शैक्षणिक पाठ्यक्रम में हो नशामुक्त रहने का पाठ !

सीता राम शर्मा ” चेतन “

शिक्षा श्रेष्ठ व्यक्तित्व, परिवार, समाज और राष्ट्र निर्माण का आधार है । किसी भी देश समाज के सर्वांगीण विकास में वहां की शैक्षणिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है । यह सुखद सत्य है कि स्वतंत्रता के सात दशक बाद ही सही राष्ट्र को नई शिक्षा नीति मिल गई है । नई शिक्षा नीति में नई शैक्षणिक व्यवस्था के साथ नए पाठ्यक्रम तैयार करने पर काम जारी है । ऐसे में जरुरी है कि सरकार, शिक्षा मंत्रालय और शैक्षणिक संस्थानों के साथ शिक्षा जगत से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े तमाम लोग भी अतीत, वर्तमान और भावी भविष्य से जुड़े जरुरी शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के चयन और निर्धारण पर हर संभव चिंतन मनन लेखन करें और करवाने का प्रयत्न करें । पिछले दिनों झारखंड सरकार ने वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक पाठ्यक्रम में जल एंव उर्जा संरक्षण, सड़क सुरक्षा और लैंगिक समानता के साथ यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण ( पोस्को ) अधिनियम जैसे प्रासंगिक विषयों के पाठ जोड़ने का निर्णय किया है, जो सर्वथा उचित, प्रशंसनीय और देश भर की शिक्षा व्यवस्था के लिए अनुकरणीय है ! गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में स्कूली और उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम तथा उसके लिए उचित, अनिवार्य, प्रासंगिक और भविष्यगत सकारात्मक विषयों के चयन, संशोधन के साथ गैर जरुरी, नकारात्मक विषयों की छंटनी पर भी गंभीरतापूर्वक विचार और काम हो रहा है । वास्तव में किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था में गहन चिंतन मंथन और नयेपन की यह शैक्षणिक प्रक्रिया पूरी प्राथमिकता के साथ निरंतर जारी रहनी चाहिए, जो दुर्भाग्य से देश की स्वतंत्रता के बाद आवश्यकतानुसार जारी नहीं रही । अच्छा होगा कि अतीत की उस गलती से सीखते हुए अब एक देश के रुप में हम वैसी गलती नहीं करने की बजाय वर्तमान और भविष्य में अपनी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर अधिकाधिक ध्यान देते हुए शैक्षणिक विकास के क्षेत्र में खुद में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के स्थाई चरित्र का निर्माण करते हुए अग्रणी स्थान पाने और फिर उस पर बने रहने का हर संभव प्रयत्न करते रहें । तेजी से बदलते भारत में अब ऐसा ही होगा इसकी पूरी आशा है और विश्वास भी । अब बात इस आलेख के मूल विषय के विमर्श पर, जो अपने राष्ट्रीय शैक्षणिक पाठ्यक्रम के सबसे प्रारंभिक पाठ्यक्रम में ही नशे जैसी बड़ी और सर्वाधिक घातक बुराई को लेकर उसके ज्ञान और उसके प्रति जागरूकता के पाठ्यक्रम को जोड़ने से सबंधित है । गौरतलब है कि वर्तमान समय में अपने देश के बचपन अर्थात नौनिहालों के लिए यदि अपनी राष्ट्रीय सामाजिक व्यवस्था में सबसे बड़ी कुछ चुनौतियों की बात करें तो उनमें कुपोषण के रुप और कारणों के साथ नशों के प्रति पर्याप्त ज्ञान और जागरुकता की होगी । हालाकि कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में नशों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर हो रहा है अतः नशों के दुष्प्रभाव और दुष्परिणामों के प्रति ज्ञान और जागरुकता के पाठ कक्षा सात-आठ में पढ़ाने की जरूरत है पर ऐसा सोचने के पहले यह विचार करना आवश्यक है कि कक्षा सात-आठ तक पहुंचने से पहले एक बालक और उसका बाल मन अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में नशों के कितने आकर्षक, रोमांचक और उत्तेजक दृश्य देख चुका होता है । इसलिए बेहतर होगा कि नशों के प्रति घृणा और जागरुकता के भाव और ज्ञान का विकास बाल मन में शिक्षा के प्रारंभिक काल, अर्थात नर्सरी या केजी कक्षा से ही किया जाए । यदि ऐसा हुआ तो इसका प्रभाव उस बालक के साथ अकाट्य रुप से उसके अभिभावक और परिवार पर भी पड़ेगा क्योंकि ऐसा पढ़ते और पढ़ाते हुए एक मासूम बालक के साथ उसके अभिभावक की मनः स्थिति क्या होगी, यह सहज ही समझा जा सकता है ।

नशाखोरी वर्तमान समय की सर्वाधिक चिंतनीय और घातक राष्ट्रीय समस्या है । नशाखोरी की समस्या अपराध, अराजकता और आतंकवाद की भी जनक और पोषक है । देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक इस बड़ी समस्या पर अपनी चिंता प्रकट करते रहे हैं । नशाखोरी के तेजी से बढ़ते रुपों और माध्यमों पर निरंतर चिंतन और चर्चा जारी है । जिस पर नीति, नियम और व्यवहारिक रुप से उनके क्रियान्वयन पर हर स्तर पर अविलंब अत्यधिक कठोरता और सक्रियता की आवश्यकता है । नशाखोरी की बढ़ती समस्या और नशों के बढ़ते उत्पादन और व्यापार पर यह बात बिना किसी संकोच के कही जा सकती है कि स्वतंत्र भारत की सबसे अच्छी और सफल वर्तमान सरकार के कार्यकाल में भी यह समस्या निरंकुश अवस्था में अपना दायरा बहुत तेजी से बढ़ाती जा रही है । कारण देश की कई अराजक, उग्रवादी और भ्रष्ट ताकतों का इसके क्षेत्र में पलायन और पोषण होना है । आशा है सरकार इस समस्या पर जल्दी ही जमीनी स्तर पर ज्यादा गंभीर होकर ना सिर्फ सोचेगी बल्कि कुछ ठोस काम भी करेगी । फिलहाल बात शैक्षणिक पाठ्यक्रम में देश के नौनिहालों में नशों के प्रति आवश्यक सजगता के ज्ञान के विकास हेतु आवश्यक पाठ्यक्रम के जुड़ाव की, तो यह विश्वास तो किया जा सकता है कि ऐसा जल्दी ही होगा ! संभव है अगले सेशन से ही ।