डॉ.संतोष पटेल
कविता पर बात करना एक बृहद विषय पर बात करना है। मुझे विवेक वर्धन के प्रकाश्य काव्य संग्रह ” जीवन की धारा” में संकलित इक्यावन कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला। इनकी कविताओं से जुड़ना यानी कवि के जीवन-जगत से जुड़ना है, जिसमें मानव-सुलभ प्रेम है, वेदना है, चिंता है, अवसाद है, नॉस्टेलजिया है, संघर्ष है , अज़नबीयत है, राजनीतिक चिंतन है और कवि का अच्छाई की स्थापना के लिए हरेक प्रकार के विद्रूपताओं के प्रति बगावत है।
विवेक वर्धन की कुछ रचनाओं को अपने संज्ञान में लाना आवश्यक है। वैसे तो इस संग्रह की समस्त रचनाएं पठनीय है और हम सबको सोचने के लिए बाध्य करती है परंतु कुछ रचनाओं के माध्यम से संग्रह को पढ़ने के लिए पाठकों को न्योता दिया सकता है।
हरिवंश राय बच्चन की एक कविता है – पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले, इसी के अनुरूप विवेक अपनी एक कविता ‘ मंजिल का सफ़र” में लिखते हैं –
“इसीलिए हर इंसान को अपने
पथ की पहचान होनी चाहिए
ताकि हम सपनों को पाने में
दुरूह रास्तों से भी जूझ सके
और उस संघर्ष के सफ़र से।”
विवेक वर्धन ने अपनी कविताओं में मानवतावाद को सर्वोपरि माना है। कवि का अंतिम ध्येय समाज में मानवता की स्थापना है। कविता से मनुष्य का मन बदलता है। धूमिल कहते हैं, “कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है।”
“मानवता सिखलाओ हमें
हम सबसे पहले मानव हैं
आदमियत बतलाओ हमें
हम सबसे पहले आदम हैं ।”
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसे संचालित करता है हमारा संविधान। कवि की लोकतांत्रिक दृष्टि देखते ही बनती है। उनकी इस कविता में -‘ संविधान है सबसे ऊपर ‘ तब जब देश में सक्रिय कुछ फासिस्ट तत्वों ने संविधान को कमजोर करने का बीड़ा उठाया और उसके ऊपर धर्म सत्ता को थोपना चाहते हैं। संविधान के पक्ष में खड़ा होना कवि के संविधानिक मूल्यों के प्रति आस्था का परिचय है और यह एक आश्वस्ति है कि हमारी युवा पीढ़ी संविधान के प्रति कितनी गंभीर है।
‘हम आजाद हैं
और हैं देश में लागू
गणतंत्र भी लागू
संविधान हमें देता है
महिलाओं को देता है
स्वतंत्र संवाद का अधिकार।’
विवेक के इस काव्य-संग्रह में जितनी भी कविताएं है उनको विभिन्न विषयों को केंद्रित करके रचनाएं लिखी गई हैं। ‘ जीवन की धारा’ काव्य-संग्रह वस्तुतः छोटी-छोटी धाराओं और धारणाओं का समुच्चय है जो जब साथ मिलकर बहती है तो जीवन की धारा को गतिशील बनाती है। वास्तव में जीवन की धारा एक रेखीय नहीं होती उसके कई सारे डायमेंशन होते हैं, अनेक संघर्षों की दास्तां होती हैं और इन्हीं संघर्ष को रेखांकित एक रचना भी है – ‘लड़कर जीतना चाहता हूं’ जिसमें कवि कहता है –
‘अब जीवन के सफ़र में
मैं तन्हा ही चलना चाहता हूँ
कोई पुकारे या ना करे
अब पीछे मुड़ना नहीं चाहता
मंज़िल पाने की इस दौड़ में
मंज़िल तक के सफ़र में
तन्हा ही चलना चाहता हूँ।’
कविता मनुष्य के पक्ष में बयान है। जीवन जगत का अनुभव कोष है। यही कारण है कि जीवन जगत में हो रहे बदलाव, आवेगों, जटिलताओं से कविताओं की दशा और दिशा का निर्धारण होता है। विवेक की इस रचना को पढ़ा जाना आवश्यक है –
“बीता वर्ष
कुछ ग़म मिला,
कुछ खुशियां दे गया,
इस बीते वर्ष के हर माह ने
लो ये वर्ष भी बीत गया,
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
बीते वर्ष ने दी है मुझको
कुछ दर्द में उलझी-सी परछाईयाँ,
नया वर्ष दे रहा
तुम्हारे स्मृतियों के सहारे ही
जीने की दुहाइयाँ।”
विवेक की कविता को मैं प्रतिपक्षधर्मी कविता मानता हूं। वह इस विकल्प को कविता की सौंदर्यात्मकता को बाधित किए बगैर व्यक्त करती है –
“बेबस किसान
धन देश का
लूटकर भागे
ऐसे बिचैलिए
उद्योगपति महान”
जिस तरह देश में चंद उद्योगपतियों को सत्ता संपोषित कर रही है और विपक्ष के इस सवाल पर सत्ता मौन है। खुली आंखों के सामने संसाधनों की लूट मची हुई है। इस विकट घड़ी में विवेक की कविता सत्ता के इस कुकृत्य के प्रतिरोध में सीना ताने खड़ी है। यही एक कवि धर्म है वरना आज भी देश में चारणों की कमी कहां है?
विवेक की कविता उनके युवा होने का एहसास कराती है। उनकी कविताओं में विविधता है। वे सजग मानव की भांति जलवायु परिवर्तन के कारण चिन्तित हैं। बेमौसम बरसात, सूखा, हिट वेव, सूखती नदियां, उजड़ रहे जंगल, विनाश होता पहाड़, लुटता खदान, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इस सारी चीजों पर कवि की पैनी नजर है। उनकी एक कविता ‘ क्या ये वही सावन है?’ में देखा जा सकता है –
“क्या ये वही सावन है?
जो छम-छम कर वर्षा करती थी,
काली-सी घटा छाती थी,
पेड़ों को नया जीवन दे जाती थी,
गांव चहचहा उठता था
क्या ये वही सावन है ?”
आज का दौर संत्रास का दौर है। आदमी, आदमी से कट रहा है। संवेदनाएं बंट गई हैं, परन्तु इस आइसोलेशन में आपका एक साथी है, वह है किताब। किताब से दोस्ती कवि के जीवन का अंतिम लक्ष्य है। पुस्तक के प्रति उसका यह मोह उसके ज्ञान के प्रति मोह का द्योतक है और ज्ञान के प्रति मोह मनुष्य को बुद्धत्व प्रदान कर सकता है बशर्ते ज्ञान की खोज को वह अनवरत जारी रखे।
विवेक वर्धन की रचनाएं उनके अनुभव से सिंचित है। थोड़ी कच्ची है थोड़ी पक्की हुई है। कुछ रचनाएं अभी पकेगीं फिर भी जिन पक्षों पर वह बात करते हैं उसमें वेदना है, करुणा है और वैचारिकी की त्रिवेणी है।
मैं आशावान हूं कि आने वाले समय में विवेक वर्धन की और भी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी और निकट भविष्य में वह बहुआयामी काव्य-संग्रह के साथ पुनः उपस्थित होंगे। मेरी शुभकामनाएं! आप इसी प्रकार अनवरत लिखते रहें।
— समीक्षक :डॉ.संतोष पटेल
पुस्तक: जीवन की धारा
लेखक: विवेक वर्धन
प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन, गाज़ियाबाद
मूल्य: 250 रुपये