ओम प्रकाश उनियाल
हमारे पौराणिक ग्रंथ मनु-स्मृति में एक श्लोक है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’। तो क्या भारतभूमि में इसका वास्तव में अनुसरण किया जा रहा है? जो इस सवाल का समर्थन कर रहे होंगे शायद वे भी मात्र दिखावे के तौर पर कर रहे होंगे। ताकि समाज में दिखावा बरकरार रहे। ऐसा कौन-सा घर है जहां नारी को स्वतंत्रता मिली हो। घर में उसकी लगाम परिवार के सदस्यों के हाथों में होती है और बाहर समाज के ठेकेदारों के हाथों में। खासतौर पर उस पुरुष प्रधान समाज के हाथों में जो उसको हमेशा से दबाता आ रहा है। आज नारी आधुनिकता के रंग में कितना ही रंग ले, कितनी ही उच्च-शिक्षा ग्रहण कर ले, कितने ही उच्चस्थ-पद पर आसीन हो, तरह-तरह की बंदिशें उसका पीछा नहीं छोड़ती। बंदिशों का जाल उसके इर्द-गिर्द लिपटता ही रहता है। जहां मणिपुर जैसी बर्बरता की घटना ने देश को शर्मशार कर डाला हो, भला वहां महिला-सुरक्षा, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारों की अहमियत कहां रह जाती है। इस घटना ने सरकार से लेकर समाज व देशवासियों के मुंह पर ऐसा करारा तमाचा जड़ा है जिसका छाप कभी नहीं मिट सकता। इस प्रकार से नारी को प्रताड़ित किया जाना चिंतनीय विषय है। ऐसी घटनाओं को रोकने में सरकारों के ही भरोसे नहीं बल्कि नारी को स्वयं के भीतर आत्मविश्वास जगा कर, एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। ऐसी घटनाओं पर राजनीति करने वाली महिलाओं को मुंहतोड़ जवाब देकर उनसे किनारा करना होगा। वरना निकट भवि्ष्य में महिलाएं कूप मंढूक बनकर ही रह जाएंगी।