तो क्या वक्फ बोर्ड संविधान और न्यायपालिका से भी बड़ा है

So is the Waqf Board bigger than the constitution and the judiciary

सुशील दीक्षित विचित्र

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश होते ही विपक्ष के तेवर तन गए | संविधान की दुहाई दी जाने लगी | संघीय ढाँचे की बाते की जाने लगीं | भाजपा पर कट्टरता को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे | इसे हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का सोपान भी करार दे डाला | यह राजनीति तुष्टीकरण की पराकष्ठाको भी पार करती दिख रही है क्यूंकि वक्फ एक्ट का संविधान से कोई मतलब नहीं | इसका शरीयत से भी कोई लेनादेना नहीं क्यों कि दुनिया के किसी भी देश , इस्लामिक देश तक में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है |

हालाँकि वक्फ बोर्ड एक्ट 1923 में बनाया गया लेकिन संविधान निर्माताओं ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा | 1954 में नेहरू सरकार ने वक्फ एक्ट को संशोधित कर लागू किया अलबत्ता अयोध्या का विवादित ढांचा ध्वस्त होने की घटना के बाद मुस्लिमों को खुश करने के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तत्कालीन कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार तरह तरह की पैतरेबाजी करती रही | इसी के तहत 1995 में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक लाया गया | इसमें कहा गया कि यदि वक्फ बोर्ड सोचता है की अमुक जमीन वक्फ की सम्पत्ति है | उसे किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार है | 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ एक्ट में फिर संशोधन किया | यह संशोधन वक्फ बोर्ड को संविधान और न्यायपालिका से भी बड़ा बना दिया | इसके तहत वक्फ बोर्ड द्वारा हथियाई गयी सम्पत्ति के मामले की किसी भी न्यायालय में , उच्चतम न्यायालय में भी सुनवाई नहीं की जा सकती |

इन संशोधनों से वक्फ बोर्ड इतना शक्तिशाली हो गया कि वह ऐसी जमीनों पर कब्ज़ा करने लगा जिसका वक्फ से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं था | लोगों का ध्यान बोर्ड की मनमानी पर तब गया जब तमिलनाडु के एक हिन्दू बहुल गांव और उसके 1500 साल पुराने मंदिर को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दिया | ऐसे ही एक मामला महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का है जहां एक बस्ती में 250 के करीब अनुसूचित वर्ग के लोग हैं उनके पास एक नोटिस उनकी जमीन को खाली करने के आया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की है | हाई कोर्ट इलाहाबाद परिसर में एक मस्जिद को वक्फ ने अपनी सम्पत्ति घोषित कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद हटाई |

एक दो नहीं देश भर में लाखों ऐसे मामले हैं जिनमें अवैध तरीके से वक्फ बोर्ड ने जमीन हड़प ली | इस मनमानियों से 2009 के बाद वक्फ बोर्ड की जमीन दो गुनी हो कर साढ़े नौ लाख एकड़ हो गयी | भूमि के मामले में वक्फ बोर्ड रेलवे और सेना के बाद तीसरे नंबर पर है | ऐसा ही भूमि हड़पने का एक मामला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय पंहुचा | इसकी सुनवाई करते हुए वकील की दलीलों से झल्लाये जस्टिस गुरुपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि ऐसे तो आप कल ताजमहल और लाल किला भी वक्फ बोर्ड को दे देंगे | अदालत की यह टिप्पणी मामले की गंभीरता को दर्शाती है |

पत्रकार प्रदीप सिंह तो इसे भारत के इस्लामीकरण की प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि दुनिया के किसी भी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है | यह सिर्फ भारत में है जो कि धर्मनिरपेक्ष देश है | सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्वनी उपाध्याय में दो साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में वक्फ एक्ट में बदलाव के लिए जनहित दायर याचिका में आरोप लगाया था कि वक्फ एक्ट को वक्फ बोर्ड ने धर्मांतरण का हथियार बना लिया है | हड़पी गयी जमीन वापस करने के बदले पीड़ित से धर्म परिवर्तन की मांग की जाती है | अश्विनी उपाध्याय ने स्पष्ट कहा है कि वक्फ एक्ट संविधान की भावना के खिलाफ है | इससे समाज में वैमनस्य और असमानता बढ़ रही है |

पिछले साल दिसंबर में भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 को खत्म करने के लिए राज्यसभा में निजी विधेयक पेश करते हुए यही आरोप लगाया कि इस एक्ट से देश में असमानता फैली है और बड़े स्तर पर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है | उन्होंने कहा कि ये ऐसी अतार्किक और असंवैधानिक व्यवस्था है जिसने बोर्ड के लोगों को अकूत ताकत दे रखी है | यह अपने में और भी बड़ी विसंगति है कि केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड को अनुदान देती है और मंदिरों से पैसा बसूलती है |

