जम्मू-कश्मीर में प्रजातांत्रिक चुनाव आवश्यक

प्रो. नीलम महाजन सिंह

लद्दाख के हालिया चुनाव नतीजों ने हिमालय क्षेत्रफल में एक नई राजनीति की शुरुआत की है। नतीजे कश्मीर से लेकर लद्दाख तक असंतोष के व्यापक निहितार्थों को दर्शाते हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री, उमर अब्दुल्ला ने सरकार से जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का आग्रह किया है। उमर का कहना है कि “लोकतांत्रिक शासन न होने के कारण जम्मू-कश्मीर में आक्रोश उबल रहा है।” अब समय आ गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए। लोग पीड़ित हैं क्योंकि उन्हें निर्वाचित सरकार के उनके वैधानिक अधिकार से लगातार वंचित किया जा रहा है। दूसरी ओर, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कृष्ण कौल, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई व न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने जे.-के. के अनुच्छेद 370 और 35-ए की बहाली से संबंधित याचिकाओं के लिए आदेश सुरक्षित रख लिया है। लद्दाख के चुनाव परिणाम ने स्थानीय प्रशासन को परेशान कर दिया है। ‘कारगिल परिषद’ सीटों के लिए भाजपा की महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हुईं। जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठबंधन ने कुल 26 निर्वाचित सीटों में से 22 सीटें जीतीं। भाजपा ने केवल 2 सीटें जीतीं और शेष 2 सीटें निर्दलीयों ने जीत लीं हैं। अभूतपूर्व 78 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह कारगिल की 150,000 नागरिकों की मात्रात्मक रूप से छोटी जनसांख्यिकी से भाजपा के वादों और डिलीवरी के बीच की खाई के लिए एक जोरदार गुणात्मक प्रतिक्रिया थी। यह जीत उल्लेखनीय इसलिए भी है, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस ने स्थानीय प्रतिद्वंद्विता व अन्य बातों के तहत राजनीति को दफ़नाने की भाजपा सरकार की अप्रत्यक्ष कोशिशों के बजाय संवैधानिक – राजनीतिक स्वायत्तता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। दक्षिण एशिया के विदेशी संवाददाता क्लब (एफसीसी) में; ‘कश्मीर टूडे’ की वार्ता में ओमर अब्दुल्लाह ने कहा, “आज, जब हमें लगभग हर दिन बताया जाता है कि स्थिति में काफी सुधार हुआ है या यह सामान्य के करीब है; फ़िर मेरा मानना ​​​​है कि, दुर्भाग्य से, जम्मू-कशर वह जगह है जहां भारत में लोकतंत्र दफन हो चुका है,” उमर अब्दुल्ला ने ‘कश्मीर टुडे’ पर एक वार्ता को संबोधित करते हुए कहा। गृह मंत्रालय को यह समझना होगा कि लगभग हर चीज़ लोगों को बाहर आने के लिए उकसाती है क्योंकि 05 अगस्त, 2019 के बाद जिस तरह से चीजें हुई हैं, उसके बारे में नाराज़गी है। ये जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में इसकी स्थापना के कारण अधिक दिखाई दे रहा है। अनेक कारणों में, स्मार्ट मीटर, हाउस टैक्स लगाना व टोल प्लाजा का संचालन आदि शामिल हैं। केंद्र ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाकर दो केंद्र शासित प्रदेश-जम्मू-कश्मीर व लद्दाख बना दिये थे। इससे सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बीजेपी लद्दाख के नतीजों से बेहद हताहत है। ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी 2024 के संसदीय चुनावों में अपनी क्षमता को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने न केवल देश के बाकी हिस्सों बल्कि पूरी दुनिया को यह बताया है कि 05 अगस्त, 2019 को जो हुआ उससे जम्मू-कश्मीर के लोग खुश हैं। जम्मू-कश्मीर में चुनाव न होने के और क्या कारण हो सकते हैं? भाजपा और उससे जुड़ी पार्टियों के लिए यू.टी. में राह मुश्किल होगी। चुनाव की घोषणा होने तक जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित सरकार के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि “मैं मानता हूं कि जम्मू-कश्मीर में शून्यता की परिस्थिति है जिसे भरने की जरूरत है”। दुर्भाग्य से, कुछ दिन पहले जब पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा हुई, तो जब उनसे जम्मू-कश्मीर में चुनावों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उसके अन्य कारक भी हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ यह साझा करने का कोई प्रयास नहीं किया गया कि वास्तव में वे कौन से कारक हैं जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को प्रजातंत्रीय प्रणाली से
