क्या कर्नाटक के चुनाव परिणामों ने दक्षिण भारत में भाजपा का प्रवेश द्वार बंद कर दिया है?

नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली : दक्षिण का सिंह द्वार (गेट ओफ सदर्न इंडिया) माने जाने वाले कर्नाटका के चुनाव परिणामों नेभारतीय जनता पार्टी के लिए दक्षिण भारत का प्रवेश का द्वार फिलहाल बंद कर दिया है?

यह सवाल कर्नाटका में सत्ताधारी भाजपा के लिए यक्ष प्रश्न बन कर उभरा है क्योंकि पिछलीं बार जोड़ तोड़ सेकांग्रेस-जेडीएस की सरकार को पदच्चूत कर सत्ता में आई भाजपा का मेजिक इस बार उत्तर भारत के हिन्दीभाषी प्रान्तों की भाँति दक्षिण में नही चल पाया है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके चाणक्य केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अनेक रेलियाँ और रोड शो कर कर्नाटका में धुआँधार प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी थीलेकिन राहुल गाँधी की भारत जोड़ों यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में शुरू हुई जन समर्थन की हवा चुनाव आते-आतेआँधी में बदल गई तथा कांग्रेस ने 224 सदस्यीय सीट वाली कर्नाटका विधान सभा में 136 सीटें हासिल करअब तक की अपनी सबसे बड़ी जीत प्राप्त कर ली है जबकि भाजपा मात्र 65 और जेडीएस 19 सीटों पर सिमटकर रह गई है और अन्य के खाते में भी 4 सीटें ही आई हैं।

कांग्रेस को पिछलीं बार मिली 80 सीटों के मुकाबले इस बार 56 सीटें ज्यादा मिली हैं। वहीं वोट शेयर की बातकरें तो उसमें भी कांग्रेस के वोट शेयर में सात प्रतिशत का स्विंग है और उसे पिछली बार के 36 प्रतिशत कीतुलना में 43 प्रतिशत वोट मिले है । दूसरी ओर बीजेपी का वोट शेयर तकरीबन 2018 के मुकाबले ही है।पिछले चुनाव में बीजेपी को 36.35 प्रतिशत वोट और 104 सीटें मिली थी , जबकि इस बार उसका वोट शेयरकरीब 3 6 प्रतिशत है। कांग्रेस और बीजेपी में सात प्रतिशत के फासले ने सीटों के अंतर को डबल कर दिया है।वहीं जेडीएस की बात करें तो उसे 2018 में 18.3 प्रतिशत वोट और 37 सीटें मिली थीं। वहीं इस बार जेडीएसके आंकड़े में सीधे पांच फीसदी की गिरावट यानि 13 प्रतिशत वोट ही मिलें है। सीटों के मामले में यह फासला19 सीटों का हो गया है। 2018 Iमें उन्हें 37 सीटें मिली थी।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गृह प्रदेश में उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मिली यहविजय अहम कही जा सकती है और कांग्रेस को इस वर्ष तेलंगाना,राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीस गढ़ आदिप्रदेशों में होने वाले विधान सभा चुनावों में भी इसका दूरगामी असर दिखने की उम्मीद है।यह संजीवनी कांग्रेसको 2024 के लोकसभा के रण में जाने के लिए नया जोश दे गई है।

अस्वस्थ होने के बावजूद कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी का कर्नाटका में चुनाव प्रचार करना तथा राहुल गाँधी तथाप्रियंका गाँधी के धुआँधार प्रचार ने कांग्रेस के लिए कर्नाटका में जीत की राह बनाई।प्रभारी रणजीत सुरजेवालाअंत तक वहाँ टीके रहे और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रेस वार्ता कर सरकारी कर्मचारियों केलिए पुरानी पेन्शन योजना सहित कांग्रेस द्वारा अपने घोषणा पत्र में जनता से किए पाँच प्रमुख वायदों को आगेबढ़ाने में तथा मारवाड़ियों को कांग्रेस के पक्ष में लाने में अहम भूमिका निभाई। इस जीत से राहुल गाँधी तथाप्रियंका गाँधी का राजनीतिक ग्राफ बढ़ा हैं।

कर्नाटका में बीजेपी की हार के छह मुख्य कारण बताए जा रहें है।

कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत स्थानीय चेहरे का नही होना रहा है।येदियुरप्पा कीजगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भीबोम्मई मतदाताओं पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल पायें वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैयाजैसे मजबूत चेहरे थे । बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को बहुत महंगा पड़ा है।

