रायबरेली : ऊँचे हैं कंगूरे…

Rae Bareli: The crests are high…

डॉ. सुधीर सक्सेना

रायबरेली भिन्न है। वह शिष्ट है और विशिष्ट भी। उसने स्वतंत्र भारत के इतिहास को न सिर्फ बनते-बिगड़ते देखा है, अपितु उसमें भूमिका भी निभायी है। वह राजनीति के मानचित्र में सुर्ख लकीरों में तभी उभर आया था, जब सन 1952 में देश के प्रथम स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के दामाद फिरोज गांधी यहाँ से निर्वाचित होकर पहले पहल संसद में पहुंचे। फिरोज गांधी साफगो और निर्भीक सांसद थे और संसद में उन्हें गौर से सुना जाता था। सन 1957 के दूसरे आम चुनाव में भी वह जीते। फिरोज गांधी अजातशत्रु नेता थे। उनका कोई खास विरोध नहीं था। याद करें कि इस चुनाव में उनके निकटतम प्रतिद्वदी नंदकिशोर निर्दल प्रत्याशी थे। फिरोज गांधी की राजनीति में पहचान और प्रतिष्ठा थी। रायबरेली को उन पर फख्र था। फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज जैसे शैक्षणिक संस्थान उनकी स्मृति को जिलाये हुये हैं।

व्यूतिक्रमों को छोड़ दें तो रायबरेली का बीती लगभग तीन चौथाई सदी का राजनीतिक इतिहास कांग्रेस की जयगाथा है। सन 1977 के ऐतिहासिक चुनाव में राजनारायण और सन 1996 और सन 98 में अशोक सिंह की जीत को छोड़ दे तो रायबरेली के मतदाताओं ने गांधी-नेहरू परिवार के सदस्यों को फिर फिर वरा है। लगभग 70 साल के कालखंड में लगभग एक दशक की अवधि के लिए उसका प्रतिनिधित्व गैर-कांग्रेसी सांसदों के हाथों में रहा। रायबरेली के मतदाता पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने पुरखों के नक्शे-पा चलते रहे। इन्होंने नेहरू परिवार के कई सदस्यों को चुना। पहले फिरोज- गांधी, फिर इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू, शीला कौल और फिर सोनिया गांधी। यही नहीं, उसने नेहरू परिवार के प्रियपात्र कैप्टेन सतीश शर्मा को भी सन 1999 में विजयी बनाया।

राय बरेली से जुड़े दो अन्य प्रसंग ऐसे हैं, जो उसकी सियासी मिजाज की झलक देते हैं। सन 1980 में यहां से ग्वालियर घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने बजिद चुनाव लड़ा, लेकिन श्रीमती इंदिरा गाधी को शिकस्त देने की उनकी ख्वाहिश धूल में मिल गयी। उन्हें लगभग पौने दो लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। रायबरेली ने अरुण नेहरू को तब चुना, जब वह वह कांग्रेस के प्रत्याशी थे। सन 1999 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा तो रायबरेली ने उन्हें नकार दिया। कैप्टेन सतीश शर्मा जीते। अरुण नेहरू का पॉलिटिकल करियर चौपट हो गया।

बीजेपी के पूर्ववर्ती संस्करण जनसंघ का रायबरेली में पदार्पण यूं तो सन 1962 में तब हो गया था, जब कांग्रेस के बैजनाथ कुरील के समक्ष जनसंघ ने छोटेलाल को मैदान में उतारा था। चुनावी दंगल में छोटेलाल कुरील के सम्मुख छोटे साबित हुए। रायबरेली की फिसलपट्टी पर बीजेपी फिर फिर रपटती रही। उसने प्रयोग किये, मगर मुंह की खाई। सन 2006 में उसने सोनिया गांधी के मुकाबले विनय कटियार को मैदान में उतारा। सपा ने राजकुमार पर दांव लगाया। सोनिया चार लाख वोटों से जीती। सन 2009 में. चुनाव में तो बीजेपी की बुरी तरह भद्द पिटी। सोनिया ने बसपा के निकटतम प्रतिद्वन्द्वी आर एस कुशवाह को करीब पौने चार लाख वोटों से मात दी। बीजेपी के आरबी सिंह को फकत 25,444 वोट मिले। इसके बाद के चुनाव में अजयअग्रवाल साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों से हारे और सन 2019 की मोदी-लहर में भी बीजेपी के प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनावी दौड़ में पिछड़ गये।

