रेडियों फिर से बना देश के करोड़ों लोगों का अफ़साना

  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किए 91 एफएम ट्रांसमीटर
  • राजस्थान में भी शुरू हुए 13 एफएम रेडियों

गोपेंद्र नाथ भट्ट 

नई दिल्ली : एक समय था जब संचार साधनों में रेडियों पहलें दर्जे का माध्यम हुआ करता था। लोग समाचारोंको जानने, सूचनाओं को पाने और मनोरंजन के लिए रेडियों का सर्वाधिक उपयोग करते थे। रेडियों सिलोन औरबिनाका गीतमाला की अपार लोकप्रियता से लेकर बीबीसी तक आम लोगों तथा अभिजात्य वर्ग के लिएसूचनाओं और मनोरंजन का प्रमुख साधन रेडियों ही था। फिर वह राष्ट्रीय और प्रान्तीय समाचार अथवा चुनावपरिणाम सुनना हों , हाँकी की रनिंग कमेंट्री अथवा क्रिकेट का मैच सुनना ही क्यों न हों लोग हमेशा रेडियों सेचिपके रहते थे।

दक्षिण राजस्थान में विश्व विख्यात पर्यटन नगरी झीलों की नगरी के रूप में मशहूर उदयपुर में राजस्थानविद्यापीठ के संस्थापक पंडित जनार्दन राय नागर ने आदिवासी अंचलों में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथसमाचारों के प्रति लोगों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए साठ से सत्तर के दशक में एक नया प्रयोग कियाथा और उदयपुर शहर की घनी आबादी के मध्य जनपथ नाम से अपनी संस्था की एक नई शाखा खोली जिसपर दिवंगत कालूलाल जैन ने वर्षों तक माईक पर समाचारों का वाचन किया। जनपथ पर समाचार सुननेप्रतिदिन उदयपुर शहर के सिटी पेलेस की तलहटी में घंटाघर बाज़ार के आसपास सैंकड़ों लोगों की भीड़ जुटजाया करती थी। बाद में राजस्थान के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग ने इससे प्रेरणा लेकर उदयपुर सहित प्रदेशके प्रमुख शहरों में टेलीफ़ोन के खम्बों पर माईक लगा कर अपने सूचना केंद्रों से माध्यम से प्रतिदिन समाचारसुनाने की अभिनव गतिविधि को शुरू किया विभाग का यह प्रयोग जनता में बहुत लोकप्रिय हुआ। टाइम्स आफइंडिया के वरिष्ठ पत्रकार जी वाई पटेल ने उसे “पीपुल्स रेडियों” की संज्ञा दी और पूरे देश में इस अभिनव प्रयोगको शुरू करने का सुझाव दिया। इस प्रयोग का लाभ अनेक बार राज्य सरकार और जिला प्रशासन नेआपातकालीन परिस्थितियों में भी किया और भारत-पाक युद्ध के हालातों में ब्लेक आउट होने पर आसमानीआफ़त से बचने घरों के पास बनाई खाइयों में चले जाने की सूचना देने तथा कर्फ़्यू और धारा 144 लागू करनेआदि अन्य महत्वपूर्ण सूचनाएँ देने में भी इसका उपयोग किया गया ।

उस जमाने में रेडियों के प्रति सुदूर आदिवासी इलाक़ों के लोगों का कौतूहल देखने लायक़ था। प्रसारणक्षमताओं की सीमाओं के कारण प्रायः लोग रेडियों प्रसारणों पर स्पष्ट आवाज़ और क्वालिटी प्रोग्राम भलीभाँतिसुन नहीं पाते थे। इस कारण जनता की माँग पर भारत सरकार ने इन इलाक़ों में भी रेडियों टीवी टावर लगानेऔर आकाशवाणी केन्द्र स्थापित करने का अहम निर्णय लिया तों लोगों की खुशी की कोई सीमा नहीं रहीं।

