स्वार्थों के लिए अपनी बुद्धि के बल पर प्रकृति के अन्य सभी प्राणियों के अधिकारों का हनन करना प्रारंभ कर दिया। अपने कथित विकास,परिवहन और संपर्क को तीव्र और बेहतर बनाने के लिए उसने अन्य प्राणियों के अधिवास स्थलों में सड़कें बना डालीं। इन्फ्राट्रक्चरल विकास पर जोर देने के साथ-साथ भारत में तेजी से सड़कें बन रही हैं। इन सड़कों के बनने की गति वैश्विक कीर्तिमान स्थापित कर रही है। वर्ष 2020-21 के दौरान राजमार्ग निर्माण की गति 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन थी। इस वित्त वर्ष के दौरान 13394 कि.मी. नई सड़क का निर्माण किया गया। राजमार्गों की स्थिति में सुधार होने और उन पर बढ़ती सुविधाओं ने वाहनों की गति को भी बढ़ा दिया है। वाहनों की बढ़ती गति ने बेजुबान जानवरों की मौत के ऑंकड़े में भी इजाफा किया है। दुर्भाग्य की बात है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों का ऑंकड़ा तो सड़क और राजमार्ग मंत्रालय का शोध अनुभाग प्रत्येक वर्ष अपनी रिपोर्ट में जारी करता है, पर पूरे देश में जानवरों की सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों का कोई भी आधिकारिक ऑंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। ऑस्ट्रेलिया और कुछ यूरोपीय देशों में सरकारें इस तरह के ऑंकड़े एकत्र करती हैं। भारत में वन्यजीव अभयारण्यों में संरक्षित वन्यजीवों की मौत के मामले में रिपोर्टिंग की जाती है पर अन्य सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले जानवरों का कोई भी ऑंकड़ा नहीं रखा जाता। निरंतर जंगल कटने, वन्य क्षेत्रों में सड़कों के विस्तार और ग्रामीण क्षेत्रों से गुजरने वाले राजमार्गों के कारण जानवरों के लिए खतरा बढ़ गया है। वन्य जीव संरक्षण सोसाइटी के अनुसार वर्ष 2018 में रेल और सड़क दुर्घटनाओं में 161 वन्यजीव मारे गए। कई बार सड़क पर चलने वाले यात्रियों की अज्ञानता भी जानवरों की सुरक्षा पर भारी पड़ती है। यात्रियों द्वारा फेंके गए भोजन के पैकेट या अन्य चीजों को खाने के लालच में जानवर सड़क पर आ जाते हैं और दुर्घटना के शिकार बनते हैं। ध्यान दें तो देखेंगे कुछ विशेष दिनों जैसे मंगलवार को लोग सड़क किनारे बंदरों को कुछ न कुछ खाने को देते हैं जिससे उस दिन उनकी दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है। एक बार दुर्घटना होने पर जानवर के मृत शरीर को सड़क से हटाने की भी व्यवस्था नहीं होती जिसके चलते रात्रि के समय सियार और लोमड़ी जैसे मांसाहारी जीव उनको खाने के चक्कर में सड़क पर आते हैं और दुर्घटना का शिकार बनते हैं। बड़े जानवरों को छोड़ दें तो साॅंप,नेवला, वन बिलाव जैसे छोटे जानवर प्रायः सड़क पार करते समय वाहनों से कुचले जाते हैं। यही नहीं कई बार बहुत से पक्षी बिजली की हाई टेंशन लाइन की चपेट में आकर मारे जाते हैं। मगध विश्वविद्यालय में मोहम्मद दानिश मशरूर और अन्य के द्वारा शहरी, कृषि, नदी और जंगली क्षेत्र में हाईवे पर गाड़ियों से मारे जाने वाले जानवरों के संदर्भ में 2020-21 और 21-22 में 50 किलोमीटर के दायरे में सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के इन 2 वर्षों में 1100 जानवरों के मारे जाने की घटना रिकॉर्ड की गई। जिसमें 600 पक्षी, 170 सरीसृप, 216 स्तनधारी और 35 उभयचर प्राणी थे। पिछले कुछ वर्षों में देश में