तनवीर जाफ़री
स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी इन दिनों एक साथ कई मोर्चों पर संघर्षरत है। सत्ता का विपक्ष के प्रति ‘दुश्मनों’ जैसा व्यवहार जहाँ कांग्रेस व कांग्रेस नेताओं के लिये चुनौती बना हुआ है वहीं कांग्रेस अपनी पार्टी में ही पल रहे ‘आस्तीन के साँपों ‘ से भी जूझ रही है। अनेक अवसरवादी नेता समय समय पर किसी न किसी बहाने से न केवल कांग्रेस छोड़कर बल्कि कांग्रेस की राजनैतिक विचारधारा को भी त्याग कर धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में अपना योगदान देने के बजाय साम्प्रदायिकता की डुगडुगी पीटने में लगे हैं। अनेक भ्रष्ट कांग्रेसी नेता भी पार्टी छोड़कर भयवश सत्ता की आग़ोश में जा बैठे हैं और किसी जांच एजेंसी का सामना करने के बजाये सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि नवगठित I. N. D. I. A गठबंधन के कई क्षेत्रीय घटक दल भी सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस को कमतर आंकने की कोशिश कर रहे हैं। गोया ऐसे वक़्त में जबकि I. N. D. I. A गठबंधन को एकजुट व मज़बूत होने का सन्देश देना चाहिये ऐसे वक़्त में कई विपक्षी क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस का ही हौसला पस्त करने में लगे हैं।
उधर इन्हीं विषम परिस्थितियों में राहुल गांधी मणिपुर से मुंबई तक की लगभग 6,700 किलोमीटर की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल चुके हैं। इस यात्रा की शुरुआत में ही I. N. D. I. A गठबंधन के प्रारंभिक सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ‘खेला ‘ हो गया और वे अपने पुराने केंचुल में जा बसे। असम में न्याय यात्रा को राज्य सरकार का क़दम क़दम पर तरह तरह का विरोध सहना पड़ा। कहीं यात्रा के इजाज़त नहीं मिली तो कहीं पुलिस में राहुल के विरुद्ध एफ़ आई आर दर्ज हुई। यहाँ तक कि बंगाल में जहाँ भारत जोड़ो न्याय यात्रा को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सहयोग व समर्थन मिलना चाहिये वहां भी वीरभूमि और मुर्शिदाबाद जैसे ज़िलों में परीक्षा के बहाने यात्रा की अनुमति नहीं दी गयी। सीट शेयरिंग के नाम पर भी ममता बनर्जी अपना स्टैंड लगभग साफ़ कर चुकी हैं कि वे बंगाल की सभी 42 लोकसभा सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेंगी। इसके पहले ममता ने कांग्रेस को मात्र दो सीटों देने का प्रस्ताव किया था जो कांग्रेस ने नामंज़ूर कर दिया है। इतना ही नहीं बल्कि ममता ही यह भी कह चुकी हैं कि कांग्रेस यदि 300 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ती है तो इनमें से 40 सीटें भी नहीं जीत सकती। उत्तरप्रदेश में भी कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से 20 सीटें मांगी थीं। परन्तु अखिलेश यादव ने कांग्रेस को केवल 11 सीटें देने की ही घोषणा की। अब ख़बर है कि कांग्रेस व सपा में 13 सीटों पर सहमति बन चुकी है। इसी तरह दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस की सीट शेयरिंग की ख़बर है जिसके अनुसार कांग्रेस 4 पर जबकि आम आदमी पार्टी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। परन्तु संभवतः पंजाब में इन्हीं दोनों दलों में सीट शेयरिंग न हो सके और दोनों दल आमने सामने चुनाव लड़ें। आम आदमी पार्टी तो हरियाणा, असम, गुजरात और गोवा में भी कांग्रेस से सीटें मांग रही है।
