ग्रामीणों का सशक्‍त बना रही समावेशी एआई प्रणाली

बिशन पपोला

तकनीकी विकास ने रोजगार से संबंधित जटिलताओं को एकदम आसान कर दिया है। इस दौर में इसका जितना लाभ प्रोफेशनल्‍स उठा रहे हैं, उतना ही लाभ ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग भी उठा रहे हैं। यानि ग्रामीण भी अब तकनीकी सुविधाओं से बिल्‍कुल भी अछूते नहीं हैं। तकनीकी प्‍लेटफॉर्म पर बहुत सारे ऐसे काम हैं, जिन पर काम करने के बाद लोग अच्‍छी-खासी कमाई कर लेते हैं। ऐसा ही एक प्‍लेटफॉर्म आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भी है। भारतीय डेटा स्‍टार्टअप कंपनी “कार्या” इस समावेशी एआई प्रणाली को आगे बढ़ाकर देश की स्‍थानीय और वंचित समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्‍त बनाने का काम कर रही है, अब ग्रामीण कार्यबल को जॉब के लिए इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है, क्‍योंकि यह भारतीय डेटा स्‍टार्टअप कंपनी उन्‍हें डेटा कैप्‍चर, लेबल, एनोटेट जैसा महत्‍वपूर्ण कार्य देकर उन्‍हें इस काम के एवज में अच्‍छा-खासा पैसा दे रही है। स्थिति यह है कि ग्रामीण अब अपनी पारंपरिक जॉब के मुकाबले इस एआई प्रणाली के माध्‍यम से कहीं अधिक पैसा कमा रहे हैं।

यह प्रणाली कितनी कारगर साबित हो रही है, इसको टाइम मैगजीन में बिली पेरिगो द्वारा- एआई के पीछे काम करने वाले शायद ही इसके प्रतिफल देख सकें, भारतीय स्‍टार्टअप इसे ठीक करना चाहता है, शीर्षक लेख से भी समझा जा सकता है। उन्‍होंने जिस तरह भारत के डेटा कर्मियों के जीवन की पड़ताल की है, उससे इस प्रणाली के व्‍यापक सकारात्‍मक परिणामों के बारे में पता चलता है कि आखिर “कार्या” इस समावेशी एआई प्रणाली को कैसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है।

हकीकत यह है कि इस प्रणाली के तहत काम करने वाले लोग किस तरह अपना जीवन बदल रहे हैं, इसके बहुत सारे उदाहरण लेख में दिए गए हैं। इसमें से एक उदाहरण 30 साल की चंद्रिका भी है। कर्नाटक के अलहल्‍ली और चिलुकावाड़ी में उनके बैंक खाते हैं, जिनमें महज 2.25 डॉलर यानि मात्र 184 भारतीय रुपए थे, लेकिन उसने जब एआई प्रणाली के तहत मिलने वाला डेटा कैप्‍चर सहित कुछ अन्‍य काम किया तो वह एक माह में 2, 570 रुपए यानि 31.30 डॉलर कमाने में सफल हुई।

अपनी पारंपरिक जॉब में जहां उसे पैसों के लिए महीने के अंत तक इंतजार करना पड़ता था, वहीं अब उसकी कमाई के पैसे कुछ ही घंटों में उसके बैंक खाते में आ जाते हैं। यह जानकर हैरानी होगी कि मध्‍य व दक्षिणी भारत में लगभग 60 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाने वाली अपनी मूल भाषा कन्‍नड़ में टेक्‍स्‍ट को जोर से पढ़ने जैसे सरल कार्य के माध्‍यम से चंद्रिका ने लगभग 5 डॉलर प्रतिघंटा कमाई की है, जो भारतीय न्‍यूनतम वेतन से 20 गुना अधिक है। इतना ही नहीं, इसमें अतिरिक्‍त भुगतान पाने का भी विकल्‍प है, जिसमें 50 प्रतिशत वोनस शामिल है, जो वॉयस क्लिप की सटीकता सत्‍यापित होने के बाद दिया जाता है।

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि तकनीकी का क्रांतिकारी दौर कितना लाभप्रद साबित हो रहा है। ऐसा ही उदाहरण, 21 साल के कनकराज एस. भी हैं। वह कॉलेज में पढ़ते हैं, लेकिन उन्‍हें अपने किताबों और ट्रांसपोर्ट से संबंधित खर्चों को पूरा करने के लिए खेतों में काम करना पड़ता था, जिससे उन्‍हें एक दिन में 350 रुपए यानि 4 अमेरिकी डॉलर मिलते थे, लेकिन भीषण गर्मी में यह काम उसके लिए आसान नहीं था, लेकिन जब से एआई प्रणाली के तहत उन्‍होंने काम शुरू किया, तब से उनके लिए पैसा कमाना आसान हो गया है। निश्चित तौर पर ये उदाहरण इस बात की तस्‍दीक करते हैं कि आने वाले समय में यह प्‍लेटफॉर्म हर ग्रामीण के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगा।

भारतीय डेटा स्‍टार्टअप कंपनी “कार्या” जिस सिद्धांत और व्‍यवहारिकता के साथ काम कर रही है, वह अपने-आप में प्रेरणादायक है, क्‍योंकि कंपनी स्‍थानीय गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ भी सहयोग करती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि नौकरी के अवसर सबसे पहले उन लोगों को मिले, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। लोग इस प्रणाली के तहत इसीलिए भी काम करना चाहते हैं, क्‍योंकि उक्‍त भारतीय स्‍टार्टअप कंपनी न केवल प्रति घंटा न्‍यूनतम 5 डॉलर प्रदान करती है, बल्कि उनके कार्यों के दौरान उत्‍पन्‍न डेटा का वर्चुअल स्‍वामित्‍व भी प्रदान कर उन्‍हें सशक्‍त बनाने का काम करता है।

लिहाजा, जब भी यह डेटा दोबारा बेचा जाता है, तो कार्यबल को उनकी पूर्व मजदूरी के अलावा अतिरिक्‍त आय भी मिलती है। इस परिपेक्ष्‍य में इस प्रणाली को अनूठे मॉडल की संज्ञा दी जाए तो इसमें कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी, क्‍योंकि यह मॉडल खुद को अलग करता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति सुधरने के साथ ही हाशिये पर पड़ी भाषाओं को भी बल मिल रहा है।