प्रो: नीलम महाजन सिंह
सच बात तो यह है कि जब गुजरात उच्च न्यायालय ने बिलकिस बानो के 11 अपराधियों को सामूहिक बलात्कार व सात सदस्यों की हत्या के आरोप में; जिनके नाम हैं: राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट व प्रदीप, को ‘जेल मेंअच्छे व्यावहार’ के लिए रिहा कर दिया था; तो मैं इतनी दुःखी और स्तब्ध हुई कि मेरे दिमाग में कुछ गहरे घाव से हो गए थे। इस घोर आपराधिक पाप की क्या कोई क्षमा नहीं हो सकती है? कभी नहीं! चाहे महिलाएं किसी भी जाति या धर्म की क्यों ना हों! जेल से असंविधानिक रूप से रिहा होने के पश्चात; फिर कुछ राजनेताओं ने उनके गले में माल्यार्पण कर मिठाई बांटी! मैं 35 वर्षों से महिलाओं के प्रति अपराध, अत्याचार, कानूनों का उल्लंघन, पुलिस का दुराचार, सामाजिक असहिष्णुता आदि मुद्द पर कार्यरत हूँ। इतना अपराध तो द्रौपदी के साथ कौरवों ने भी नहीं किया था, फिर भी ‘महाभारत’ का युद्ध हुआ? मैंने स्तब्धता में अपनी प्रतिक्रिया तक नहीं दी! क्या परिवर्तित हो गया, मेरे 35 वर्षों की पत्रकारिता में साधना से? क्या मेरे संघर्ष ने सामाजिक दृष्टिकोण को या समाज को बदला है? 36 वर्ष पूर्व, नैना साहनी की हत्या, ‘तंदूर कांड’ से अभी तक, महिलाओं के विरुद्ध अपराध में वृद्धि हुई है। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की, जस्टिस बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना व जस्टिस उज्जल भुयान को तहे दिल से सलाम और धन्यवाद! भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इन दोनों न्यायाधीशों ने गुजरात राज्य द्वारा अगस्त 2022 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार व उनके दो महीने के शिशु सहित, उनके परिवार की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सज़ा पाए, 11 लोगों को दी गई सामूहिक छूट के ‘आदेश को रद्द कर दिया है’। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, 2027 में सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश भी बनेंगीं। उनके पिता, जस्टिस ई.एस. वेंकटरमैय्या, 1989 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे चुके हैं। आशा है कि जस्टिस नागरत्ना 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनेंगीं। ठीक जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड के समान। जस्टिस नागरत्ना ने स्कूली शिक्षा सोफिया हाई स्कूल, बैंगलोर व भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से की। 1984 में, उन्होंने जीसस एंड मैरी कॉलेज, से इतिहास में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से कानून की डिग्री हासिल की। जस्टिस उज्जल भुयान तेलंगाना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने तेलंगाना उच्च न्यायालय, बॉम्बे उच्च न्यायालय व गौहाटी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है। न्यायाधीश उज्जल भुयान व बी.वी. नागरत्ना ने कहा, “गुजरात में सत्तारूढ़ सरकार ने कैदियों के साथ मिलकर काम करने और ऐसा करने के लिए सत्ता हथियाने का कार्य किया।” उनकी शीघ्र रिहाई का आदेश देने के सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के ‘खिलाफ़ स्ट्रिक्चर’ पास किए हैं। 8 जनवरी, 2024 को नई दिल्ली में बिलकिस बानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वरिष्ठ वकील, वृंदा ग्रोवर ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस जघन्यता के विरोध में यह फ़ैसला दिया है, जो भविष्य मेें महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा”। बिलकिस बानो उस समय गर्भवती थीं, व उनके परिवार के साथ जो हुआ उसे “सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित, वीभत्स व शैतानी अपराध” बताते हुए न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना व उज्जल भुयान की पीठ ने गुजरात में भाजपा सरकार को तल्खी से फटकार लगाई है। यह फैसला सरकारों के लिए एक झटका है जिसमें 11 आपराधिक पुरुषों की समय-पूर्व रिहाई को मंजूरी दी गइ थी। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना व उज्जल भुयान की पीठ ने गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को तीखी फटकार लगाई। ऐसा करने के लिए “सत्ता हथियाने” के बाद उनकी शीघ्र रिहाई का आदेश देने के लिए कैदियों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए, गुजरात सरकार के निर्णय को गैरकानूनी करार दिया गया है। “एक महिला सम्मान की हकदार है, भले ही उसे समाज में कितना भी ऊंचा या नीचा क्यों न माना जाए, चाहे वह किसी भी धर्म को मानती हो या किसी भी पंथ को मानती हो। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में दोषियों की सज़ा कम करके व उन्हें आज़ादी देकर सज़ा माफ़ की जा सकती है”? उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार से पूछा! 251 पन्नों का फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति भुयान व नागरत्ना ने पूछा कि क्या कानून, शासन अपने उल्लंघन के परिणामस्वरूप अर्जित, स्वतंत्रता को आत्मसमर्पण कर सकता है? क्या किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कानून के शासन के उल्लंघन को नज़रअंदाज किया जा सकता है, जिसका वह हक़दार ही नहीं है? क्या न्याय के तराज़ू को कानून के शासन (Rule of law) के विरुद्ध झुकना चाहिए? जब क़ानून का शासन कायम होगा तभी हमारे संविधान के तहत स्वतंत्रता व अन्य सभी मौलिक अधिकार कायम रहेंगें। 11दोषियों को फिर से माफ़ी याचिका के आवेदन करने के लिए; पहले उन्हें जेल में वापिस जाना होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दोषियों को सज़ा में छूट देने का अधिकार गुजरात सरकार के पास था ही नहीं ! यह अधिकार महाराष्ट्र सरकार का है, जहाँ फैसला सुनाया गया था। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 432(7)(बी) के तहत गुजरात “उपयुक्त सरकार” नहीं थी, जिसमें सज़ा को निलंबित करने व माफ़ करने की शक्ति का विषय शामिल हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को इन 11 दोषियों की सज़ा माफी रद्द करते हुए, उन्हें 2 सप्ताह में आत्म-समर्पण करने का आदेश दिया है। ग्रेटर मुंबई में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। इसलिए अदालत ने स्पष्ट किया, यह महाराष्ट्र राज्य था, जहां 11 लोगों पर मुकदमा चलाया गया व सज़ा सुनाई गई, न कि गुजरात, जहां अपराध हुआ था या दोषियों को जेल में डाल दिया गया था, जो धारा 432(7)(बी) के तहत छूट देने के लिए “उचित सरकार” थी।
कानून का यह सिद्धांत स्थानांतरित मामलों तक भी विस्तारित है। गुजरात उच्च न्यायालय ने दो बार कहा था कि, “महाराष्ट्र सरकार ही सक्षम प्राधिकारी थी”। आश्चर्यजनक बात यह है कि, दोषियों ने मुंबई अदालत द्वारा उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने की ज़हमत तक नहीं उठाई। आदेश में कहा गया था कि रुपये ₹34,000/- का ज़ुर्माना, प्रत्येक दोषी को देना होगा या 34 साल की जेल की सज़ा भुगतनी होगी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “धोखाधड़ी व न्याय कभी एक साथ नहीं रहते। मई 2022 के आदेश में अमान्यता व कानूनी दोष हैं”। सारांशाार्थ में यह कहना उचित होगा, कि जहाँ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, महिला आरक्षण, महिला सशक्तीकरण, नारी का सम्मान, लाडली योजना, जैसे नारे बनाये जाते हैं, वहीं दूसरी ओर धर्म व सामाजिक विभाजनकारी नियत से, अपराधियों के प्रति पक्षपात, एकमात्र न्यायिक उपहास है। प्रशासन, सरकार, राजनेता व राजनीतिक दल, “महिलाााओं को मात्र गूंगी गुड़िया ही समझते हैं”। महिलाओं के लिए कानून बनाने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि धरातल पर उन्हें लागू ही नहीं किया जा रहा है। महिला, जननी व माँ है सभी धर्मों में महिलाओं के प्रति श्रद्धा भाव है. फ़िर भी महिलाओं के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यावहार हो रहा है. महिला सुरक्षा को दरकिनार किया जा रहा है.
महिलाओं को अपनी रक्षा, स्वयं ही करनी होगी। मात्र मंदिर की मूर्ति की पूजा करने से, नारी का सम्मान व अस्तित्व नहीं बढ़ता। नारी सशक्तिकरण का संघर्ष अभी जारी है।
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, नारी सशक्तिकरण की योद्ध ‘वीरांगना’, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)