रेवंत के लिये ‘अण्णा’ हैं मोदी

Modi is 'Anna' for Revanth

डॉ. सुधीर सक्सेना

ए. रेवंत रेड्डी चतुर – सुजान राजनेता हैं। वह प्रत्युत्पन्नमति और वाक-पटु हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में वह युवतम मुख्यमंत्री है। उनकी साफगोई जनता पसंद करती है। उनके इंटरव्यू दिलचस्प होते हैं। वह दस साल पहले अस्तित्व में आये तेलंगाना राज्य के हितों की बात करते हैं और अपने विरोधियों पर निशाना साधते है कि वह किसी को भी तेलांगों को लूटने या छलने नहीं देंगे। वह प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेते हैं कि वह तेलंगाना की कीमत पर गुजरात के हित साध रहे हैं। वह दक्षिण भारत की उपेक्षा की भी बात करते हैं। जब वह आरोपों की दुनाली खोलते हैं तो उनका लहजा तनिक चूहलभय होता है। उनकी बातों में तंज होता है और वह चुटकी होने से बाज नहीं आते।

जुम्मा-जुम्मा आठ रोज पहले ‘द हिन्दु’ में आर. रविकांत रेड्डी को उनका दिया साक्षात्कार छपा है। यह साक्षात्कार एक बड़े फलक को समेटता है। रेवंत बेलौस कहते हैं कि आरएसएस बीजेपी के जरिये अपना एजेंडा लागू करने के फेर में है। धारा 370, सीएए, तीन तलाक, अयोध्या में राम मंदिर के बाद अब बारी संविधान और आरक्षण-समाप्ति की है। आरएसएस के एजेंडे और सन 2021 में जनगणना नहीं कराने में सीधा रिश्ता है। गौर करें कि ब्रिटिशकाल से प्रत्येक दस वर्ष में मर्दुमशुमारी होती आई है।

मोदी जानते हैं कि लोग जनगणना और जातिगणना चाहते हैं। वह क्यों बहुमत के बजाय अब की बार 400 पार की बात कर रहे हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि वह तीन चौथाई बहुमत के बिना संविधान में संशोधन नहीं कर सकते। रेवंत रेड्डी के इस कथन के आधार पर बिलाशक कहा जा सकता है कि वह आरएसएस- बीजेपी की मंशा या हिडेन एजेंडे को बूझ रहे हैं।

यह देखना दिलचस्प है कि रेवंत वैचारिकी और व्यावहारिकता के छोरों को एक साथ कैसे साधते हैं। पहले तो उनके आक्रामक अंदाज को देखें। उनका मत है कि मोदी की सियासी नुमाइंदगी में दक्षिण भारत को कतई प्रमुखता नहीं देना चाहते। दूसरे दक्षिण अपने वित्तीय हिस्से से भी वंचित है। तेलुगु भारत में हिन्दी के बाद सर्वाधिक व्यवहृत भाषा है, किंतु 42 सांसदों के दो तेलुगुभाषी राज्यों तेलंगाना और आंध्रप्रदेश से केन्द्र सरकार में सिर्फ एक काबीना मंत्री है, जबकि 26 सांसदों के गुजरात से सात काबीना मंत्री हैं। वहीं उत्तर प्रदेश से 12 मंत्री है। सभी प्रमुख ओहदे – प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा, वित्त, शहरी विकास, ग्रामीण विकास, वाणिज्य उत्तर भारतीयों के पास है। ये विमर्श के मुद्दे हैं। अगले परिसीमन को लेकर भी आशंकाएं है।

रेवंत की नजरों में अडानी और अंबानी ही डबल-इंजन सरकार है। जनता को लगता है कि जिस जुड़वां-इंजन की बात की जाती है, है उससे सीधा तात्पर्य अडानी और अंबानी से है। वह आगे कहते हैं, आय एम इन वार जोन। आई हैव टु एक्ट एकॉर्डिंगली।

वह आगे कहते हैं कि बतौर सीएम वह पीएम से अच्छे रिश्ते रखेंगे। भारत राज्यों का संघ है और प्रधानमंत्री समस्त मुख्यमंत्रियों के बड़े भाई हैं। उन्हें ‘अण्णा’ की भूमिका निभानी है।

