शैक्षणिक बदहाली और भ्रष्टाचार : मोदी सरकार का काला सच !

Educational plight and corruption: The dark truth of Modi government!

सीता राम शर्मा ‘चेतन

मोदी सरकार को राष्ट्रवादी और ईमानदार सरकार कहने मानने से पहले अब उसकी जमीनी सच्चाई खंगालने, जानने और समझने की जरूरत है । इस भयावह त्रासद सच को अत्यंत सरल और आंशिक गहन चिंतन से ही स्पष्टतः जाना समझा जा सकता है । किसी भी आम जागरूक भारतीय नागरिक या राष्ट्र प्रथम और राष्ट्रहित सर्वोपरि के विचार और सिद्धांत पर जीवन जीने वाले आम अथवा विशिष्ट भारतीय को इस बात को बहुत सरलतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए कि आज की तारीख में यदि वह देश की बागडोर खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार को देना चाहता है या दे चुका है तो वह उसकी आत्मीय इच्छा या भाजपाई सरकार पर पूर्ण विश्वसनीयता नहीं, उसकी घोर विवशता के कारण है क्योंकि उसके पास फिलहाल इसका कोई विकल्प हीं नहीं है ! दुर्भाग्य से पिछले कुछ समय से बहुतायत जनता के पास मोदी के नेतृत्व जैसा जन विश्वसनीयता का जो एकमात्र विकल्प मौजूद था, यह कड़वी सच्चाई है कि वह भी अब संदेह के घेरे में है । युवा वर्ग के एक हिस्से में तो उनको लेकर संदेह की स्थिति बहुत पहले से थी ही, अब तो आम आदमी का विवेक भी उनके दल और उनकी सरकार की सामने आती घिनौनी सच्चाई से आक्रोश से भरता जा रहा है ! क्यों और कैसे ? आइए, कुछ मुख्य कारण समझते हैं ।

मोदी के नेतृत्व और भाजपाई गठबंधन वाली सरकार के लिए सबसे पहले बात भ्रष्टाचार पर क्योंकि 2014 में इसके सत्ता में आने का मुख्य और सबसे बड़ा कारण यही था । दुर्भाग्य से इसकी प्रारंभिक सफलता के बाद अब जनता यह सोचने पर मजबूर हो चुकी है कि भ्रष्टाचार विरोध की बात और दावे करने वाली यह सरकार क्या सचमुच भ्रष्टाचार विरोधी है ? बिना विलंब किए बहुत सरलता और स्पष्टता से इसका सीधा जवाब है – नहीं । ऐसा इसलिए कि भ्रष्टाचार मुक्त शासन का अर्थ सिर्फ यह नहीं होता कि किसी भी रुप में गरीब, शोषित जनता को सीधे दिया जाने वाला पैसा बिना किसी कटौति के उसके खाते में चला जाए । भ्रष्टाचार मुक्त शासन का अर्थ और प्रमाण यह भी होता है कि जनता या देश के लिए किए जाने वाले हर काम पूरी गुणवत्ता, निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ हो और उसमें लगने वाला पूरा धन बिना किसी भ्रष्टाचार के खर्च हो । ऐसी उत्कृष्ट और पारदर्शी शासन व्यवस्था बनाई और चलाई जाए । भ्रष्टाचार मुक्त ईमानदार और राष्ट्रवादी व्यवस्था वह कही जा सकती है, जिसमें अपने-पराये के बिना किसी भेदभाव के हर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई हो । क्या मोदी सरकार की नीति-नीयत और कार्यशैली में भ्रष्टाचार मुक्ति के इस उत्कृष्ट स्तर की अंश मात्र भी झलक दिखाई देती है ? अब जबकि विकल्पहीनता की विवशतापूर्ण स्थिति में आगामी पांच वर्ष के लिए देश में फिर से एक कम बुरी और थोड़ी कम भ्रष्ट सरकार बन चुकी है, हर भारतीय नागरिक को यह सच बहुत स्पष्टता और कठोरता से स्वीकारने, कहने, बताने की जरूरत है कि मोदी सरकार भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है । ना ही वर्तमान समय में इसके ऐसा होने की कोई संभावना ही दिखाई देती है । इसलिए भारतीय जनमानस को इस कार्यकाल के अगले पांच वर्षों में ना सिर्फ अपनी इस कम बुरी और कम भ्रष्ट सरकार पर पूरी सजगता, सतर्कता रखनी चाहिए बल्कि इसके द्वारा गलती और भ्रष्टाचार होता दिखाई देने पर इसके विरुद्ध प्रचंड विरोध भी करना चाहिए । ऐसा करते हुए जनता को, खासकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने वाले लोगों, समूहों और इसके समर्थकों को एक ऐसा भ्रष्टाचार विरोधी सामाजिक और राष्ट्रीय वातावरण बनाने की जरूरत है, जिससे खुद को प्रबल राष्ट्रवादी कहने बताने और दिखाने वाली इस सरकार को भी यह स्पष्ट संदेश जाए कि जनता उसके द्वारा भी किसी भी स्तर और रुप में भ्रष्टाचार करने और भ्रष्टाचारी को संरक्षण अथवा साथ देने की कठोर विरोधी है ।

