अश्वनी ए कौशिक
हमारी अंधभक्ति और दिखावटी श्रद्धा हमारे स्वयं के अंतर्मन को किस ओर ले जा रही है ये आंकलन स्वयं हमें ही करना होगा । भीड़चाल की परंपरा से घिरा आम जनमानस कब किसी घटना का साक्षी हो जाता है , पता भी नहीं चलता । कई बार इन घटनाओं का परिणाम भक्ति से इतर इतना हृदय विदारक हो जाता है कि उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अंत में क्षति पहुंचती है भक्ति और श्रद्धा के साथ आए उसी जनमानस को , जिनमें से कुछ को ये दर्द जीवनभर कचोटेगा । अभी हालिया घटना उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई , हाथरस के फुलरई गांव में 100 से अधिक लोगों का भगदड़ में मारा जाना उन सभी बातों की ओर इशारा है कि हमें भविष्य के लिए किन व्यवस्थाओं , प्रबंध और सजगता से ऐसे आयोजनों को कराना होगा।
अव्यवस्थाओं के बीच हाथरस में हुई हालिया घटना कोई नई घटना नहीं है। इससे पहले भी कई घटनाओं का साक्षी यह देश रह चुका है। जहां हजारों लोगों ने अपनी जान सिर्फ इसी अव्यवस्था, अंधभक्ति और प्रशासनिक लापरवाही आदि कारणों से गंवाई है। कुछ घटनाओं की बात करें जैसे 2005 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से ज्यादा भक्तों की कुचलकर मौत हो गई । 2008 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में चट्टान खिसकने की अफवाह की वजह से मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई। 2008 में राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह से भगदड़ में 250 लोगों की जान चली गई। 2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की जान चली गई। 2011 में केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में भगदड़ में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई। 2013 में मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि महोत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई। पटना में छठ पूजा के समय गंगा नदी पर हुई भगदड़ , पटना में दशहरे के समय गांधी मैदान में मची भगदड़, आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी जिले की घटना, वैष्णो देवी पर भीड़ होने से मची भगदड़ और रामनवमी के पर्व पर इंदौर में हुई घटना आदि ऐसी कई व्यथित करने वाली घटनाएं हैं जो हमें इशारा करती हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो तो हमें कितना सजग होने की आवश्यकता है ।
नेताओं व अभिनेताओं के कार्यक्रमों में आने वाली भीड़, देश में होने वाले कुंभ आदि जैसे बड़े आयोजन, धार्मिक स्थलों पर दर्शन हेतु जमा होने वाली भीड़, धार्मिक आयोजनों में उमड़ने वाली भीड़, इन जैसे कई कार्यक्रम हमारे देश में होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे, हाथरस में हुई घटना के तुरंत बाद बाबा बागेश्वर धाम में उमड़ा जन सैलाब और क्रिकेट विश्व विजेता बनकर लौटी टीम के स्वागत में उमड़े लोगों ने यह दर्शाया है कि ऐसे आयोजन आगे भी जारी रहेंगे। इसके लिए आवश्यकता है हमें अपने आप को तैयार करने की। इन आयोजनों में होने वाली घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए हमें किसी एक वजह को जिम्मेदार ठहराने की बजाय उन सभी कारणों पर विचार करना होगा जिससे यह भविष्य में आगे ना हो । आम जन मानस को स्वयं जागृत होना होगा और यह महसूस करना होगा कि ऐसे आयोजनों में व्यवस्था को स्वयं सजग रहकर कैसे व्यवस्थित किया जाए , केवल भीड़ तंत्र का हिस्सा हो