अरुण कुमार चौबे
समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ कि मधयप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव अक्टूबर/नवंबर में संभावित हैं, इस संदर्भ में समाचार पढ़ा कि चुनाव में प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल होने के दस दिन पहले तक मतदाता सूची में नाम जुड़वाए जा सकते हैं। चुनाव आयोग के संज्ञान में यह होना चाहीए, चुनाव आयोग ने स्वयं यह अधिसूचना जारी की है या राजनीतिक दलों का मनगढ़ंत शिगूफा है, इसका पता नहीं है। यदि चुनाव आयोग ने इस पर सहमति दी है तो यह सीधे तौर पर राजनीतिक दलों के पक्ष में फर्जी वोटिंग को प्रोत्साहन देने जैसा साबित हो सकता है। क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल इसे अपने अपने पक्ष में भुनाने में पीछे नहीं रहेगा। इस समय जो मतदाता सूची में नाम जुड़ावाने की प्रक्रिया चल रही है उसमें तो अभी निर्वाचन आयोग के पास पर्याप्त समय है कि वो दावे अपत्ति बुलाकर मतदाता सूची में संशोधन कर सकता है, नामांकन के दस दिन पहले तक मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की सुविधा राजनीतिक दलों के लिए पाप करने का खुला मौका देने जैसा साबित हो सकता है। वैसे भी मतदान प्रक्रिया संपन्न कराने वालों की आंख में धूल झोंक कर या खुले तौर पर चुनाव आयोग के नियम कायदों को चुनौती देना राजनीतिक दलों के लिए बहुत मामूली बात है। एक मतदान केंद्र पर भ्रम फैलाकर दूसरे मतदान केंद्र पर फर्जी मतदान करना राजनीतिक दलों का खुला खेल है। अपराधी तत्व कुर्ता पायजामा पहने गले में राजनीतिक रंग का अंगोछा डालकर मतदान केंद्रों पर दबंगता करते हैं मतदाताओं को भयभीत करते हैं मतदान केंद्रों पर कब्जा कर लेते हैं ।
कौनसा मतदान केंद्र संवेदनशील है और कौनसा संवेदनशील नहीं है यह तय करना मुश्किल है। राजनीतिक दलों के बूथ कार्यकर्ता लगातार हंगामा और मतदान प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयत्न करते हैं। पुलिस का एकाध सिपाही या अधिकारी उस दिन अपराधी तत्वों का बाल भी बांका नहीं कर सकता है। अपराधी राजनीति का चोला धारण किए रहते हैं। यह सब सभी चुनावों में होता है। इस पर मतदाता सूची में नामांकन के दस दिन पहले तक मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया राजनीतिक दलों के महापाप को प्रोत्साहित करने जैसा है। अभी पर्याप्त समय चुनाव आयोग के संज्ञान में यह बात है तो चुनाव आयोग को इसे तत्त्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और मध्यप्रदेश सहित जहां जिन राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो रहे हैं, उन राज्यों के चुनाव आयोग से भी जवाब तलब करना चाहिए। यदि यह राजनीतिक दलों का शिगूफा है तो चुनाव आयोग को प्रसार माध्यमों से स्पष्टीकरण देना चाहिए कि मतदाता सूची में कब तक नाम जुड़वाए जा सकते हैं दावे आपत्तियों के निराकरण के बाद मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन कब होगा यह भी बताना चाहिए। अब मतदाता सूची फोटोयुक्त है अतः मतदान केंद्रों के अंदर राजनीतिक दलों के पोलिग एजेंट बैठने की व्यवस्था समाप्त करना चाहिए क्योंकि ये एजेंट मतदान अधिकारियों और कर्मचारियों पर दबाव डालते हैं और फर्जीवाड़े की मदद के लिए बैठते हैं। वहीं मतदान केंद्र पर प्रत्येक मतदाता के हस्ताक्षर कराने के स्थान पर मतदाताओं के दोनों हाथ के अंगूठों की छाप लेना चाहिए चाहे वो शिक्षित हो या अशिक्षित सभी के लिए अंगूठा लगाना अनिवार्य होना चाहिए क्योंकि हस्ताक्षर फर्जी बन सकते हैं फिंगर प्रिंट हमेशा एक जैसे रहते हैं। कोई भी पाप किसी भी युग में शत प्रतिशत नहीं मिट सकता है अपितु कुछ सख्ती से कुछ हद तक नियंत्रित हो सकता है। मतदान प्रक्रिया के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक और सैन्य अधिकारियों के द्वारा मतदान प्रक्रिया संपन्न होना चाहिए। क्योंकि राज्य सरकार के मातहतों के वेतन भत्ते आदर्श आचार संहिता से पहले इसीलिए बढ़ाए जाते हैं कि वो केंद्र या राज्य के सरकार में सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल के पक्ष में रहें चाहे मतदान हो या मतगणना। यदि चुनाव के एक साल पहले से ही सरकारी मातहतों के वेतन भत्तों की वृद्धि पर चुनाव आयोग रोक लगा दे तो सत्ता के मठाधीशों पर नकेल कसी जा सकती है। चुनाव आयोग यदि अपने आप में निष्पक्ष रहे राजंतिक दलों के प्रति तटस्था का रवैया रखे तो कोई भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। देश की सैन्य शक्ति के साथ ही चुनाव आयोग का निष्पक्ष रहना और सख्त रहना जरूरी है।