पाखंड की पराकाष्ठा है नए संसद भवन के उद्घाटन का विरोध

सुशील दीक्षित विचित्र

आखिर वही हुआ जिसकी आशा की जाती थी | नए संसद भवन के उदघाटन में अड़ंगा लगाने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज ही नहीं कर दी, याचिकावीर और विपक्ष को अपनी टिप्पणी से आईना दिखाया | तमिलनाडु के जिस वकील ने याचिका लगाई थी उसका काम ही ऐसे वैसी याचिकाएं लगाते रहना है | अपनी टिप्पणी में सर्वोच्च अदालत ने प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से संसद भवन का उद्घाटन कराने के विवाद पर स्पष्ट किया कि कार्यकारी प्रमुख (प्रधानमंत्री) संसद का सदस्य होता है जबकि संवैधानिक प्रमुख संसद का हिस्सा होता है |

इसके बाद यह विवाद समाप्त हो जाना चाहिए लेकिन इस विवाद के पीछे जो लोग हैं उनसे किसी को उम्मीद नहीं कि वे विवाद समाप्त होने देंगे | कांग्रेस तो इसे अवसर के रूप में देख रही है और अपना पेट डायलॉग बोल रही है कि लोकतंत्र की हत्या की जा रही है और संविधान की अवमानना करना भाजपा का पुराना शगल है | जो उन्नीस विपक्षी दल राष्ट्रपति मुर्मू के लिए छाती पीट रहे हैं और उनसे उद्घाटन न कराने को आदिवासियों का अपमान बता रहे हैं , यह वही लोग हैं जो राष्ट्रपति चुनाव के समय मुर्मू का विरोध कर रहे थे | कांग्रेसियों ने तो उनके लिए ऐसे ऐसे अपशब्द कहे जो सभ्य समाज में लिखे बोले नहीं जा सकते | जो शेष दल मुर्मू के लिए दुखी हैं उन्होंने भी तब उनके अपमान और हारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी | राहुल गांधी की अगुआई में इन्हीं दलों ने मुर्मू के खिलाफ यशवंत सिन्हा को खड़ा किया ही नहीं था बल्कि मतदान के समय अपने सांसदों पर दबाब भी बनाया था |

अब वही दल राष्ट्रपति के लिए आंसू बहाते नहीं थक रहे हैं | यह आंसू कितने फर्जी है इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि नए संसद भवन का जब निर्माण होना शुरू हुआ है तब कांग्रेस को तो जैसे आग लग गयी | राहुल गांधी आगबबूला हो गए | याचिका वीरों ने सुप्रीम कोर्ट जा कर इसका निर्माण रुकवाने के लिए हर संभव असंभव कोशिश की | तरह तरह के तर्क कुतर्क किये गए | और फिर मोदी के इसी कदम के ही नहीं बल्कि हर कदम पर केवल कुतर्क ही किये गए | यहां तक कि उन्होंने स्व्छच्ता का आवाहन किया तो इन्हीं उन्नीस दलों ने इस भी विरोध किया | वह तो तब किसी ने सुझाया नहीं वरना कांग्रेस समेत मोदी और भाजपा के अंधविरोध नेताओं , दलों या बुद्धिजीवियों के विशेष खेमे ने कूड़ा सिर पर लाड कर जंतर मंतर पर धरना दे कर गंदगी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का नारा लगा चुके होते | अंधविरोध का तो यह आलम है कि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ की गयी कार्यवाही का न केवल विरोध किया गया बल्कि देश विरोधी ताकतों को वाकायदा जा कर समर्थन दिया गया | पहले कम्युनिस्टों ने फिर कांग्रेस ने तो देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार को अपना स्टार प्रचारक बना रखा है जो आजकल राहुल गांधी की प्रेम की दूकान पर बैठ कर देश के खिलाफ घृणा बेचता है |

संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का कांग्रेसी दम्भ कितना खोखला है इसे देश में इमरजेंसी लगा कर पूरे देश को जेलखाने में बदल देने की घटना और समुदाय विशेष को खुश करने के लिए शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी द्वारा कोर्ट का फैसला पलट कर अध्यादेश लाने की घटना से समझा जा सकता है | पुरानी बातों को जाने दें और संवैधानिक भवनों के उद्घाटनों की बात करें तो अगर राष्ट्रपति से उद्घाटन न करना लोकतंत्र की हत्या है ही ऐसी हत्या कांग्रेस छत्तीस गढ़ में कर चुकी है | 2020 में छत्तीगढ़ के नए विधानसभा भवन का उद्घाटन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी और राहुल गांधी से कराया गया | इस समारोह से राजयपाल को दूर रखा गया | अब सवाल यह है कि सोनियां गांधी या राहुल गांधी ने हैसियत से उद्घाटन किया | दोनों तकनीकी रूप से महज एक सांसद हैं और दोनों ही राज्य के न निवासी हैं न राज्य से सांसद | फिर किस अधिकार से उन्होंने यह उद्घाटन किया ?
2014 में झारखंड और असम के नए विधानसभा भवनों का उद्घाटन यूपीए के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने किया | 2018 में आंध्र प्रदेश के नए विधानसभा भवन का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किया | इन चारो आयोजनों में राज्यपाल को न्योता नहीं दिया गया | 2023 में तेलंगाना के नए विधानसभा भवन का उद्घाटन भी मुख्यमंत्री ने किया | बिहार के मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री से करने के विरोध में हैं जबकि उन्होंने खुद बिहार विधानसभा भवन का किया था | तब उन्होंने भी राजयपाल को बुलाने की जहमत नहीं उठाई थी | इतने सारे आयोजनों में जब राजयपाल को नहीं बुलाया गया तब किसी ने न संविधान के लिए छाती पीटी और न कोई याचिकावीर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पहुंचा | इसी से स्पष्ट होता है कि यह उद्घाटन का नहीं मोदी का विरोध है और लोकतंत्र की रक्षा की ठेकेदारी लिए दलों ने जब पांच बार ऐसे ही लोकतंत्र और संविधान की अवमानना की तब उन्हें इनकी याद तक नहीं आई |

विरोध की भी एक सीमा होती है | विरोध जब तक मर्यादा में रहता है तब कहीं न कहीं स्वीकार्य होता है लेकिन जब विरोध अंधविरोध में बदल कर सारी सीमाएं लांघ जाए तो वह खीझ पैदा करता है | वे जो लोकतंत्र और संविधान के झंडाबरदार उन्नीस दल है , विरोध में केवल मर्यादाओं का उल्लंघन पार कर चुके हैं बल्कि मोदी विरोध से देश के खिलाफ खड़े होने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं | कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो सेना तक को अपनी सतही राजनीति में घसीट चुकी है | राहुल और केजरीवाल तो शत्रु देश के पकिस्तान के पोस्टर ब्याय भी बन चुके हैं | अब संसद के उद्घाटन का विरोध करके उन्नीस दल लोकतंत्र और संविधान दोनों का मखौल उड़ा रहा है | संसद भवन या विधानसभा भवन किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं होती | कांग्रेस ने इसे मोदी का महल घोषित करके अपने अंदर मोदी के प्रति निरंतर बड़ी होती जा रही घृणा का ही सार्वजनिक प्रदर्शन किया है | आप निश्चित जानिये कि यदि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की घोषणा होती तो विपक्ष का यह हिस्सा तब भी कोई न कोई बहाना बना कर उद्घाटन का विरोध भी करता और समारोह का बहिष्कार भी | याद करें नए भवन में अशोक स्तम्भ लगाया गया तो कांग्रेस और आप के नेताओं ने इसका भी विरोध किया था | नया राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बना तो उसका भी विरोध किया गया | इसलिए यह मानने के कोई कारण नहीं कि यह विरोध प्रधानमंत्री द्वारा करने और राष्ट्रपति से न कराने के कारण हो रहा है | यह तो बहाना भर है जबकि इसके पीछे मोदी सरकार को नीचा दिखाने की नौ साल पुरानी ललक है | अन्यथा अगर राष्ट्रपति संवैधानिक पद है तो राज्यपाल का भी पद संवैधानिक है | कांग्रेस छत्तीस गढ़ में विधानसभा भवन के उद्घाटन के लिए उनकी जगह सोनिया और राहुल को बुलाती है | क्यों ? क्या छत्तीसग़ढ का विधानसभा भवन कांग्रेस का कार्यालय है जो कांग्रेस के पूर्व और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष से उद्घाटन कराया गया ?

बेहतर तो यह होता कि कांग्रेस और उसके साथ खड़े विपक्षी दल अप्रिय विवाद से , ऐसे विवाद से जिससे उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं , परहेज करता | कल को संसद स्तर इसी भवन में होंगे तो क्या उन्नीस दलों के सांसद मोदी द्वारा उद्घाटन किये गए संसद भवन में घुसने से इंकार करते हुए इस्तीफ़ा दे देंगे और आगे राजनीति से सन्यास लेंगे ताकि उन्हें नए संसद भवन में न घुसना पड़े ? ऐसा कोई भी सांसद करना पसंद नहीं करेगा इसीलिये यह कहना गलत नहीं होगा कि यह विरोध करने के लिए विरोध के स्वर हैं | यह लोकतंत्र और संविधान की रक्षा का पाखंड है जिसका भेद सभी पर उजागर है | वैसे भी बहिष्कार से कुछ होना हवाना नहीं | उद्घाटन तो होगा ही , संसद के प्रतिनिधि नरेंद्र मोदी ही करेंगे | बस होगा यह कि विपक्षी दल अपनी जगहंसाई ही कराएंगे और उपहास के वैसे ही पात्र बनेंगे जैसे विभिन्न मुद्दों पर कराते आये हैं |