नरेंद्र तिवारी
मध्यप्रदेश में 17 नवंबर को 230 विधानसभा सीटों पर मतदान संपन्न हो गया। कुछ हिंसक घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश स्थानों पर शांतिपूर्ण मतदान संपन्न हुआ। इस चुनाव में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाताओं ने मतदान के प्रति अधिक रुचि दिखाई। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में 76 प्रतिशत के करीब मतदान दर्ज किया गया जिसने पूर्व चुनावों में हुए मतदान के रिकार्डों को ध्वस्त कर दिया। प्रदेशभर में महिलाओ की तुलना में पुरुष मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत अधिक रहा है। दोनो प्रमुख राजनीतिक दल प्रदेश में हुए बम्फर मतदान को अपने–अपने हिसाब से बताने का प्रयास कर रहे है। सत्ताधारी भाजपा अधिक मतदान को लाडली बहना का प्रताप बता रही है। भाजपा नेताओं ने चुनाव उपरांत कहा प्रदेश में अधिक मतदान हुआ है। इसके पीछे लाडली बहना योजना प्रमुख कारण है। इसके विपरित कांग्रेस प्रदेश में हुए अधिक मतदान को सत्ता विरोधी मतदान बता रही है। कांग्रेस नेताओं का कहना है प्रदेश के मतदाताओं ने मध्यप्रदेश की सत्ता को उखाड़ने के लिए मतदान किया। कांग्रेस का जनहितैषी, आदिवासी हितैषी वचन–पत्र का मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा। कुलमिलाकर मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के उपरांत दोनो प्रमुख दल अपनी–अपनी विजय का दावा कर रहे है। इसके पीछे दोनो दलों के दावे है, तर्क है, अपना विश्वास है। इन दावों तर्को और विश्वास की सच्चाई 3 दिसंबर को परिणामों की घोषणा के बाद सामने होगी। फिलहाल प्रश्न यह बना हुआ है की प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को चुना या फिर मौजूदा सत्ता के खिलाफ मतदान किया ? यह प्रश्न प्रदेश की जनता के मध्य प्रतिदिन चर्चा में है। इन हालातो में यह जानना बहुत जरूरी है हो जाता है की मध्य प्रदेश के मतदाताओं के मध्य वह कौनसे मुद्दे चर्चा में रहे जिन्होंने जनता की धारणा का निर्माण किया। मतदाताओं के मानस को बनाया है। मतदाताओं ने इन्ही धारणाओं और मानस के आधार पर पोलिंग बूथ में जाकर ईवीएम का बटन दबाया है। लोकतंत्र में मतदान का अधिकार ही जनता की वह ताकत है, जिसके दम पर पांच वर्ष में एक बार सही बड़े–बड़े नेताओं को जनता की अदालत में अपनी हाजिरी लगाने होती है। जनता की खरी–खोटी भी सुनना पड़ती है।
यही जनता बड़े–बड़े नेताओं को घर बैठा देती है।यहीं जनता नए नवेले चेहरे को बड़ा नेता बना देती है। प्रदेश में जनता ने लोकतंत्र के इस महापर्व पर बढ़–चढ़ कर अपनी भागीदारी का निर्वाह किया यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत है। 3 दिसंबर को परिणाम की घोषणा के बाद क्या परिणाम होगा ? किंतु 17 नवंबर को रिकार्ड तोड मतदान कर जनता ने लोकतंत्र की विजयी का बटन तो दबा ही दिया। तारीफेकाबिल चुनाव आयोग का मतदान जागरूक अभियान भी रहा और मतदान के दौरान चाकचौबंद व्यवस्थाएं भी।
भारतीय जनता पार्टी के लिहाज से लाडली लक्ष्मी योजना असरकारक रही है। किंतु सिर्फ लाडली बहना योजना ही असरकारी रही है ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चुनाव के दौरान आदिवासी जिले बड़वानी में जनजातीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ग्यारंटी और भाजपा के संकल्प–पत्र में जनजातीय समाज के कल्याण की बात करना, बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय गौरव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा करना, जनजातीय समाज का राष्ट्र निर्माण में योगदान का उल्लेख करना, निमाड़ की मिर्ची को भाव और जनजातीय समाज के सम्मान की बात करना भी जनजातीय समाज की धारणा निर्माण का महत्वपूर्ण कारक माना जा सकता है। उनके द्वारा कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए यह कहना की कांग्रेस सरकारों में दंगे–फसाद होते है, राजस्थान में सर तन से जुदा नारे