प्रीती पांडेय
डी वाई चंद्रचूढ़, वर्तमान सीजेआई ,सब जानते हैं कि जस्टिस चंद्रचूढ़ की केंद्र सरकार से कई मसलों को लेकर एक राय नहीं बन पाई है । जिनमें जजों की नियुक्ति से जुड़ा मसला भी शामिल है । कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार को उनकी सिफारिशों को मंजूरी नहीं दिए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की थी । कॉलेजियम ने कहा था कि हमने पिछले 10 महीने में 80 नामों की सिफारिश की लेकिन सरकार ने एक भी नाम को मंजूरी नहीं दी, ऐसा करना सही नहीं है । अब इस बीच खबर है कि कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को एमपी और पटना में 7 जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश की है ।
कॉलेजियम ने न्यायिक अधिकारी रुद्र प्रकाश मिश्रा और रमेश चंद मालवीय को पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करने की सिफारिश की है। वहीं कॉलेजियम ने न्यायिक अधिकारी राजेंद्र कुमार वानी, प्रमोद कुमार अग्रवाल, बिनोद कुमार द्विवेदी, देवनारायण मिश्रा और गजेंद्र सिंह को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है।
पटना में जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम –
8 मई, 2023 को पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने दो साथी जजों से चर्चा के बाद इन दो न्यायिक अधिकारियों के नाम भेजे हैं. कोलैजियम ने कहा, बिहार राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने इस सिफारिश पर सहमति जताई है. इन न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन के लिए हमने पटना हाईकोर्ट की समझ रखने वाले जजों से चर्चा की है और उन्होंने भी इन नामों पर सहमति जताई है.
मध्य प्रदेश के जजों के लिए क्या बोला कॉलेजियम?
11 मई, 2023 और 9 अगस्त, 2023 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने दो सीनियर जजों के नाम पर सुझाए जा रहे नामों पर चर्चा की और सहमति बनने के बाद ही उन्होंने हमारे पास इन नामों को भेजा. मध्य प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने भी इन नामों पर अपनी सहमति जताई है. उन्होंने कहा, इन नामों पर चर्चा करने के बाद ही कॉलेजियम ने सहमति जताई है.
ये वो नाम है जो कोलेजियम सिस्टम के जरिए भेजे गए है लेकिन आशंका यहीं जताई जा रही है कि इसे भी रोकने की कोशिश की जाएगी ।
एक बार फिर इस मसले को लेकर केंद्र बनाम डी वाई चंद्रचूढ़ देखने को मिल सकता है क्योंकि जानकारों की राय यही है कि केंद्र सरकार शायद ही कोलेजियम की सिफारिश वाली ये लिस्ट स्वीकार कर लेगी । मुमकिन है कि इस सूची में कुछ मॉडीफिकेशन्स के साथ केंद्र बदलाव करने का प्रयास करें । हालांकि आदर्श स्थिती तो ये होती कि इस मसले पर विवाद नहीं होना चाहिए लेकिन ये विवाद होता ही है । हम जानते है कि अदालतों में कई मामले लंबित हैं ,अदालतों में वैसे ही लंबित मामलों का बोझ हैं ऐसे में जजों की नियुक्ति को लेकर में जब तक भारत की संसद कोई नई व्यवस्था कायम नहीं कर लेती और उसे सुप्रीम कोर्ट की सहमति नहीं मिल जाती है तब तक जिस नियम से अब तक नियुक्तियां होती रही है उसी नियम का पालन करना चाहिए ।
इससे पहले भी किरण रिजिजू वाला विवाद सबको याद होगा जिसमें नामों को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी । हाल ही में कॉलेजियम ने केंद्र सरकार से नाराजगी जताई थी ।
आपको बता दें अब तक केंद्र की मंजूरी के बाद जजों की नियुक्ति होती है। कॉलीजियम ही जजों के तबादले करता है और इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट कलीजियम की तरह ही हाई कोर्ट में भी कलीजियम होते हैं जिसके अध्यक्ष उसके चीफ जस्टिस होते हैं। इसमें चीफ जस्टिस के अलावा हाई कोर्ट के 2 अन्य वरिष्ठतम जज होते हैं।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका…किसी भी लोकतंत्र के तीन स्तंभ हैं. इनके बीच अधिकारों और शक्तियों का बँटवारा हमारे संविधान में किया गया है. इसके बावजूद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच खींचतान से जुड़ी ख़बरें सामने आते रहती हैं
कॉलेजियम की सिफ़ारिशें सरकार पर बाध्यकारी
दरअसल सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम की सिफ़ारिशों पर केंद्र सरकार के लटकाने वाले रवैये से बेहद नाराज़ है. इसी को लेकर 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति पर टालमटोल का रवैया छोड़ दे, वर्ना दिक़्क़त का सामना करने के लिए तैयार रहे. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ की मुख्य चिंता हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के कॉलेजियम प्रस्ताव को लेकर है, जो केंद्र सरकार के पास कई महीनों से लंबित है ।
सिफ़ारिशों को लटका कर रखने का रवैया
हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से की गई 70 कॉलेजियम सिफ़ारिशें केंद्र सरकार के पास 11 नवंबर, 2022 से लंबित हैं. इनमें से 7 नाम ऐसे हैं, जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है. इनमें अलग-अलग हाई कोर्ट के 26 जजों के ट्रांसफर का भी मामला शामिल है ।
केंद्र और न्यायपालिका के बीच खींचतान बढ़ी है
पहले भी इस मसले पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तनातनी देखने को मिलती थी. लेकिन जब से सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पहल राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से जुड़े कानून को संवैधानिक तौर से अवैध घोषत करते हुए निरस्त कर दिया था, यह खींचतान ज़्यादा होने लगी है.
संविधान के अनुच्छेद 124 और अनुच्छेद 217 के तहत सैद्धांतिक तौर से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास है. हालांकि कॉलेजियम सिस्टम की वज्ह से व्यावहारिक तौर से नियुक्ति पर अंतिम फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट का ही होता है. इस सिस्टम के तहत कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश या’नी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. इस तरह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का अधिकार जजों की एक कमेटी के पास है, इसे ही कॉलेजियम कहते हैं. कॉलेजियम की यह व्यवस्था पिछले तीन दशक से मोटे तौर से लागू है ।
गौरतलब है कि जजों की नियुक्ति को नोटिफाई करने के सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के आग्रह के बावजूद सरकार जल्दबाजी में नहीं दिख रही है। कॉलेजियम ने शीर्ष अदालत के लिए दो बार सिफारिश की है। इसके बजाय, इस बात पर जोर दिया है कि शीर्ष अदालत को पहले लंबे समय से लंबित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर ( MoP) को अंतिम रूप देने की जरूरत है। इसमें उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए शर्तें और समयसीमा की बात है। हाई कोर्ट के जज पद के लिए कुछ नामों पर सरकार और शीर्ष अदालत कॉलेजियम के बीच मतभेद हैं। सरकार के सूत्रों ने कहा कि संशोधित एमओपी को अंतिम रूप देना पिछले सात वर्षों से लंबित है।
इस संबंध में सरकार समय-समय पर रिमाइंडर भेजती रहती है। वहीं शीर्ष अदालत ने नियुक्ति में देरी को लेकर दायर याचिकाओं में से एक में निर्धारित समय सीमा की “जानबूझकर अवज्ञा” करने का आरोप लगाया गया है। उस आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा था कि अगर कॉलेजियम सर्वसम्मति से अपनी सिफारिशें दोहराता है तो केंद्र को तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए।