क्यों मोदी ने संसद पर हमले को किया याद

आर.के. सिन्हा

भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिये 13 दिसंबर, 2001 काला दिन था। उस दिन देश के दुश्मनों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर को निशान बनाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए संसद पर हुए उस हमले का उल्लेख करके उन शूरवीरों के प्रति देश की कृतज्ञता को ज्ञापित किया जिनकी बहादुरी के कारण ही संसद भवन के अंदर आतंकी घुस नहीं सके थे। तब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस दिन विपक्षी सांसद राज्यसभा और लोकसभा में हंगामा काट रहे थे। सदन को तत्काल 45 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संसद से घर की ओर जा चुके थे। हालांकि, उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सांसद संसद भवन में ही मौजूद थे। तभी सफेद एंबेसडर कार से जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के पांच आतंकी संसद भवन परिसर में प्रवेश करते हैं। भारत के दुश्मनों ने संसद भवन में दाखिल होते ही ताबड़तोड़ गोलीबारी चालू कर दी थीं।

जिस दिन संसद भवन पर हमला हुआ था उस दिन दिल्ली में गुलाबी धूप खिली हुई थी। किसी ने अपने ख्वाबों में भी नहीं सोचा था कि आज संसद भवन पर हमला करने का कोई साहस करेगा। संसद भवन परिसर में धमाकों की आवाजें सुनकर लालकृष्ण आडवाणी ससंद भवन से बाहर आते हैं। तभी सुरक्षाकर्मी उन्हें रोक देते हैं, हमले की जानकारी देते हैं। इतना सुनते ही उपप्रधानमंत्री आडवाणी ससंद भवन में स्थित अपने कार्यालय में चले जाते हैं और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन करते हैं।

संसद पर हुए हमले में राज्यसभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव, मातबर सिंह नेगी, केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी, दिल्ली पुलिस के उप निरीक्षक रामपाल, नानक चंद, हेड कॉन्स्टेबल ओम प्रकाश, बिजेन्दर सिंह और घनश्याम तथा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के एक माली देशराय शहीद हो गये थे। कृतज्ञ राष्ट्र इन शहीदों को सदैव याद रखेगा। इन्होंने भारत विरोधी ताकतों की कोशिशों को नाकाम कर दिया था। बेशक, यदि संसद भवन में तैनात बहादुर सुरक्षाकर्मियों ने आतंकियों का कसकर मुकाबला न किया होता तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था।

संसद भवन पर हुए उस हमले में सबसे पहले केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की कमलेश कुमारी यादव ने वतन के लिये अपनी जान का नजराना पेश किया था। कमलेश कुमारी की ड्यूटी संसद भवन के गेट नंबर एक पर थी। कमलेश कुमारी ने देखा कि एक एंबेसेडर कार डीएल3सीजे 1527 वहां से बिना उनकी अनुमति लिए संसद में तेजी से अंदर चली गई। कमलेश कुमारी को गड़बड़ नजर आई। वो भागकर अपने गेट को बंद करने लगीं और फिर उन्होंने बाकी गेटों पर तैनात अपने साथियों को सतर्क भी कर दिया। इसी दौरान चेहरे पर नकाब ओढ़े आतंकियों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। उन्हें 11 गोलियां लगीं। यह 11.50 बजे की घटना है। अगर कमलेश कुमारी ने तुरंत अपने सहयोगियों को अलर्ट न किया होता तो आतंकियों को संसद भवन में बम विस्फोट करने का मौका मिल जाता। आतंकियों के पास एके-47 और हैंड ग्रेनेड थे। कहना होगा कि संसद पर हमले के कुछ पलों के भीतर ही सुरक्षा कर्मी आतंकियों से टक्कर लेने के लिये तैयार हो गये थे। तब ही एक आतंकी ने गेट नंबर-एक से संसद भवन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। इसके बाद उसके शरीर पर लगे बम में भी ब्लास्ट हो गया। फिर पहले से संसद भवन परिसर में घुस चुके तीन आतंकियों को मार दिया गया। इसके बाद बचे हुए आखिरी आतंकी ने गेट नंबर-5 की तरफ दौड़ लगाई, लेकिन वो भी जवानों की गोली का शिकार हो गया।

बहरहाल, संसद हमले के दो दिन बाद ही 15 दिसंबर 2001 को अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया। इन सबने संसद पर हमले की साजिश रची थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु को मौत की सजा सुनाई। उसे 9 फरवरी 2013 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटका दिया गया। पूरे मामले की जांच के दौरान पता चला था कि अफजल ने पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग ली थी।

बहरहाल, अब देश की संसद को अपना नया भवन मिल गया है। बेशक, देश आतंकवाद के खिलाफ एक साथ मिलकर जुलकर लड़ता रहेगा। जब भी देश के सामने आतंकवाद से जुड़े सवाल आयेंगे तब भारत का उत्तर कठोर ही होगा। आतंकवाद के बिन्दु पर सभी राजनीतिक दल और सारे देश की आम जनता एक हैं। कहीं कोई मतभेद नहीं है। इसके साथ ही देश चाहेगा कि नए संसद भवन में कम से कम उन दो प्रस्तावों पर अमल करने की दिशा में भी भी पहल हो जिन्हें देश की संसद ने पारित किया हुआ है। बता दें कि देश की संसद में 8 नवंबर,1962 को उस प्रस्ताव को रखा गया था जिसमें चीन से देश के उस हिस्से (अक्सईचिन) को वापस लेने के संबंध में जिसपर चीन ने 1962 की जंग के बाद कब्जा लिया था। प्रस्ताव में कहा गया था- “ये सदन पूरे विश्वास के साथ भारतीय जनता के संकल्प को दोहराना चाहता है कि भारत की पवित्र भूमि पर से आक्रमणकारी को खदेड़ दिया जाएगा। इस बाबत भले ही कितना लंबा और कठोर संघर्ष करना पड़े।” इस प्रस्ताव को 14 नवंबर को पारित कर दिया।

जब भी देश की पहली संसद भवन का इतिहास लिखा जायेगा तब उसमें 22 फरवरी,1994 का अवश्य उल्लेख होगा। उस दिन संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर अपना हक जताते हुए कहा था कि “पी०ओ०के०” भारत का अटूट अंग है। पाकिस्तान को उस भाग को छोड़ना होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है। संसद के प्रस्ताव का संक्षिप्त अंश कुछ इस तरह से है-

“यह सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है- (क) जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। (ख) भारत में इस बात की क्षमता और संकल्प है कि वह उन नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब दे जो देश की एकता,प्रभुसत्ता और क्षेत्रिय अंखडता के खिलाफ हो।”

यही कुछ कारण थे कि प्रधान मंत्री मोदी ने 13 दिसम्बर 2001 के शहीदों को अपनी भावभीनी श्रधांजलि अर्पित कर देश की जनता की ओर से अमर शहीदों को अपनी कृतज्ञता अर्पित की I

इस बीच, देश की चाहत है कि नये संसद भवन में वाद,विवाद और संवाद के लिये सबको खूब मौका मिले और देश का लोकतंत्र मजबूत होता रहे ।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)