बेसहारा जानवरों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हुई है। गोवध निषेध के सख्ती से लागू होने के परिणामस्वरुप बेसहारा गोवंश के झुंड के झुंड सड़क पर दिखाई दिखाई देते हैं। डाउन टू अर्थ मैगजीन के अनुसार वर्ष 2019 की शुरुआत में आवारा पशुओं की संख्या अकेले उत्तर प्रदेश में ही 11लाख से अधिक थी। ऐसे में सड़क पर दुर्घटना होने और उनमें जानवरों के मारे जाने की संभावना निरंतर बढ़ रही है। नागपुर म्युनिसिपल कारपोरेशन के पशु चिकित्सा विभाग द्वारा 2011-12 से जुलाई 2019 के बीच 11915 आवारा जानवरों के घायल होने की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं। इसमें कुत्ते, बिल्ली, गाय-भैंस, बकरी आदि शामिल थे। इनमें से 30% जानवरों की मौत हो गई। वहीं एक अन्य ऑंकड़े के अनुसार महाराष्ट्र के ही पुणे शहर में प्रत्येक वर्ष औसतन 1700 आवारा जानवर दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। इस संख्या को अगर समग्र देश के संदर्भ में सोचें तो जानवरों की मौत का ऑंकड़ा बहुत अधिक होगा। दूसरी ओर राजमार्गों को बनाते समय उन पर चलने वाले यात्रियों की सुरक्षा के लिए तो तमाम उपाय अपनाए जा रहे हैं पर जानवरों को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए किए जाने वाले उपायों की घोर अनदेखी की जा रही है। यद्यपि भारतीय वन्य जीव संस्थान निरंतर सड़कों को बनाए जाने में जानवरों की सुरक्षा के उपाय किए जाने पर जोर देता रहा है फिर भी ऐसे उपाय सामान्यतः दिखाई नहीं देते। केवल सड़क दुर्घटनाओं में ही नहीं वरन् ट्रेन से कटकर भी निरंतर जानवरों की मौतें हो रही हैं। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से 2021 के बीच रेल दुर्घटनाओं में 63 हजार से अधिक जानवर मारे गए, जिनमें 4 एशियाई शेर और 73 हाथी भी शामिल थे।
जानवरों की सुरक्षा की दृष्टि से विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाॅं वह जंगल के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में सड़क या रेल ट्रैक से होकर गुजरते हैं, उनके लिए अंडर पास बनाए जाने चाहिए। सड़क के किनारों को ज्यादा खड़ी ढाल वाला और चिकना बनाकर भी जानवरों को सड़क पर आने से रोका जा सकता है। जानवरों की बहुतायत वाले क्षेत्रों में सड़क के किनारों पर फेंसिंग की जा सकती है। अभी हाल ही में रेलवे द्वारा हाथियों की बहुलता वाले वन्य क्षेत्र में ऑप्टिकल फाइबर केवल बिछाकर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखकर, दुर्घटनाओं की संभावना को लगभग खत्म कर दिया गया है। इस तकनीक का प्रयोग अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता है। जानवरों की दुर्घटना के संभावित क्षेत्रों में चेतावनी के बोर्ड लगाए जा सकते हैं। राजमार्गों पर क्योंकि स्पीड ब्रेकर लगाने का प्रावधान नहीं होता इसलिए कुछ विशेष क्षेत्रों में रबर के ब्रेकर लगाए जा सकते हैं। बेसहारा गोवंश के लिए प्रभावी और व्यवहारिक नीति बनाए जाने की आवश्यकता है। पक्षियों की सुरक्षा के लिए बिजली के तारों पर रिफ्लेक्टर लगाए जाने जरूरी किए जाने चाहिए। इन सभी उपायों को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में आवश्यक रूप से सम्मिलित किया जाना चाहिए। साथ ही साथ सड़क परिवहन मंत्रालय को अपनी कार्ययोजनाओं में इसे गंभीरता के साथ शामिल करना चाहिए।