मैं जब राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के गृह जिले बाँसवाड़ा में पीआरओ था तब वहाँ भीकेन्द्र सरकार द्वारा आकाशवाणी केन्द्र और टीवी टावर स्थापित करने का अहम फैसला लिया गया । जिलाप्रशासन ने सूचना विभाग का काम होने के कारण इस कार्य के लिए मुझे नोडल ऑफ़िसर बना कर इसमहत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का कार्य कराने का दायित्व सौंपा। इस पर हमने शहर और उसके आसपास उपयुक्त स्थानढूँढना शुरू किया । दिल्ली, जयपुर और उदयपुर से आकाशवाणी के कई अधिकारी बाँसवाड़ा आयें और यहदेख कर चकित रह गए कि आकाशवाणी और टीवी के लिए लोगों में ज़मीन देने की होड़ सी लग गई हैं।बाँसवाड़ा शहर से लगी ठीकरियाँ ग्राम पंचायत में उन दिनों ग्राम पंचायत के सरपंच रामनारायण शुक्ला थेजोकि वरिष्ठ पत्रकार भी थे को,जब मालूम हुआ कि इस प्रोजेक्ट का मैं नोडल ऑफ़िसर बनाया गया हूँ तों वेतत्काल दोड़ें-दोड़ें आयें और उन्होंने आकाशवाणी केन्द्र और आकाशवाणी कोलोनी के लिए अपनी पंचायत कीज़मीन निःशुल्क़ देने की पेशकश कर सभी को चौंका दिया। आकाशवाणी के दिल्ली से आयें अधिकारियों नेमुझे बताया कि यह ज़मीन हमें पसन्द है और हम बक़ायदा इसका भुगतान करेंगे लेकिन पत्रकार सरपंचरामनारायण जी मुफ़्त जमीन देने को अड़ गए। बाद में मेरे हस्तक्षेप से तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष दिनेशजोशी और जिला कलेक्टर की समझाईश से वे सूचना और प्रसारण मन्त्रालय की शर्तों पर ज़मीन देने को तैयारहुए। आज बाँसवाड़ा में ठीकरियाँ में प्रमुख शिक्षण और ओद्धयोगिक संस्थाओं के साथ आकाशवाणी केन्द्र काभव्य भवन और वहाँ काम करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए आकाशवाणी कोलोनी बसी हुई हैऔर आज यह इलाक़ा पहलें की तुलना में कई गुणा विकसीत हो गया है।साथ ही आकाशवाणी बाँसवाड़ा कायह केन्द्र आदिवासी संस्कृति को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

अपने नई दिल्ली पद स्थापन के दौरान भेरौंसिंह शेखावत के बाद पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने अशोकगहलोत के साथ सेवाएँ देते मैंने देखा कि गहलोत सा. हमेशा अपने साथ एक छोटा रेडियों रखते है और मुझेअपना हर प्रेस नोट आकाशवाणी को भेजने की हिदायत देते थे। साथ ही कहते थे कि गाँव और खेत खलियानोंमें तों आज भी रेडियों का ही राज है।

कालान्तर में देश भर में टेलीविजन के बढ़ते कदमों ने रेडियों को बहुत पीछें ढकेल दिया था लेकिन प्रधानमंत्रीनरेन्द्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के कारण रेडियों आज फिर से संचार साधनों की मुख्य धारा में आ खड़ाहुआ हैं। देश में रेडियो कनेक्टिविटी का विस्‍तार करने के लिए प्रतिबद्ध प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियों को जनजागरण का ज़रिया भी बनाया है ।

इसी क्रम में शुक्रवार 28 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश के विभिन्नअँचलों में 100 वॉट के 91 एफएम रेडियों ट्रांसमीटरों का उद्घाटन कर उन्हें राष्ट्र को समर्पित किया हैं ।इसमेंराजस्थान में 13 स्थानों पर भी एफएम ट्रांसमीटरों की शुरुआत हुई है जिनमें श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ एवंकरणपुर, जोधपुर जिले के फलौदी, बीकानेर जिले के खाजूवाला, चूरू जिले के सुजानगढ़, हनुमानगढ़ जिले केभादरा के साथ ही जालौर, पाली, प्रतापगढ़, बारां, भीलवाड़ा, हनुमानगढ़ और डूंगरपुर जिला मुख्यालय भीशामिल हैं।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राजस्थान सहित देश के 18 राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, नगालैंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और 2 केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 84 जिलों में 91 नए 100 वॉट के रेडियों ट्रांसमीटर स्थापित किए हैं। एफएम रेडियों के इस विस्‍तार का प्रमुख उद्देश्‍य आकांक्षीजिलों और सीमावर्ती क्षेत्रों में रेडियों के कवरेज को बढ़ाना है।

आकाशवाणी की एफएम सेवा के इस विस्तार से देश के दो करोड़ अतिरिक्त लोग इस सेवा का लाभ उठासकेंगे और लगभग 35,000 वर्ग किलोमीटर के अधिक क्षेत्र में रेडियों कवरेज का विस्तार होगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृढ़ विश्वास रहा है कि रेडियो जनता तक पहुंचने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है।रेडियो प्रसारण की अनूठी शक्ति का उपयोग करने के लिए उन्होंने “मन की बात”कार्यक्रम शुरू कराया जोआज सौ करोड़ लोगों तक पहुँच कर तीस अप्रैल को अपनी ऐतिहासिक 100 वीं कड़ी का विश्व रिकार्ड बनारहा है।