गौरतलब है कि पिछले दस वर्षीय कार्यकाल में मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन के नाम पर जो एक मुख्य काम किया है वह हाशिए पर रहे आम नागरिक का बैंक खाता खोल कर उसे दी जाने वाली उसके हक अथवा सहयोग की राशि का भुगतान ही रहा है । इसके अलावा ना तो इस सरकार ने भ्रष्टाचार मुक्ति का कोई बड़ा काम किया है और ना ही भ्रष्टाचारियों से मुक्ति का । दुर्भाग्य से वह अब भी ऐसा कुछ करती दिखाई नहीं देती । एक तरफ भाजपा की संपति और संसाधनों में पिछले दस वर्षों में भारी बढ़ोतरी दिखाई देती है तो दूसरी तरफ इसमें और इसके सहयोगियों में भ्रष्टाचारियों की बढ़त और स्वीकार्यता बेतहाशा बढ़ी है । भाजपा में हर स्तर पर दलगत तामझाम, दिखावे और फिजूलखर्ची की जो अपसंस्कृति आज तेजी से बढ़ती दिखाई देती है और उसके मूल में उसका जो खजाना है, वह कहां से आया और भर रहा है ? इस पर जनता को बिना किसी अंध श्रद्धा और विश्वास या मूर्खता के बहुत गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है ! आखिर वे कौन से ऐसे लोग हैं जो इसको अपना धन दिल खोलकर दे रहे हैं ? दे रहे हैं तो क्यों दे रहे हैं ? उनसे इसका क्या संबंध है ? उन्हें इससे क्या और कैसे लाभ मिल रहा है ? स्पष्ट है बिना किसी स्वार्थ और लाभ के कोई किसी को कुछ नहीं देता । जो भाजपा को अपना अकूत धन चंदा या सहयोग के रुप में वैधानिक या अवैधानिक रुप से दे रहे हैं वह उसके एवज में कुछ लाभ भी उठा रहे होंगे और वह हर हाल में जनता के लिए तो नुकसान दायक ही होगा । है । यह अकाट्य सत्य है ।

मोदी सरकार का एक भयावह सच – वर्षों से दागी, अपराधी और भ्रष्ट सांसदों, विधायकों से त्रस्त और पीड़ित भारतीय जनता ने 2014 में खुद को एक प्रबल राष्ट्रवादी बताने और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की घोषणा करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा द्वारा अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बाद अपना राष्ट्रीय नेता मान लिया था । भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनाक्रोश और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की स्वच्छ छवि के चलते जनता ने आंख बंद कर उन्हें व्यापक समर्थन दिया । उन्हें लगातार तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनाया है पर आज यह लिखते बताते हुए मन-मस्तिष्क ग्लानी और आक्रोश से भर उठता है कि 2014 में भ्रष्टाचार और अपराध से मुक्ति का जोर शोर से ढोल पीटते हुए केंद्रीय सत्ता में आई मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के तीसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचारी, दागी और अपराधी सांसदों की संख्या घटने की बजाय निरंतर बढ़ती चली गई है । चुनाव विश्लेषण करने वाली संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ( एडीआर ) ने यह बताया है कि 2024 में चुनाव जीत कर आए दागी नेताओं की संख्या 2014 से 13 प्रतिशत बढ़कर अब 46 प्रतिशत हो गई है ! गौरतलब है कि मोदी के पहले कार्यकाल 2014 में चुनाव जीत कर संसद पहुंचे दागी सांसदों का प्रतिशत 34 था, जो सुशासन का दम भरने वाली मोदी सरकार के अगले कार्यकाल 2019 में 43 प्रतिशत और अब 2024 में रिकॉर्ड 46 प्रतिशत तक पहुंच गया है ! आश्चर्य की बात यह है कि दागी और अपराधी पृष्ठभूमि के सांसदों की सूची में स्वंय भाजपा का प्रतिशत भी 39 है ! अर्थात आज हर दस में चार भाजपाई सांसद दागी हैं !! यह आंकड़ा ना सिर्फ भाजपा और मोदी सरकार का काला सच सामने लाता है बल्कि उसके समर्थकों के साथ राष्ट्रवादी जनमानस के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है । नहीं है तो होना चाहिए ।