मिजाज से थोड़ा नरम, थोड़ा गरम रेवंत को यकीन है कि चुनाव 24 में कांग्रेस तेलंगाना में कुल 17 में से 14 सीट जीतेंगी। दक्षिण भारत के एक अन्य राज्य तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन कम आशावादी नहीं है। तमिलनाडु में कांग्रेस उनकी सहयोगी है। पुदुच्चेरि की इकलौती सीट पर उसकी प्रतिष्ठा दांव पर है। स्तालिन लगातार कह रहे हैं कि द्रमुकनीत गठबंधन तमिलनाडू और पुदुच्चेरि की सभी 40 सीटों पर विजयी होगा। दिल्ली और चेन्नै के रिश्ते बेहद तल्ख है। बीजेपी की दिक्कत यह है कि उसके तुरूप-मुद्दे, यहाँ काम नहीं आते। वित्तीय मामलों में केन्द्र द्वारा मुश्कें कसने के बाद भी तमिलनाडु की विकास दर धीमी नहीं हुई है। बाढ़ राहत को लेकर गत दिनों केंद्र और राज्य में खटास बढ़ी है। द्रमुक – सरकार ने इस मद में 37907 करोड़ रूपयों की मांग की थी, लेकिन उसे हीले-हवाले के बाद मिले 276 करोड़ रुपये। जबकि वह 2477 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी थी। राज्य सरकार को यह ऊंट के मुंह में जीरे सी यह मदद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मिली। केन्द्र के रवैये पर स्तालिन ने ट्वीट किया कि केंद्र की घोषणा ने पुष्टि कर दी है कि तमिलनाडु को न तो न्याय मिलेगा और न ही वित्त। जनता इस विश्वासघात को देख रही है।

तमिलनाडु अकेला राज्य नहीं है, जिसने केन्द्र के सौतेले बर्ताव से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केरल और कर्नाटक भी ऐसा करने को बाध्य हुये। कर्नाटक 48 लाख हेक्टर में फसल चौपट हुयी। राज्य ने राष्ट्रीय आपदा कोष से सहायता मांगी। 35000 करोड़ की क्षति की रपट सितंबर, 2023 में केन्द्र को भेजी गयी। रवायत के मुताबिक 18172 करोड़ रुपये की रकम रिलीज होने का अनुमान था। किन्तु फाइल के ठंडे बस्ते में पड़े रहने के बाद अंतत: अप्रैल के अंत में सर्वोच्च न्यायालय की हिदायत पर राज्य को मिले मात्र 3454 करोड़ रुपए। इस बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण यह कहने से नहीं चूकीं कि राज्य सरकार को केंद्र से मदद दुर्भिक्ष-राहत के लिए नहीं, अपितु गारंटियाँ लागू करने के लिए चाहिये। इस पर सीएम सिद्धरामैया ने तुर्की-ब- तुर्की कहा कि हमने गारंटी स्कीमों के लिए कभी धेला भी नहीं मांगा।

यह तो हुई तमिलनाडु और केरल की बात। केन्द्र से शिकायत केरल को भी बहुत हैं। दरअसल केरल का सियासी मिजाज बीजेपी को फुटी आंखों नहीं सुहाता। उसकी बड़ी दिक्कत यह है कि दो पाटों में बंटी केरल की राजनीति में वह सेंध नही लगा पा रही है। नीना पिल्ले से लेकर श्रीधरन तक पर दांव लगाना निष्फल रहा। लगातार ऐसा कुछ हुआ कि राज्यपाल आरिफ मोहमद खान की भूमिका संदेह और सवालों के घेरे में आ गई। इस पर विजयन-सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कवायद काम कर गयी। राज्यपाल महोदय ने अंतत: सदन में पूर्व में पारित पांच बिलों पर अप्रैल के आखिरी हफ्ते में दस्तखत किये। इनमें से कुछ बिल राजभवन में दो से भी अधिक वर्षों से लंबित थे। गौरतलब है कि महामहिम राज्यपाल केंद्र सरकार के एजेंट के तौर पर काम करने की तोहमतें अर्से से झेलते आ रहे हैं।

