एनडीए में खटपट की आहट के मायने क्या हैं!

What is the meaning of the noise in NDA?

उमाकांत लखेड़ा

तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के लिए जब दिल्ली में 7 जून 2024 को भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के घटकों की बैठक हुई तो माहौल सरकार बनने की खुशी से ज्यादा तनाव का ही था। इस बेचैनी का कारण समझा जा सकता था कि क्योंकि तीसरी बार भाजपा सत्ता में जरूर है लेकिन उसकी सरकार अल्पमत की है। कई नीतिगत मामलों व सत्ता में अहमियत को लेकर भाजपा व एनडीए घटकों में खटपट शुरू हो गई। रोचक बात यह है कि भाजपा और उसके प्रमुख सहयोगी दलों में मंत्रियों की संख्या और अहम मंत्रालयों के बंटवारे या लोकसभा के स्पीकर पद को लेकर टीडीपी या जेडीयू ने उस तरह का कोई अड़ियल रवैया नहीं अपनाया जैसे कि शुरू में कयास लग रहे थे।

भाजपा को केंद्र में अपने बूते पर बहुमत न मिलने के कारण संसद के भीतर और बाहर उसका पहले जैसा रुतबा नहीं बचा। इसलिए पहले दिन से ही चंद्रबाबू नायडु और नीतीश कुमार से रिश्तों के जोखिम को लगातार तौल रही है। टीडीपी व जेडीयू दल सत्ता की सौदेबाजी में माहिर माने जाते हैं इसलिए इनमें से एक भी किसी क्षण नाराज हुआ तो भाजपा को सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा।

भाजपा को झटका 80 सीटों वाले यूपी में लगने से उसकी सारी हेकड़ी खत्म हो गई जहां वह मात्र 33 सीटों पर सिमट गई। वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी की जीत का अंतर आधे से भी कम होना और फैजाबाद जहां कुछ ही महीने में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के बाद भी अयोध्या में भाजपा की करारी हार हुई।

मजबूत व एकजुट विपक्ष चौतरफा विवादों में फंसी सरकार के लिए आए दिन मुश्किलों का सबब बनता जा रहा है। इसी कड़ी में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बजट को मोदी सरकार की कुर्सी बचाओ बजट बताकर भाजपा को असहज हालात में खड़ा कर रखा है।

टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडु 10 साल के सियासी बनवास के बाद आंध्र प्रदेश की सत्ता में वापस लौटे हैं। इसलिए पूरा फोकस आंध्र प्रदेश को आधुनिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाना है ताकि आगामी 5 साल के बाद वे अपनी राजनीति की विरासत को अपने पुत्र नारा लोकेश को सौंप सकें जोकि इस वक्त आंध्र में उनकी सरकार में मंत्री हैं।

यूपी में चुनावी हार के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व दिल्ली के मोदी और उनकी टीम के प्रमुख किरदार अमित शाह के बीच नई जंग शुरू हो गई। इसकी वजह हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने और यूपी में योगी विरोधी मंत्रियों को और नेताओं को दिल्ली दरबार को सरंक्षण। मकसद सीधा सा है किसी भी तरह योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर दिल्ली के वफादार को मुख्यमंत्री बनाना। फिलहाल योगी ने अपनी ताकत के बल पर उन्हें पद से हटाने की कोशिशों पर विराम लगा दिया।\

सालाना कांवड़ यात्रा में ढाबा संचालकों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टे लगाने के बाद भी इस विवादपूर्ण फैसले की मंशा को लेकर सवाल और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। भाजपा मुश्किल में है क्योंकि जैसे ही वह धार्मिक और हिंदुत्व के मामलों को गरमाने की चेष्टा करेगी उसे केंद्र में अपने सेक्युलर घटक दलों का प्रतिरोध झेलना होगा।

दिल्ली से सटे पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड में हरिद्वार तक 200 किमी लंबे सड़क मार्ग हर साल सावन के इस सीजन में यात्रा होना एक आम सी बात है। लेकिन भाजपा इस मामले पर कोर्ट के दखल को पचा नहीं पा रही। जाहिर है कि नीतीश कुमार की पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी के अलावा मोदी सरकार में मंत्री चिराग पासवान और पश्चिमी यूपी से राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी देशव्यापी विवाद और प्रतिरोध के बीच खुलकर विरोध में उतर आए। अजित सिहं के पुत्र और बड़े जाट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी भी मोदी सरकार मे मंत्री हैं। उनको लगा कि यदि हिंदू-मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करने वाले इस तरह के आदेशों का विरोध नहीं किया तो उनकी भविष्य की राजनीति पर पलीता लग जाएगा।

भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाने के साथ लोकसभा स्पीकर समेत केंद्र सरकार के सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने पास रखे हैं। संसद के पहले सत्र और मौजूदा बजट सत्र से ही ताकतवर विपक्ष ने मोदी सरकार की संसद के दोनों सदनों में कड़ी घेराबंदी कर रखी है। दस साल के कार्यकाल के बाद पहली बार मोदी और उनकी टीम को अल्पमत और बहुमत की सरकार चलाने का कड़वा अहसास होना शुरू हुआ है।

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह निजी तौर पर कष्टप्रद स्थिति है क्योंकि मोदी कभी भी इस तरह के दबाव में काम करने के अभ्यस्त नहीं रहे। मोदी और भाजपा ऊपरी दिखावे के लिए भले ही दावा कर रहे हों कि उन्हें देश की जनता ने तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के लिए जनादेश दिया है लेकिन असलियत में भाजपा के भीतर ही इस बात को पूरी शिद्दत के साथ महसूस किया जा रहा है कि वास्तव में यह जनादेश नहीं बल्कि भाजपा को (टीडीपी और जेडीयू) के रहमोकरम पर सरकार चलाने को मजबूर कर दिया गया जिनके हाथों भाजपा पहले धोखा खा चुकी है।

भाजपा की मुश्किल यह भी है कि किसी दिन ये दोनों नाराज हुए तो विपक्षी गठबंधन से हाथ मिलाने में इन्हें ज्यादा परहेज नहीं होगा।

23 जुलाई को संसद परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से विपक्ष पर संसद के भीतर सरकार पर हावी होने के हताशापूर्ण बयान ने कइयों को चौंकाया। पहले सत्र में लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के जवाब में मोदी के पूरे भाषण के दौरान विपक्षी सांसदों ने पूरी ढाई घंटे तक उनके भाषण में व्यवधान मचाए रखा। मोदी ने कहा विपक्ष संसद में सरकार को कुचलना चाहता है। पिछले सत्र में विपक्ष ने ढाई घंटे तक उनका गला घोंटने की कोशिश की। भाजपा की मुश्किल यह भी है कि विपक्ष के हमलों के क्षणों में टीडीपी, जेडीयू या दूसरा कोई बड़ा घटक भाजपा पक्ष में खड़े होते नहीं दिखते।

आंध्रप्रदेश और बिहार को आम बजट में खास तवज्जो दिए जाने से देश के बाकी राज्यों में भाजपा संगठन व सरकार में बेचैनी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश की बजट में उपेक्षा पर सपा नेता अखिलेश यादव जैसे प्रमुख नेता हमलावर हैं। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि आंध्र को केंद्रीय बजट में भारी भरकम आर्थिक बजट जारी होने से चंद्रबाबू नायडु और आंध्र प्रदेश में भूमाफिया को मजबूत मिलेगी न कि आम जनता को। जाने माने अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी कहते हैं, “आंध्रप्रदेश को राजधानी बनाने के लिए 15 हजार करोड़ की मिली सौगात ने वास्तव में नायडु और उनके घनिष्ठ पूंजीपतियों के लिए लाखों करोड़ के भूमि सौदों का रास्ता साफ किया।“

आंध्र व बिहार के लिए केंद्रीय बजट में प्रावधान से भले ही मोदी ने एक तरह से अपनी सरकार को पूरे पांच साल तक चलाने का कुछ भरोसा हासिल कर लिया हो लेकिन इससे भाजपा व विपक्षी इंडिया गठबंधन के बाकी राज्यों की सरकार में घोर असंतोष के आसार बढ़ गए हैं। तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में बजट को लेकर गहरा असंतोष है। माना जा रहा है कि ऐसे हालात में उन राज्यों की आर्थिक उपेक्षा से भाजपा संगठन को वहां काम करने और जनाधार बढ़ाने में खासी मुश्किलें आने वाली हैं।