मुझे लगता है इस कड़वे और भयावह सच पर खुद को महामानव के अंहकार से ग्रसित करते वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री को अपने मन की नहीं आत्मा की सच्ची बात का जिक्र जनता से करना चाहिए । एक बात और स्पष्ट कर दूं कि यहां बहुत चतुराई भरी साफगोई से इस ज्वलंत और गंभीर विषय पर प्रधानमंत्री के पक्ष में एक बार यह माना, समझा या मनवाया अथवा समझाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्ति एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है, पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर मोदी सरकार के वर्तमान व्यवहार से यह कतई नहीं लगता कि वह भ्रष्टाचार की विषम परिस्थितियों से उबरने निकलने के लिए कोई दीर्घकालीन प्रयास कर रही है । कम से कम भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर तो यहां विपक्षी दलों की यह बात शत-प्रतिशत सच दिखाई देती है कि वर्तमान मोदी सरकार उत्कृष्ट विकल्प की विवशता में मिल रहे जन समर्थन का दुरुपयोग करते हुए खुद को एक ऐसी गंगोत्री समझ रही है जिसमें आते ही वह बड़े से बड़े भ्रष्टाचारी को भी उसके तमाम अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त कर उसे पूर्णतः पवित्र और महान बना देती है ! काश, विवशतापूर्ण स्थिति में भाजपा का समर्थन करती जनता के अंतःकरण की चीत्कार यह सरकार सुन पाती । सुनेगी, इसकी आशा अब कम है । बेहतर होगा कि देश की पूरी राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक बिरादरी अगले पांच वर्ष में ही एक नये विकल्प पर विचार और व्यवहार करे । इस परिप्रेक्ष्य में यह लिखते कहते हुए रत्ती भर भी संदेह या संकोच नहीं है कि देशहित में यदि कोई ऐसा प्रयास किया गया तो इस राह की सबसे बड़ी बाधा अब भाजपा ही सिद्ध होगी । अतः बेहतर होगा कि अगले चुनाव के ठीक पहले भाजपा के साथ अन्य राजनीतिक दलों के सांसद विधायक ही ऐसा कोई बड़ा काम करें । मुझे लगता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार और व्यवहार करना चाहिए ।