केरल में बीजेपी की ईसाइयों में पैठने की रणनीति छुपी नहीं रह सकी है। वह मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच अलगाव के फेर में है। दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर आकर ईसाई धर्मगुरुओं से मिले। दूरदर्शन पर केरल फाइल्स का प्रसारण हुआ। मजहबी मुद्दों को हवा दी गयी। केरल में हिन्दू- मुस्लिम राजनीति का ताजा शिकार हुये फिल्म अभिनेता मामूटी। मामूटी समकालीन मलयाली सिनेमा के लीजेंड्री व्यक्तित्व है। गत दिनों एक फिल्म निर्माता ने सूर्रा छोड़ दिया कि मामूटी को फिल्म पूझू में काम नहीं करना था। सन 2022 में आई इस फिल्म में मामूटी ने ऊंची जाति के ऐसे पुलिस अफसर की भूमिका निभाई थी, जो निचली जाति के युवक से अपनी बहन के प्रेम-विवाह का विरोध करता है। पूझूू जाति-व्यवस्था पर करारा प्रहार है। मामूटी को विवाद में घसीटने का एकमात्र कारण यह है कि मामूटी मूलत: मुसलमान है। उनका मूल नाम है मोहम्मद कुट्टी। जाहिर है कि विवाद के पीछे सांप्रदायिक दुराग्रह और घृणा का हाथ है। बहरहाल, इस गलीज हरकत का समूचे केरल में चौतरफा विरोध हुआ। सत्ता और विपक्ष मामूटी की पीठ पीछे खड़े नजर आये और मलयाली सिने उद्योग में सांप्रदायिकता की विष बेल बोने के घृणित प्रयास का विरोध हुआ। राजस्व मंत्री के. राजन ने कहा कि मामूटी को उसके मजहब के कारण संघ- परिवार ने निशाना बनाया है। कांग्रेस के महा- सचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि कला सियासत और मजहब के ऊपर की चीज है। मामूटी पर संघ-परिवार का हमला निंदनीय है।

विभिन्न घटनाओं के फलस्वरूप जो अदृश्य धूम वातावरण में प्रसारित हो रहा है, वह यकीनन चुनाव को प्रभावित करेगा। इस नयी सदी में भी जाति, धर्म, संप्रदाय और पंथ चुनावी हार जीत में प्रभा की भूमिका निभाते हैं और करिश्मा भी काम करता है। आंध्र में कम्माओं और रेडियों, तेलंगाना में मुस्लिमों, कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिंगा और केरल में ईसाई- मुस्लिमों की अवहेलना नहीं की जा सकती। कहीं कापू है, तो कहीं वन्नियार। कहने को खम्मम तेलंगाना में है लेकिन वहां पार्टी लाइन से परे हर कोई एनटीआर (दिवंगत एनटी रामाराव) के गुणगान में लिप्त है। देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक में शैव मठ की बोजेपी में दिग्गज नेता प्रह्लाद जोशी से नाराजगी क्या गुल खिलाती है? नजरे हैदराबाद में ओवैसी बनाम माधवी लता पर गड़ी है। दोनों के व्यक्तित्व में कट्टरता के चरख रेशे हैं। काँग्रेस को दक्षिण के सिंह द्वार कर्नाटक से बड़ी उम्मीद है। डिप्टी सीएम शिवकुमार की मानें तो वहां कांग्रेस की तालिका 18-20 तक पहुंच सकती है। आंध्र में लड़ाई याईएसआर की विरासत की भी है। जगन और शर्मिला वहाँ अलग- अलग राहों के राही हैं। जिज्ञासा बाबू (चंद्र बाबू नायडू) की सत्ता में वापसी को लेकर भी है। तमिलनाडू में डीएमके गठबंधन और केरल में कांग्रेसनीत गठबंधन ने बढ़त बनाई है। दोनों प्रदेशों में आरएसएस-बीजेपी का एजेंडा निशाने पर है। एमके स्तालिन दूरदर्शन के लोगो को यकबयक भगवा रंग में रंगने को बीजेपी के व्यापक भगवाकरण अभियान का हिस्सा मानते हैं। नतीजे जनादेश ही नहीं, इन मुद्दा पर रायशुमारी भी होंगे?