इतनी सारी विसंगतियों के बाद भी इसे संविधान और संघीय ढांचे पर हमला बता कर जो तर्क और घिसेपिटे आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है वह निश्चय ही जल्दी थमने वाला | अभी और भी ऐसे ही भड़काने वाले बयान आयेंगे लेकिन कांग्रेस नेता , अखिलेश यादव या उनके संगी साथी जिस संघीय ढाँचे और संविधान की बात कर रहे है उस पर तो सबसे बड़ा हमला वक्फ बोर्ड एक्ट है | संविधान या कानून से परे कोई नहीं होता लेकिन वक्फ बोर्ड है | इसका अपना निजाम है जिसे हर बार मौका हाथ लगते ही कांग्रेस ने अपनी सरकारों के दौरान इतनी शक्तियां दीं कि वक्फ बोर्ड देश से बड़ी संस्था बन गया | किसी ने कहा भी है कि यह लैंड जेहाद है | यदि यह दस प्रतिशत भी सही है तो यह गंभीर मसला है | विपक्ष का इस पर जो गैर जिम्मेदाराना रवैया है उससे सहमत होना सम्भव नहीं |

मजेदार बात यह कि विपक्ष के नेता संसद से सड़क तक भाजपा पर असमानता का आरोप लगात्ते रहे हैं जबकि कांग्रेस ने शुरू से ही दोहरे धार्मिक कानून बनाये | हिन्दुओं के लिए अलग और मुस्लिमों के लिए अलग | हिन्दुओं पर सुधार का डंडा बार बार चला और मुस्लिम इदारों को पाला गया | बोर्ड में गैर मुस्लिमों को शामिल करने का प्राविधान नहीं है जबकि हिन्दू मंदिरों के ट्रस्ट में गैर हिन्दुओं को शामिल किया जाता है | वक्फ सम्पत्ति की दूकाने हिन्दुओं को नहीं दी जा सकतीं जबकि मंदिरों की दुकाने गैर हिन्दुओं को देने में कोई हिचक मंदिर ट्रस्ट नहीं दिखाता | वक्फ बोर्ड का यह नियम है कि बोर्ड की जमीन पर बनने वाले अस्पताल , स्कूल का खर्च सरकार देगी और कब्ज़ा बोर्ड का होगा | धर्मनिरपेक्षता का पाखंड इससे भी उजागर होता है कि सरकार मंदिरों से पैसा लेती है लेकिन वक्फ बोर्ड को अनुदान देती है | मंदिरों के दीवानी मामले अदालतें सुनेंगी लेकिन वक्फ बोर्ड की सुनवाई उन्हीं की अदालत सुन सकती है |

उत्तर प्रदेश के ,मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 1989 में कांग्रेस द्वारा यूपी में बनाये गए उस कानून को खारिज कर दिया जिसके तहत सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए। इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गईं। योगी सरकार का तर्क है कि सम्पत्तियों के स्वरूप अथवा प्रबंधन में किया गया परिवर्तन राजस्व कानूनों के विपरीत है | इसको लेकर सपा ने वही राजनीति की जो अब कर रही है | अखिलेश यादव ने वही बासी आरोप लगाया था कि मुद्दों से भटकाने के लिए ऐसा किया जा रहा है और यह सर्वे नहीं होना चाहिए | कार्यवाही को एकतरफा भी बताया गया | सवाल यह है कि यदि जमीन नहीं हड़पी गयी तो सर्वे में पता चल जाएगा तो यदि आरोप झूठे हैं तो अखिलेश यादव या विपक्षी नेताओं को डर किस बात का | यदि जमीन हड़पी गयी तो यह दीवानी अपराध है | उसकी पैरवी करना अपराधी का सहयोग करना है और यूपी के माफियाओं पर हुयी कार्यवाही का विरोध करके अखिलेश यादव ऐसा पहले कर भी चुके हैं |

अलबत्ता विपक्ष या बुद्धिजीवियों का खेमा कुछ भी कहे लेकिन सच यही है कि वक्फ बोर्ड कांग्रेस की तुष्टीकरण की घातक नीतियों का बड़ा उदाहरण है | इससे न जाने कितने लोग घर से बेघर हो गए | इसका समर्थन करने का मतलब है जानते बूझते खतरे को बड़ा होने देने के लिए माहौल बनाना है | जानकारों का कहना है कि यह एक दिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी हानिकारक हो सकता है | देश में दो विधान चलने से संविधान कमजोर होता है | इस विसंगति को समाप्त करना जरूरी है | न्यायालय और संसद दोनों को इस पर गहनता से विचार करना चाहिए ताकि धर्मनिरपेक्षता की सही अर्थों में रक्षा की जा सके |