वंचित कर रहे हैं। एक निर्वाचित सरकार पर उनका वैध अधिकार है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्थिति चिंता का विषय है। पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी के दावे में पवित्र तीर्थस्थलों के तीर्थयात्री भी शामिल हैं। वहीं उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि यू.टी. में निवेश की जे.-के. में वृद्धि हुई है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर, दुर्भाग्य से इस खोज को प्रतिबिंबित नहीं किया गया। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यू.टी. का दौरा किया। जे.के. को ‘धरती के स्वर्ग’ व मेरी जन्म भूमि कश्मीर में आपका स्वागत है श्री अमित शाह! ‘कश्मीरियत’ आपका हार्दिक स्वागत करता है! अमित शाह के जम्मू-कश्मीर दौरे के साथ, केंद्र सरकार लोगों तक पहुंचने की कोशिश के सकारात्मक कदम उठा रही है। झेलम व चिनाब नदियों में बहुत खून बहा है! चमकती तवी नदी में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। कश्मीर पर मेरे अनेकों लेख, खुशहाल व शांतिपूर्ण आबादी वाले एक समृद्ध राज्य के उद्भव पर केंद्रित हैं। ‘गर फिरदौस बर रूह-ए-जमीन अस्त, हमीं अस्त हमीं अस्त हमीं अस्त’ अमीर खुसरो का यह दोहा एक चट्टान की तरह है! अमित शाह का दौरा बेशक एक सकारात्मक कदम है लेकिन कश्मीर के लोगों के घाव इतने गहरे हैं कि उन्हें भरने में थोड़ा वक्त लगेगा। अमित शाह ने कहा, ‘कश्मीर में पहले राजवंशों का शासन था’। कश्मीर की आर्थिक समृद्धि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के लिए महत्वपूर्ण है। मेरे सुनहरे दिनों में कश्मीर घाटी वैश्विक पर्यटक आकर्षण थी जो चौबीसों घंटे खचाखच भरी रहती थी। सर्दियों के मौसम के दौरान, पूरी कश्मीर घाटी, श्रीनगर से लेकर कोकेरनाग, पहलगाम व गुलमर्ग तक सब भरपूर हो जाता था। घाटी में राजस्व की वर्षा होती थी। कश्मीरी हस्तशिल्प, हथकरघा, केसर आदि का निर्यात भारत का गौरव था। समय-समय पर नागरिकों के विरुद्ध सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के प्रयोग ने स्थानीय आबादी को नाराज़ कर दिया। आज़ादी के 76 साल बाद अब समय आ गया है कि कश्मीर समस्या का समाधान हो जाए। कश्मीर के लोग ‘जनमत संग्रह’ (plebiscite) को भूल जाएं। बेशक यह सच है कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर के लोगों के बीच घनिष्ठ पारिवारिक रिश्ते व भावनात्मक संबंध हैं। अपने शपथ समारोह के लिए नवाज़ शरीफ को आमंत्रित करने व ‘आउट ऑफ बॉक्स डिप्लोमेसी’ के तहत पाकिस्तान का दौरा करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कदम भारत-पाकिस्तान वार्ता में सुधार के लिए अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में सकारात्मक कदम थे। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में रोज़गार पैदा करने होंगें व युवाओं के लिए सरकारी नौकरियां भी प्रदान करनी होंगीं। शंकराचार्य, हज़रतबल, छटी पादशाही व कैथेड्रल जनता के दर्शन के लिए खुले हैं। अमित शाह ने कहा, ”घाटी में आज के युवा विकास की बात करते हैं और हम उन्हें नौकरियां देंगे।” परिसीमन सरकार का अहम फैसला है। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को लेकर अनिश्चित है। जे.-के. में जून 2018 से केंद्रीय शासन है। पूर्ववर्ती राज्य को पुनर्गठित करने में, राजनीतिक संघवाद, भारत के प्रयोगों के साथ संघर्ष कर रहा है। केंद्र कश्मीर पर बातचीत से ‘आज़ादी या स्वायत्तता’ के सवाल को हटाने में सफल रहा है। अब, जब केंद्र ने राज्य के दर्जे की बहाली को एक अस्पष्ट राजनीतिक प्रक्रिया का अंतिम खेल बना दिया है, तो उसे लोगों के साथ बातचीत के लिए मार्गदर्शन करना होगा। 24 जून, 2021 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेताओं से मुलाकात की थी व कहा कि, “दिल्ली से दूरी और दिल से दूरी को कम करना चाहिए”! केंद्र सरकार के ‘आउटरीच’ एक स्वागत योग्य कदम है। जम्मू-कश्मीर को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए और भी बहुत कुछेक करने की आवश्यकता है। आशा है कि कश्मीर के लोगों के लिए केंद्र की ‘ओलिव ब्रांच’ को कश्मीर के लोगों के लिए केंद्र की साकारात्मक पहुंच के रूप में लिया जाएगा। मैं ‘कश्मीर की बेटी’ हूं! कश्मीर को शांतिपूर्ण माहौल में खुली सांस लेने की ज़रूरत है। इसे एक सुचारु प्रशासन की ज़रूरत है, स्कूलों, कॉलेजों को फिर से खोलने की ज़रूरत है! कश्मीर घाटी में काफी खून-खराबा देखने को मिला है। यदि हम कहते हैं कि कश्मीर ‘भारत का मुकुट’ है व कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, तो क्या केवल कश्मीर की भूमि ही भारत का हिस्सा है? यदि हम कश्मीर को अपना मानते हैं तो यह अनिवार्य है कि हम कश्मीर के लोगों को भी अपना मानें। लोकप्रिय, प्रजातांत्रिक सरकार के लिए चुनाव आवश्यक हैं। संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति शासन कम से कम समय के लिए लगाया जाना चाहिए। अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के बाद कश्मीर के राजनीतिक नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया था। ‘न्यू कश्मीर’ के भारत सरकार के आह्वान को विश्वसनीय बनाना होगा। निशकंशआर्थ, यह कहना उचित होगा कि कश्मीर में ‘कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत’ को लागू किया जाना चाहिए। हिंसक खून-खराबे ने लोगों के दिलों पर गहरे घाव पहुंचाए हैं। शांतिपूर्ण फसल उगाने का समय आ गया है। अब समय है कि संवेदनशीलता व करुणा के साथ सभी के घावों पर मरहम लगायी जाए! शांति का कमल व केसर की खुशबू कश्मीर घाटी को उसके मूल गौरव पर वापिस लाए! सूफी दरवेशों की भूमि में सह-अस्तित्व में है! चलो सह-अस्तित्व व स्वाभिमान में रहें, ओ मेरे कश्मीर!

(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स व परोपकारक)