बीजेपी की हार के पीछे एक अहम कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा । कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया।करप्शन के मुद्दे परही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा।स्टेटकॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत की थी। बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांसबना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी।

कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी।बीजेपी न तों अपने कोर वोट बैंकलिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगासमुदाय का ही दिल जीत सकी,वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखनेके साथ-साथ लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदायों के वोट बैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही।

साथ ही बीजेपी का धर्म के आधार पर वोटरों के ध्रुवीकरण का दांव भी काम नहीं आया। बीजेपी के नेताकर्नाटक में एक साल से हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे। ऐन चुनाव के समयबजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं।कांग्रेस नेबजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे भगवान बजरंग बली से जोड़ दियाऔर पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया।बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव काम नहींआ सका।

भाजपा का येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना बहुत महंगा पड़ा।कर्नाटक में बीजेपी केअस्तित्व को जमाने तथा पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इसबार चुनाव में साइड लाइन रहे।पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपीने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए।येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदीतीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया।

इसके साथ ही बीजेपी सत्ता विरोधी लहर की काट भी नहीं तलाश सकी।कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ीवजह सत्ता विरोधी लहर का होना रहा ।बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगीथी। बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही।

कर्नाटका में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सोशल इंजीनियरिंग की नीति को जिसमें दलित, अल्पसंख्यक औरपिछड़ी जाति आती है तथा जिसे कन्नड़ में शॉर्ट फॉर्म में एएचआईएनडीए (AHINDA) कहा जाता है । इनजातियों की भूमिका चुनाव में निर्णायक रही । कर्नाटका की कुल आबादी में इन जातियों का हिस्सा करीब 80 फीसदी है। जबकि प्रभाव शाली जातियों में शामिल सवर्ण लिंगायत समुदाय की आबादी मात्र 9.8 फीसदी है।इसी तरह वोक्कालिंगा समुदाय भी करीब 8 प्रतिशत ही है। राज्य की क़रीब 7 करोड़ जनसंख्या में सबसेज्यादा 24 फीसदी हिस्सा दलितों का है वहीं मुसलमानों का हिस्सा 12.5 फीसदी है। अनुसूचित जन‍जातियोंऔर कुरुबास (जिस समुदाय से सिद्धारमैया आते हैं) की जनसंख्या 7-7 फीसदी है. ब्राह्मणों की जनसंख्यामहज 2 प्रतिशत ही है। इस प्रकार इस बार कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग को साधने की नीति भाजपा परभारी पड़ी है।

इसके अलावा कांग्रेस के पास कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे,डी शिव कुमार जैसे संगठन केमाहिर जाँबाज़ प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जैसे नेताओं के प्रभावी लोकल चेहरे होनाऔर उनसभी की कड़ी मेहनत और केन्द्र सरकार द्वारा उनके विरुद्ध अजमायें गए कारनामों से भी उनका नही डरना आदि बातों ने भी कांग्रेस की जीत में बड़ी भूमिका निभाई।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गृह प्रदेश कर्नाटका में कांग्रेस को मिली इस विजय से पार्टीको हिमाचल प्रदेश के बाद एक और प्रान्त में सरकार बनाने का मौक़ा मिल रहा है और भाजपा के कांग्रेस मुक्तभारत नारे के मुक़ाबले देश में अब कांग्रेस शासित चार प्रदेश हों जायेंगे लेकिन यह देखना होगा कि कर्नाटका मेंभी कहीं कांग्रेसी नेता राजस्थान की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए आपस में जंग कर इस विजय का मज़ाकिरकिरा तों नही कर देंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री और अनुभवी नेता सिद्धारमैया ने चुनाव से पूर्व घोषणा की थी कि यह उनके जीवन का अन्तिमचुनाव है,वहीं प्रदेश अध्यक्ष डी शिव कुमार मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक चेहरा बताए जाते है।दोनों ने चुनाव मेंमिली ऐतिहासिक विजय के बाद अपने अपने ढंग से पार्टी हाई कमान के नेताओं के प्रति बहुत भावुक बयान दिएहै। देखना है कर्नाटका का किंग इन दोनों दिग्गज नेताओं में से कौन बनेगा अथवा किसी तीसरे नेता के सिर परही यह सेहरा बँधेगा?