- हमारी टीम की नौजवान खिलाड़ी जिम्मेदारी लेने को तैयार है
- भारतीय हॉकी वाकई सही दिशा में आगे बढ़ रही है
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : भारत की कप्तान और दुनिया की बेहतरीन गोलरक्षक में से एक सविता आगामी सितंबर -अक्टूबर में हांगजू (चीन) एशियाई खेलों के लिए अपनी टीम की तैयारियों और इनमें स्वर्ण पदक जीतने का पूरा विश्वास है। अभी हाल ही में साल की सर्वश्रेष्ठï भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी के लिए बलबीर सिंह सीनियर अवॉर्ड से नवाजी गई सविता ने ‘हॉकी ते चर्चाÓ के दौरान कार्यक्रम में कहा, ‘ पिछले एशियाई खेलों में हमारी भारतीय टीम जापान के हाथों दिल तोड़ देने वाले बेहद करीबी फाइनल में 1-2 से हार कर बहुत करीब से स्वर्ण पदक जीतने से चूक गई थी। हमारा मानना है कि इस बार हमारी भारतीय महिला हॉकी टीम एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लिए पहले से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध है। हमारी हर खिलाड़ी जानती है कि एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने से हमारी भारतीय टीम सीधे अगले साल पेरिस में होने वाले ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर लेगी। हमारे यही सबसे अच्छी स्थिति है । हम एशियाई खेलों में स्वर्ण जीत हम अपना ध्यान एफआईएच प्रो लीग और उसके बाद पेरिस ओलंपिक 2024 पर लगा सकते हैं।’
टोक्यो ओलंपिक के बाद भारत की महिला हॉकी टीम की कप्तानी संभालने वाली सविता जोर देकर कहती हैं, ‘ मैं भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान और गोलरक्षक की दोहरी जिम्मेदारी का लुत्फ उठा रही हूं। जब आप अपनी टीम की कप्तानी करती हैं तो आप पर अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है। मैं जब कप्तान नहीं भी थी तब भी मैं जानती थी कि मुझे टीम के नेतृत्व की जिम्मेदारी साझा कर बतौर गोलरक्षक अपनी टीम की मदद करनी है। अपनी भारतीय टीम की सीनियर खिलाड़ी के नाते मेरी यह जिम्मेदारी है कि मैं टीम की नौजवान और कम अनुभवी साथियों के साथ अपना अनुभव बात कर उनकी मदद करूं। जहां तक हमारी भारतीय टीम ीम में परस्पर सहयोग की भावना की बात तो मैं यह केवल कप्तान और उपकप्तान की ही जिम्मेदारी नहीं है। यहां तक हमारी टीम की नौजवान खिलाड़ी जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं और हम उनमें यह भावना भरने के लिए अपनी चीफ कोच यॉकी शॉपमैन की आभारी हैं। मेरा मानना है कि हर किसी को किसी दूसरे को शामिल किए बिना मैदान पर अपने फैसलो लेने में सक्षम होना चाहिए।’
सविता ने पिछले एक दशक में भारत में महिला हॉकी के विकास और उसे मिली पहचान की बाबत कहा, ‘ यदि मैं आज की महिला हॉकी की स्थिति की तुलना 2008 की हॉकी से करू जब मैं भारतीय टीम में आई थी तो तब से बेहद बड़ा बदलाव यह आया है। अब महिला हॉकी के लिए देश में सम्मान कई गुना बढ़ा है चाहे यह सुविधओं की बात हो , मौकों और पहचान महिला हॉकी को उसका हक मिल रहा है। यहां तक कि हॉकी इंडिया सालाना हमारे लिए बड़ी प्रेरणा है। जब यह अवॉर्ड शुरू हुआ था तब मैं कभी यह सोचा तक नहीं था कि पुरुष टीम के गोलरक्षक की बजाय महिला हॉकी टीम की गोलरक्षक को हॉकी इंडिया सालाना अवार्ड के लिए चुना जाएगा। जब मैंने हॉकी खेलना शुरू किया और तब हॉकी खिलाडिय़ों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी मुझे रोजगार के लिए नौ बरस इंतजार करना पड़ा। ऐसी भी खिलाड़ी थी जिन्हें दो वक्त का खाना भी मयस्सर नहीं था। अब हालात बहुत बदल गए हैं अब हम खिलााड़ी अपने परविार के लिए घर बना पा रही हैं। अब हॉकी खिलाडिय़ों के पास नियमित नौकरी है। हमारी टीम की सबसे नौजवान खिलाड़ी की पैसे के लिहाज से स्थिति अच्छी है। यह दर्शाता है कि भारतीय हॉकी वाकई सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं।’