संजय सक्सेना
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कोरोना महामारी के समय कोरोना पीड़ितों के लिये ‘फरिश्ते’ साबित होने वाले अपने करीब पांच हजार संविदा कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी हैं।पिछले महीने 30 जून के बाद इन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया और कई जिलों के मुख्य चिकित्साधिकारियों ने इनसे कार्य न लेने का आदेश भी जारी कर दिये हैं। ऐसे में कोविड काल में जान-जोखिम में डालकर रोगियों की सेवा करने वाले यह संविदा कर्मचारी निराश और गुस्से में हैं। संविदा कर्मियों का कहना है कि यह सरकार की हिटलरशाही है।कोरोना महामारी के समय हमने अपने जान की परवाह नहीं करते हुए अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया जिसकी सजा हमें नौकरी से निकाल कर दी गई है।अब सरकारी फरमान के खिलाफ संविदा कर्मी आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।
गौरतलब हो, कोरोना महामारी के समय रोगियों की जांच व उपचार के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), उत्तर प्रदेश ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, लैब टेक्नीशियन, स्टाफ नर्स, कंप्यूटर आपरेटर, आयुष चिकित्सक और नान मेडिकल साइंटिस्ट इत्यादि के पदों पर संविदा पर सात हजार लोगों की भर्ती की थी। इन्हें अलग-अलग 10 हजार से लेकर 55 हजार रुपये तक मासिक मानदेय दिया जा रहा था। बीते एक वर्ष से भारत सरकार की ओर से बजट न दिए जाने के कारण धीरे-धीरे जिन पदों पर कर्मचारियों की जरूरत नहीं थी, उन्हें हटाया जाने लगा। करीब दो हजार संविदा कर्मचारी निकाल दिए गए थे, अब बाकी बचे संविदा कर्मियों को भी हटा दिया गया है।
संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री सच्चिदानंद मिश्रा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को पत्र लिखकर मांग की गई है कि इन्हें न हटाया जाए। तीन-तीन महीने का सेवा विस्तार इन्हें दिया जाए। तमाम खाली पदों पर इन्हें समायोजित किया जा सकता है। उधर, संयुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कर्मचारी संघ के महामंत्री योगेश उपाध्याय का कहना है कि उनकी वार्ता उच्चाधिकारियों से हुई है और पूरी कोशिश की जा रही है कि इन्हें काम पर रखा जाए। अगर इन्हें सेवा विस्तार न मिला तो आंदोलन किया जाएगा।