जाना आयोजन में जाना ही आपकी जिम्मेदारी को पूर्ण नहीं कर देता। एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति के प्रति जो जिम्मेदारी है उसे अपने अंतर मन से जानना और समझना होगा। बाबाओं की चरण वंदना के लिए टूट पड़ना आपकी भक्ति नहीं अंधभक्ति को ही दर्शाता है और भक्ति व अंधभक्ति के अंतर को भी समझना होगा। यह समझना होगा कि सनातन में तो इतनी उदारवादिता है कि आप इस श्रद्धा भक्ति को अपने चेतन मन से कहीं भी यहां तक की घर पर रहकर भी ईश्वर को समर्पित कर सकते हैं।
कार्यक्रम के आयोजकों को भी यह समझना होगा कि लापरवाही व लाभ कमाने के उद्देश्यों से आयोजन नहीं किए जाते , आयोजन को सफल बनाने में किन व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है और उन्हें पूर्ण रूपेण प्रयोग में लाया जा रहा है या नहीं। जैसे हवा,पानी व भोजन इत्यादि की उचित व्यवस्था करना और लोगों के आने व जाने के रास्तों का संचालन ढंग से किया जाना आदि । आयोजन स्थल पर संसाधनों का पूर्ण रूप से समान भाव से प्रयोग तथा उचित प्रशासनिक सहायता लेना भी कार्यक्रम आयोजकों की जिम्मेदारी है।
साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों को यह समझने की आवश्यकता है कि केवल कागजी कार्यवाही और आयोजन की अनुमति देने भर से उनकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। लोगों को व्यवस्था के प्रति जागरूक करना तथा कार्यक्रम आयोजकों की सहायता करना भी शासन प्रशासन की जिम्मेदारी है। कार्यक्रम स्थल पर अनुमति से अधिक लोगों के पहुंचने पर व्यवस्था कैसे व्यवस्थित ढंग से संचालित की जानी चाहिए इसके प्रति आयोजकों को जागरूक करना और मेडिकल सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरत को स्थल तक पहुंचाना वह उसके लिए तैयार रहना चाहिए। आयोजकों व पुलिस प्रशासन के बीच अक्सर होने वाली संवादहीनता को दूर करना भी जरूरी है।
प्रबंध कौशल सीखने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता है। प्रबंध कौशल सीखने के लिए विदेश में ट्रेनिंग लेने जाना इस बात का कोई हल नहीं है , अपने देश में होने वाले इतने विशाल आयोजनों की तुलना विदेश में होने वाले आयोजनों से करना उचित नहीं है, विदेश में ऐसे बड़े आयोजन कम ही देखने को मिलते हैं । उच्चतम न्यायालय भी अपने वक्तव्य में ऐसे आयोजनों के लिए राष्ट्रव्यापी नीति बनाने का उल्लेख कर चुका है जिसे अब धरातल पर उतारने का समय आ गया है । सरकारों को भी यह समझना होगा कि ऐसे आयोजनों के लिए निगरानी तंत्र को विकसित व सुव्यवस्थित बनाकर सफलतम लक्ष्य की प्राप्ति की जा सके। राजनेताओं द्वारा केवल वोट की राजनीति के लिए इन कार्यक्रमों में भागीदारी करने से अब काम नहीं चलेगा। इन घटनाओं से हुई त्रासदी को देखकर सभी का मन व्यथित होता है और जिन लोगों पर इन घटनाओं का सीधा प्रभाव पड़ता है उनकी मानसिक स्थिति का वर्णन करना संभव ही नहीं है। केवल संवेदनाएं और मुआवजा इन घटनाओं से होने वाली त्रासदी का हल नहीं है, सरकारों को उचित व्यवस्था , प्रबंधन और निगरानी तंत्र तथा राष्ट्रव्यापी नीति बनाने की ओर अग्रसर होना होगा। ऐसे आयोजनों के आयोजकों, प्रबंधकों तथा लोगों को यह बताना होगा कि कार्यक्रमों में होने वाली लापरवाही के लिए किस तरह के कानून व दंड का प्रावधान है ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही से कोई त्रासदी या दुर्घटना ना हो जिसका खामियाजा आम लोगों को व सभी को भुगतना पड़े ।