गोविन्द ठाकुर
मोदी सरकार की कई दूसरे क्रांतकारी कानून और प्रस्ताव की तरह एक और ज्वलंत प्रस्ताव एक देश एक चुनाव लटकता जा रहा है। जिस तरह मोदी सरकार नें इसे लेकर गर्मजोशी दिखाई थी और लगता था कि 2024 में ही लागू हो जायेगा। वह अब खुद सरकार की मुंह देख रही है। जिस तरह से विधि आयोग और दूसरे संबंधित विभागों ने हाथ खड़ा कर दिया उससे तो लगता है कि 2029 से पहले संभव ही नहीं है। पूर्व राष्टृपति रामनथ कोविद की अध्यक्षता में पहली बैठक में कोई आगे की नतीजा सामने नहीं आया ऐसे में में लगता है कि इनकी कमिटी की रिपोर्ट में भी विधि आयोग की संभावना ही होगी। यहां भी पहले जनगणना और परिसीमन हो जाये तभी एक साथ चुनाव संभव है। लगता है सरकार की यह क्रांतकारी मुददा भी पिट गया है और ठंढे बस्ते की ओर जा रहा है। देखते एक रिपोर्ट—
महिला आरक्षण की तरह ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का मामला भी परिसीमन के साथ जोड़ दिया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि परिसीमन के बाद ही लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसका मतलब है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव के बाद पहले जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन का काम होगा और तब महिला आरक्षण भी लागू होगा और सारे चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसका यह भी मतलब है कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले तक सारे राज्यों के चुनाव वैसे ही होते रहेंगे, जैसे पहले पहले होते रहे हैं। यानी किसी भी राज्य का चुनाव न तो समय से पहले होने जा रहा है और न किसी राज्य का चुनाव टलने जा रहा है।
असल में पिछले दिनों 22वें विधि आयोग की ओर से भी यह संकेत दिया गया था कि 2029 से ही एक देश, एक चुनाव का नियम लागू होगा। हालांकि विधि आयोग ने परिसीमन के बारे में कुछ नहीं कहा था। उसने कहा था कि कुछ राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल घटा या बढ़ा कर 2029 में सबका चुनाव एक साथ कराया जाएगा। उसकी रिपोर्ट जल्दी ही आने वाली है। बताया जा रहा है कि विधि आयोग इसी लाइन पर सिफारिश करने वाला है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली आठ सदस्यों की कमेटी भी यही सिफारिश करेगी। बताया जा रहा है कि कोविंद कमेटी अपनी सिफारिश में परिसीमन का क्लॉज डाल सकती है।
ध्यान रहे भारत में परिसीमन पर 2026 तक रोक है। उससे पहले लोकसभा की सीटों की संख्या में बदलाव नहीं हो सकता है। वैसे केंद्र सरकार चाहती तो संविधान में संशोधन करके यह सीमा पहले ही खत्म कर सकती थी। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार इसे बनाए रखना चाहती है। सो, एक देश, एक चुनाव के लिए 2026 तक अनिवार्य रूप से इंतजार करना होगा। उसके बाद परिसीमन आयोग का गठन होगा और सीटों की संरचना और संख्या दोनों में बदलाव होगा। कुछ राज्यों में भी परिसीमन का काम हो सकता है। पूरे देश में परिसीमन के काम में लंबा समय लग सकता है। उस समय सीटों की संख्या बढ़ाने का क्या फॉर्मूला बनता वह भी देखना होगा क्योंकि जनसंख्या के आधार पर सीटें बढ़ाने के फैसले से दक्षिणी राज्य नाराज होंगे। उससे उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और ज्यादा आबादी वाले उत्तर भारतीय राज्यों का वर्चस्व स्थापित हो जाएगा।
बहरहाल, रामनाथ कोविंद कमेटी की दूसरी बैठक जल्दी ही होने वाली है, जिसमें विधि आयोग, चुनाव आयोग और सभी राजनीतिक दलों की राय ली जाएगी। आम लोगों की भी इस मामले में ली जा सकती है। जानकार सूत्रों का कहना है कि इस पर लगभग सहमति है कि परिसीमन के बाद सारे चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की जाए। यह भी कहा जा रहा है कि एक देश, एक चुनाव में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव शामिल किए जाएंगे। स्थानीय निकायों के चुनाव को अलग रखा जाएगा क्योंकि उसकी प्रक्रिया जटिल होती है। एक पंचायत में कई सदस्यों के चुनाव होते हैं। इसलिए उसे लोकसभा और विधानसभा के साथ मिलाने पर जटिलता बढ़ जाएगी। वह चुनाव राज्यों पर ही छोड़ा जाएगा।