अंत में बात वर्तमान मोदी सरकार के एक बार फिर सामने आते एक और कलंकित और दागदार सच की, जिसे निष्पक्ष भाव से बिना किसी बहाने के स्वीकार करने और सुधारने की बजाय यह सरकार हर बार की तरह छिपाने, दबाने का कुत्सित प्रयास ही करती दिखाई दे रही है । अपने कुछ नितांत स्वार्थी नेताओं और उनकी अंध महत्वाकांक्षाओं के लिए भीतरघात की बात पर कुछ लिखना कहना तो व्यर्थ होगा पर सरकार बनने के तुरंत बाद नीट परीक्षा में हुई धांधली पर तो हर उचित बात उसे सुननी ही होगी । सुनना उसकी बाध्यता इसलिए भी है कि नीट परीक्षा में हुई धांधली से एक दो नहीं देश के चौबीस लाख विद्यार्थियों में आक्रोश व्याप्त है । छात्रों के परिजनों और इस प्रोफेशन के दूरगामी परिणामों से प्रभावित लोगों की संख्या तो करोड़ों में होगी ! पर फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि चिकित्सक बनने जैसे अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम से जुड़ी इस परीक्षा में हुई धांधली पर सरकार, विशेषकर देश के शिक्षा मंत्री की सोच और उनका व्यवहार कैसा रहा है ? धांधली के समाचार आने के बाद पहले तो उन्होंने ऐसी किसी संभावना से ही साफ इंकार कर दिया ! फिर कुछ छात्रों को दिए सिर्फ ग्रेस मार्क की बात पर ही अटके रहे ! फिर मीडिया रिपोर्ट और खुलासे के बाद धांधली की बात तो स्वीकार की, पर आगे क्या ? इस पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अपनी कर्तव्यनिष्ठा की इतिश्री कर दी ! अर्थात हुई अनियमितता पर शिक्षा मंत्रालय वह करेगा जो सर्वोच्च न्यायालय आदेश देगा ? तो शिक्षा मंत्रालय का दायित्व क्या ? फिर यह कुतर्क कि एक-दो जगह, जहां मीडिया या अन्य माध्यमों से धांधली के समाचार सामने आए, सिर्फ वहीं पर फिर से परीक्षा कराए जाने की बात और उस पर तर्क और चिंता देखिए शिक्षा मंत्री जी की – देश के लाखों ऐसे छात्रों की चिंता करना आवश्यक है, जो महीनों से इस परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे ! हमें उनके बारे में भी सोचना है । वाह शिक्षा मंत्री जी ! चलिए, आपकी इस महान पापी संवेदनशीलता और चिंता का चिंतन और उसका पर्दाफाश करते हुए एक जरुरी सवाल पूछ लेते हैं आपसे – महोदय, नीट में हुई धांधली के उजागर होने के तुरंत बाद यूजीसी नेट की परीक्षा हुई, उसमें भी चार लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी, पर सर्वविदित है कि उसमें धांधली के समाचार की त्वरित सूचना आपकी सरकार के गृह मंत्रालय को मिली और आपने बिना यह पड़ताल किए कि डार्क नेट और टेलीग्राम से कितने छात्रों को अनुचित लाभ मिला, पूरी परीक्षा ही रद्द करने की घोषणा कर दी !! घोर आश्चर्य का विषय है कि चार लाख छात्रों के प्रति यहां आपकी वह महान संवेदनशीलता कहां गायब हो गई ? नीट के प्रति दिखाया गया आपका वह महान चिंतन कहां और कैसे स्वतः ही चारों खाने चित्त हो गया ? ये सवाल बेहद गंभीर और चिंताजनक हैं पर संभव है कि आपके लिए महत्वहीन हों । पर सोचिएगा जरुर, क्योंकि जनता को अब पूरा विश्वास हो चुका है कि इस मामले में शिक्षा मंत्री के रूप में आपकी कार्यशैली संदिग्ध है और वह संदिग्धता आनन-फानन में एंटी पेपर लीक कानून लागू कर मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने से और बढ़ती ही जा रही है । छात्रों के साथ आपके और सरकार के लिए बेहतर तो यही होगा कि आप अपनी इस नाकामी के लिए त्वरित त्याग पत्र दें और सरकार सभी दोषियों को ढूंढ कर उन्हें सख्त सजा दे । साथ ही यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में ऐसा होने की संभावना ना के बराबर होगी । ऐसा होगा, इस पर मेरा व्यक्तिगत विश्वास तो शून्य है क्योंकि मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी कमी और नाकामी रही है कि यह किसी भी स्थिति में अपनी अथवा व्यवस्थागत भूलों और गलतियों को त्वरित स्वीकारने, सुधारने का कोई प्रयास नहीं करती । इसके महान नेतृत्व को कतई यह भान नहीं कि गलतियां मानवीय स्वभाव है और उससे भी हो सकती है, जो कई बार तो बहुत अच्छी सोच और अच्छे लक्ष्यों के निर्धारण और प्रयासों के बावजूद कुछ त्रुटियों के कारण त्वरित सुधार के योग्य होती हैं और इस सरकार से तो अधिकांश गलतियां सिर्फ इसलिए होती है कि यह सार्वजनिक क्षेत्र के सुधार और विकास लक्ष्यों पर सार्वजनिक और सामुहिक चिंतन के महत्व को ना जानने समझने के योग्य मानती है और ना ही गलत होने पर त्वरित विचारणीय । हां, अंततः बाध्यता की स्थिति में जमीन पर जरूर आ खड़ी होती है । लगता है इस बार भी ऐसा ही होगा । इस सरकार की कई कमियों, त्रुटियों, असफलताओं के साथ शैक्षणिक दुर्दशा, अव्यवस्था पर और भी बहुत कुछ है, फिर कभी – – – । अच्छाईयों और उपलब्धियों पर तो बहुत कुछ लिख चुका हूं और लिखूंगा भी ! निष्पक्षता और सत्य लेखन का महत्व है और लेखकीय धर्म, कर्तव्य भी ।