लगने का जिक्र करना, इंदौर के रोड–शो भी प्रदेश की जनता का मानस तय कर सकता है। चुनाव उपरांत कमलनाथ का कहना था की प्रदेश की जनता ने बदलाव के लिए बम्फर मतदान किया है। कांग्रेस के वचन–पत्र में कर्ज माफी का जिक्र है। कर्ज माफी आदिवासी सीटों पर बेहद असरकारक हो सकती है। कांग्रेस के द्वारा पुरानी पेंशन योजना को लागू करना सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को राहत पहुंचाने वाला वचन माना जा सकता है। कर्मचारियों की धारणा निर्माण में कर्मचारी पेंशन एक बड़ा और महत्वपूर्ण कारक माना जा सकता है। जिसका लाभ पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मिल सकता है। प्रदेश में चुनाव के दौरान आदिवासी अंचलों में राहुल गांधी द्वारा रीवा की घटना का जिक्र कर यह कहना की भाजपा आदिवासी समाज का अपमान करती है।
रीवा का पेशाबकांड मध्यप्रदेश की आदिवासी बाहुल्य विधानसभा सीटों पर बेहद असरकारक रहा है। आदिवासी समाज पर इस घटना का तगड़ा असर रहा है। कांग्रेस के नेताओं ने हर मंच पर पेशाबकांड को आदिवासी समाज का अपमान बताया और बदला लेने की बात भी कही। प्रदेश में 47 एसटी आरक्षित सीट है। इसके अलावा 40 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक माना जाता है।
आदिवासी वर्ग की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वाले प्रमुख 6 जिलों में बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ, धार, डिडोंरी, मंडला शामिल है। इन जिलों में लाडली बहना का असर माना जा सकता है। किंतु कांग्रेस वचन–पत्र में शामिल कर्ज माफी, कर्मचारी पेंशन, छात्रों को छात्रवृत्ति, मुफ्त शिक्षा का वचन–पत्र पत्र में शामिल किया जाना भी जन धारणा का निर्माण करने में सफल रहा है। रीवा पेशाबकांड़ की घटना को कांग्रेस ने हर मंच से प्रचारित किया है। जिसने आदिवासी समाज मानस तैयार किया है। शिवराज सरकार के विरुद्ध मतदाताओं का आक्रोश भी सत्ता विरोधी मतदान के लिए प्रेरित करने का कारण बन गया था। प्रदेश में व्यापारियों की मौजूदा सरकार से नाराजी, बेरोजगारों की नाराजी भी इस चुनाव में मतदाताओं की धारणाएं बनाती दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का अपनी सरकार गिरने के बाद से प्रदेश में सक्रिय बने रहना, हर मंच से यह कहना की आखिर मेरा दोष क्या था? प्रदेश की जनता को आकर्षित करता दिखाई दे रहा है। बढ़ती मंहगाई को भी जनता की मौजूदा सरकार के खिलाफ धारणा निर्माण का कारण माना जा सकता है। भाजपा के पक्ष में जहां लाडली बहना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, किसान सम्मान निधि तुरूफ के इक्केे साबित हो सकते है। कांग्रेस की नारी सम्मान योजना में 1500 रु सहित 500 रु में गैस टंकी, 100 यूनिट बिजली फ्री, 2 लाख तक किसानों का कर्जा माफ, पुरानी पेंशन बहाली, प्रधानमंत्री आवास में शहरी क्षेत्र के अनुरूप ढाई लाख की राशि, दस लाख का दुर्घटना बीमा, 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा, दो लाख नई भर्ती का वचन भी जनता के आकर्षण का केंद्र बिंदु बना है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव भाजपा–कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। कर्नाटक की हार के बाद पांच राज्यों के चुनावों का परिणामों का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। अतएव दोनो ही दलों ने जितने के हर संभव प्रयास किए। जनता को रिझाने वाली घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। किंतु 47 आरक्षित एसटी सीटें और 40 पर आदिवासी बाहुल्य सीटें इस विधानसभा में निर्णायक साबित हो सकती है। इन सीटों पर लाडली बहना, कर्मचारी पेंशन, कर्ज माफी और रीवा पेशाबकांड मतदाताओं की धारणाओं का निर्माण करता दिखाई दे रहा है। 3 दिसंबर को परिणामों की घोषणा के बाद शायद यह पुख्ता हो सकेगा इनमे से किन विषयों ने जनता के मानस का निर्माण किया फिलहाल तो जनता के मानस को बनाते यही मुद्दे नजर आ रहे है।