मेरा परिवार हॉकी खेलने में मेरी प्रेरणा और मेरा पथ प्रदर्शक बना : नीलम

  • मुश्किल समय में भी मेरे परिवार ने मुझे हॉकी खेलने से नहीं रोका
  • बड़ी बहन ने मुझे मेरी हॉकी बेहतर करने में मदद की
  • भाई ने यह कह कर कि मैं कुछ भी हासिल कर सकती हूं मेरा हौसला बढ़ाया

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : प्रीति की कप्तानी में हाल ही में काकामिगहारा (जापान) में जूनियर महिला हॉकी एशिया कप 2023 जीतने सीधे इस साल के आखिर में सांतियागो(चिली) में एफआईएच जूनियर महिला हॉकी विश्व कप जीतने वाली खिलाडिय़ों में उनका और फुलबैक नीलम सहित हरियाणा की छोरियों का अहम योगदान रहा। भारत की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच सोनीपत (हरियाणा) का हरियाणा की खासतौर पर किसान परिवारों से आने वाली छोरियों का मार्गदर्शन का उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित कर उनके जुनून को सही दिशा देने में अहम योगदान रहा है। हरियाणा के हिसार जिले के छोटे से कैमिरी गांव की छोरी नीलम हॉकी खेलने के लिए अपने परिवार से मिले सहयोग को अपना सबसे बड़ा संबल मानती हैं। नीलम ने अपनी बड़ी बहन और चचेरे भाई को हॉकी खेलता देख हॉकी खिलाड़ी बनने की ठानी। भारत को काकामिगहारा(जापान) में जूनियर महिला हॉकी एशिया कप जिता देश का गौरव बढ़ाने वाली 19 बरस की हॉकी फुलबैक नीलम का कामयाब हॉकी खिलाड़ी बनने का सफर आसान नहीं रहा।

नीलम के कामयाब हॉकी खिलाड़ी बनने की राह में आर्थिक तंगी तो झेली ही वह घुटने और जांघ की मांसपेशी की चोटों से भी खासी परेशान रहीं। नीलम ने अपने परिवार में अपनी मां, पिता , दो बहनों और भाई के सहयोग और साझा संकल्प के बूते हर बाधा को पार किया।आर्थिक अभाव नीलम के हॉकी खिलाड़ी बनने की राह और परिवार के लिए का सबसे बड़ा रोड़ा था। जब नीलम की बहन की सीआरपीएफ में नौकरी लग गई तो उन्हें बहुत राहत मिली और तब वह आर्थिक परेशानियों को दरकिनार अपना ध्यान हॉकी पर लगा पाई। नीलम बताती हैं, ‘ मेरे पिता किसान हैं और मेरी मां गृहिणी। हमारी जिंदगी में वह दौर भी आया जब हमें बहुत आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा क्योंकि मेरे पिता परिवार चलाने के लिए पूरी तरह खेती और इस पर पैदा होने वाली फसल से होने वाली उपज पर निर्भर करते हैं। कई बार तो एक फसल लगाने में छह महीने लग जाते हैं। तब ऐसा भी समय आया कि घर में एक पैसा नहीं बचा। मुझे याद है कि मेंने एक बार दस दिन तक चलने वाले हॉकी टूर्नामेंट में शिरकत करने जाने के लिए अपनी मां से पांच सौ रुपये मांगे। घर में इतने भी रुपये नहीं थे और ऐसे मेरी मां को मेेरे लिए पड़ोसियों पैसे उधार लेने पड़े। बहुत मुश्किल समय में भी मेरे परिवार ने मेरा और मेरे फैसले का सम्मान करते हुए मुझे कभी हॉकी खेलने से नहीं रोका। एक बार जब मेरी बड़ी बहन की नौकरी लग गई तो उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मैं आर्थिक तंगी की चिंता छोड़ कर अपना हॉकी खेलने पर लगाउं। मेरी बहन ने अपनी पहली नौकरी लगने के बाद मुझे महंगे जूते और बढिय़ा हॉकी स्टिक भेंट की। मेरी बहन हॉकी के अभ्यास के लिए मुझे मैदान पर भी ले जाती थी।
यहां तक साई सेंटर, हिसार में नीलम का प्रवेश आसान नहीं था क्योंकि 2012 और 2013 में चयन स्पद्र्धा में नीलम को नकार दिया गया। नीलम ने हिम्मत नहीं हारी और अंतत: 2014 में उन्हें साई सेंटर में दाखिला मिल गया। साई सेंटर में प्रवेश के बाद चोट के चलते वह दो बरस तक किसी भी टूर्नामेंट में शिरकत नहीं कर पाई और तब भी मुश्किल घड़ी में उन्होंने अपने परिवार के सहयोग से इस बाधा से भी पार ली।

नीलम बताती हैं, ‘जैसे ही मैंने साई हॉस्टल में दाखिला लिया तो चोट लग गई। कभी मेरा टखना टूट गया तो कभी मेरी जांघ की मांसपेशी में खिंचाव आ गया। इसके चलते में दो बरस तक एक भी टूर्नामेंट नहीं खेल पाई। मैं एक महीने अभ्यास करती और एक महीना आराम। मेरा परिवार बराबर मेरे साथ खड़ा रहा। मेरा परिवार हॉकी खेलने में मेरी प्रेरणा और मेरा पथ प्रदर्शक बना। परिवार के सहयोग से मैं चोट से उबर कर फिर हॉकी खेल पाई। मेरी सबसे बड़ी बहन खुद हॉकी खिलाड़ी है। सीआरपीएफ की हॉकी टीम में हॉकी खेलने वाली मेरी बड़ी बहन ने मुझसे अपनी हॉकी की जानकारी साझा कर मुझे मेरी हॉकी बेहतर करने में मदद की। मेरे भाई ने यह कह कर मैं अपने बैच की सर्वश्रेष्ठï खिलाड़ी हूं और कुछ भी हासिल कर सकती हूं बराबर मेरा हौसला बढ़ाया। मेरी मां बराबर यह कहती रही मैं चोट से जल्द ही उबर कर बड़े टूर्नामेंट में खेलूंगी। कुल मिलाकर मुझे बराबर अपने परिवार का सहयोग मिला और परिवार का सहयोग मेरा हमेशा सबसे बड़ा संबल है।’