परन्तु इन सबसे इतर असम हो या बंगाल या बिहार अथवा झारखण्ड जहाँ से भी राहुल गाँधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो न्याय यात्रा गुज़र रही है लगभग हर जगह कांग्रेस पार्टी को भारी जनसमर्थन हासिल हो रहा है। कहीं कहीं तो जनसभाओं में लाखों की भीड़ इकट्ठी होकर राहुल गाँधी व कांग्रेस नेताओं की बातों को सुन रही है। परन्तु चाटुकार गोदी मीडिया ने राहुल गाँधी के नेतृत्व में चल रही इस भारत जोड़ो न्याय यात्रा को पूरी तरह ब्लैक आउट कर रखा है। गोदी मीडिया को इंडिया गठबंधन में किसी तरह की मनमुटाव की ख़बरों को तो मिर्च मसाला लगाकर परोसने में ख़ूब मज़ा आता है परन्तु उसे राहुल गाँधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो न्याय यात्रा में उमड़ती भीड़ व उसकी सफलता नज़र नहीं आती। इससे पहले भी जब राहुल ने 7 सितम्बर 2022 को कन्याकुमारी से कश्मीर के लिये यात्रा निकली थी तब भी गोदी मीडिया ने कोई तवज्जोह नहीं दिया था।
I. N. D. I. A गठबंधन में अनेक सहयोगी दलों के नख़रे,सत्ता का दबाव और साथ ही कांग्रेसी ‘विभीषणों ‘ का सामना और इसी बीच भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान ही राहुल गाँधी का कांग्रेस द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुये यह कहना कि- ‘मैं चाहता हूं कि हिमंत बिस्वा सरमा और मिलिंद देवड़ा जैसे लोग कांग्रेस से चले जाएं, मैं इससे पूरी तरह सहमत हूं। हिमंत एक विशेष प्रकार की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह कांग्रेस पार्टी की राजनीति नहीं है। लिहाज़ा ऐसे नेताओं को पार्टी से अलग हो जाना चाहिए, क्योंकि वे इसकी विचारधारा से सहमत नहीं हैं।’ तमाम नेताओं द्वारा कांग्रेस पार्टी छोड़कर जाने के दौरान ही राहुल का ‘अवसरवादियों ‘ को दिया जाने वाला स्पष्ट सन्देश अत्यंत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस को बचने के लिये राहुल को जिस दौर में थाली के बैंगनों की मान मनौव्वल की कोशिश करनी चाहिये उन्हें राहुल का पार्टी छोड़कर जाने का सीधा सन्देश देने का अर्थ है कि कांग्रेस और नेहरू गाँधी परिवार दोनों ही कांग्रेस की मूल गांधीवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का पालन करने के लिये प्रतिबद्ध है। ऐसे में वह ज़मीर फ़रोश नेता जिनकी कोई वैचारिक रीढ़ नहीं बल्कि उन्हें सिर्फ़ सत्ता प्यारी है, उनके लिये कांग्रेस ने बाहर जाने के रास्ते खुले रखे हैं।
ममता बनर्जी हों या अखिलेश यादव इन्हें अपनी क्षेत्रीय राजनीति में मज़बूत पकड़ पर तो गर्व हो सकता है परन्तु कन्याकुमारी से कश्मीर तक और अब मणिपुर से मुंबई तक जिसतरह कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान सड़कों पर उतर कर अपना जनाधार प्रदर्शित किया है कोई भी क्षेत्रीय दल तो क्या सत्तारूढ़ भाजपा भी नहीं कर सकती। वर्तमान समय में सत्ता के अनेक हथकंडों से आहत विपक्ष ख़ासकर कांग्रेस के लिये, देश में गांधीवादी मूल्यों की रक्षा की ख़ातिर I. N. D. I. A गठबंधन को एकजुट रखना व सीट बंटवारे जैसे संवेदनशील मुद्दे पर गठबंधन में सहमति बनाना बेशक वर्तमान समय में कांग्रेस की मजबूरी है। परन्तु हक़ीक़त यही है कि राष्ट्रीय स्तर पर केवल कांग्रेस पार्टी ही क्षेत्रीय धर्मनिरपेक्ष दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय स्तर पर साम्प्रदायिक शक्तियों का मुक़ाबला कर सकती है। शायद भविष्य की इन्हीं तैयारियों व हौसलों के साथ कांग्रेस पार्टी इस समय सम्पूर्ण जीर्णोद्धार की राह पर चल रही है।