प्रदीप शर्मा
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जनपद में कंचनजंगा एक्सप्रेस को मालगाड़ी द्वारा पीछे से टक्कर मारे जाने से हुई क्षति बताती है कि बीते वर्ष ओडिशा में कोरोमंडल एक्सप्रेस के भीषण हादसे से हमने कोई सबक नहीं सीखा। कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे में मरने वालों की संख्या ग्यारह बतायी जा रही है और चालीस से अधिक यात्री घायल हो गए हैं, परन्तु ये सरकारी आकड़े है। उल्लेखनीय है कि बीते साल रेलवे इतिहास की बड़ी दुर्घटनाओें में शामिल कोरोमंडल एक्सप्रेस और दो अन्य ट्रेनों में हुई टक्कर में 290 से अधिक लोगों की जान चली गई थीं। उल्लेखनीय है कि कंचनजंगा ट्रेन हादसे में मरने वालों में मालगाड़ी के चालक व सहचालक भी शामिल हैं।
हालांकि दुर्घटना का वास्तविक कारण जांच के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन बताया जा रहा है कि रानीपतरा रेलवे स्टेशन व छत्तर हाट जंक्शन के बीच स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली दुर्घटना से तीन घंटे पहले से ही खराब थी। हमेशा की तरह मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख का मुआवजा देने की घोषणा हुई है। साथ ही दुर्घटना की वजह तलाशने और जवाबदेही तय करने की बात कही जा रही है। पहले उम्मीद जगी थी कि बालासोर त्रासदी से सबक लेकर रेल दुर्घटनाओं को रोकने की दिशा में कारगर कदम उठाए जाएंगे, जबकि जमीनी स्तर पर हालात बदलते नजर नहीं आ रहे हैं।
रेलवे तंत्र में कोताही का नमूना इस साल फरवरी में देखने को मिला था जब कठुआ से दासुया (पंजाब) के बीच लगभग सत्तर किलोमीटर दूरी तक एक मालगाड़ी बिना चालक के चली गई थी। सौभाग्य की बात है कि इस ट्रैक पर किसी रेल के न आने से दुर्घटना टल गई थी। बहरहाल, कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है। बढ़-चढ़कर बताया जा रहा है कि सत्ता व विपक्ष में से किसके कार्यकाल में ज्यादा रेल दुर्घटनाएं हुईं। बहरहाल, रेल दुर्घटनाएं रोकने के लिये बनायी गई टक्कर रोधी तकनीक के क्रियान्वयन को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा कि व्यस्त पूर्वोत्तर मार्ग पर यदि इसका क्रियान्वयन होता तो शायद इस दुर्घटना को टाला जा सकता था।
सवाल यह है कि रेल मंत्रालय मानवीय भूल के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को टालने के लिए गंभीर पहल क्यों नहीं करता। क्यों रेल दुर्घटनाएं रोकना सत्ताधीशों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं होता? जिस ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली ‘कवच’ को चरणबद्ध तरीके से जल्दी से लागू किया जाना चाहिए था, उस पर कछुआ गति से काम क्यों हो रहा है? एक ओर देश में बुलेट ट्रेन और तेज गति से चलने वाली अन्य ट्रेनों की बात की जा रही है, वहीं सामान्य गति से चलने वाली ट्रेनों को भी दुर्घटनाओं से निरापद बनाने में हम विफल साबित हो रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि देश में फास्ट ट्रेनों की चकाचौंध व ग्लैमर के बजाय सामान्य गति की ट्रेनों की सुरक्षा को प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित किया जाए।
वहीं विपक्ष का आरोप है कि रेलवे में रिक्त पड़े लाखों पदों को नहीं भरा जा रहा है, जिससे रेलवे बढ़ती आबादी के दबाव में सुरक्षित रेल सेवा उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। आखिर हम इन रेल हादसों से सबक कब लेंगे? निस्संदेह, रेल यातायात को दुर्घटनाओं से निरापद बनाने के लिये बुनियादी ढांचे में सुधार व अधिक निवेश की जरूरत है। हम अतीत के हादसों से सबक लेकर परिचालन व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करें। हादसों की जवाबदेही तय हो ताकि दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। वक्त की जरूरत है कि दुर्घटनाओं को टालने के लिये, जितना जल्दी हो सके अधिक दबाव वाले इलाकों में ‘कवच’ योजना को क्रियान्वित किया जाए।
इसके अलावा पटरियों के रख-रखाव के लिये आवंटित फंड का उचित उपयोग किया जाए। साथ ही बुनियादी ढांचे में सुधार, दुर्घटना टालने को आधुनिक तकनीकों का उपयोग तथा नई चुनौतियों से मुकाबले के लिये रेलवे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की भी जरूरत है। यह भी कि रेलवे के आधुनिकीकरण के लिये वित्तीय संसाधन जुटाए जाएं ताकि यह न कहा जा सके कि असुरक्षित पटरियों पर लचर संचालन प्रणाली दुर्घटनाओं की वजह बन रही है। दुर्घटनाओं का सिलसिला तभी थमेगा जब यात्रियों की सुरक्षा रेल मंत्रालय व सरकार की प्राथमिकता बनेगी।