यही दिनेश प्रताप सिंह एक बार फिर मैदान में है। अमित शाह उनके लिए व्यूह रचना में मशगूल है। उनके सामने हैं राहुल गांधी। वही राहुल गांधी, जिनकी मां, दादी और दादा यहां से चुनाव जीतते आ रहे हैं। वही राहुल गांधी, जिन्होंने ‘पप्पू’ की जबरन चस्पा की गयी छवि से बखूबी मुक्ति पा ली है और भारत जोड़ने की दोहरी यात्राओं से उनका नया अवतार हुआ है। रायबरेली में दंगल में अतीत में समाजवादी पार्टी भी ताल ठोंकती रही है। सन 2004 के चुनाव में सपा के अशोक सिंह सोनिया गांधी के निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे। मगर इस चुनाव में सपा और कांग्रेस एक साथ और एकजुट हैं। कांग्रेस की संभावनाओं में पलीता लगाने के मकसद से बीजेपी तमाम नुस्खे अपना रही है। अमित शाह का पूर्व सपा- विधायक मनोज पांडेय पर डोरे डालना अकारण कतई नहीं है। उसे यह भी ज्ञात है कि रायबरेली संसदीय क्षेत्र में कद्दावर नेताओं की मौजूदगी से जातीय समीकरण गौण हो जाते हैं और रायबरेली के मतदाता जाति के बजाय राजनीतिक कुल को वरीयता देते हैं।

और शहरों की मानिंद रायबरेली भी बदला है। जब मैं सन 60 के परवर्ती दशक में यहां बिताये छात्र जीवन के दिनों को याद करता हूं और आज के यथार्थ से तुलना करता हूँ तो उपलब्धियों की चमकीली फेहरिश्त नजर आती है। शैक्षिक और चिकित्सा सुविधाएं। रेलवे की नेमतें। पांच राजमार्गों का तोहफा। यूपी का पहला निफ्ट सेंटर । फुटवेयर डिजाइन इंस्टीट्यूट। राजीव गांधी पेट्रोलियम संस्थान उड्डयन विश्वविद्यालय में तब्दील हुई एवियेशन एकेडमी। और भी बहुत कुछ। ये नेमते कांग्रेस की ताकत है और इनसे राहुल को बरबस बल मिलता है।

राहुल का बरास्ते वायनाड रायबरेली आना अर्से से पस्त कांग्रेस के लिये संजीवनी है। बहन प्रियंका वाड्रा उनके साथ हैं; बंद कमरे के बजाय गर्मजोश अभियान में शिरकत करती हुई। अमेठी में चुनाव प्रचार का जिम्मा अशोक गहलोत के कांधे है तो रायबरेली का दारोमदार छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर। रायबरेली से गांधी-नेहरू परिवार की साख जुड़ी है।

बीजेपी की पुरजोर कोशिश है कि जैसे भी हो इस साख पर बट्टा लगे। रायबरेली बीजेपी की दुखती रग है। लेकिन बीजेपी के घर में भी दरारे है, अलबत्ता वह अर्से से व्यूह रचना में लिप्त है। इसी के तहत वह कांग्रेस की नेत्री सुश्री अदिति सिंह को अपने शिविर में लाई थी। अदिति अब रामबरेली सदर से बीजेपी की एमएलए हैं। कभी उनके पिता अखिलेश सिंह इस सीट से चुनाव लड़ते थे। अदिति यूं तो माँ वैशाली सिंह के साथ जाकर शाह की रैली में भी शामिल हुर्ईं और जीआईसी मैदान पर सभा में भी शिरकत की, लेकिन उनकी चुप्पी और प्रचार से प्राय: दूरी बरतने से तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। अदिति की सोशल मीडिया पोस्ट भी राजनीतिक हलकों में जेरे बहस है। बताते हैं कि दिनेश प्रताप और अखिलेश के परिवारों के रिश्तों में खटास का इतिहास पुराना है। और इस बदमजगी ने दोनों परिवारों की युवा- पीढ़ी को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है।अदिति की भांति मनोज पांडेय भी चुप्पी बरत रहे हैं और उन चुप्पियों ने बीजेपी के माथे पर सलें डाल दी हैं।

लड़ाई कठिन है। राहुल गांधी रायबरेली कहें तो अपनी मांद में है, लेकिन उनकी लड़ाई मोशा के नेतृत्व की उस आक्रामक बीजेपी से है, जिसे किन्हीं भी उपायों से गुरेज नहीं है। मुद्दा दादी या मेडक के पौत्र के वायनाड को तरजीह देने का नहीं है, बल्कि यह है कि राहुल की जड़े रायबरेली में हैं। उनकी माँ सोनिया गांधी रायबरेली की निवर्तमान सांसद भी हैं। सोनिया गांधी ने रायबरेली के नाम वीडियो- अपील भी जारी की है। उनके इस भावभीने कथन से पूरा रायबरेली भावुक हो उठा है कि मैं अपना बेटा आपको सौंप रही हूं। बीजेपी कांग्रेस का यह किला फतह करना चाहती है। अलबत्ता उसे बखूबी पता है कि किला मजबूत है और किले के कंगूरे ऊंचे हैं। दोनों पक्ष जानते हैं कि इस किले के लिये लड़ाई का फैसला भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को प्रभावित करेगा।