ललित गर्ग
हर साल दुनियाभर में 26 सितंबर को विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है, पर्यावरणीय स्वास्थ्य का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना। हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ रहने के लिए पर्यावरण को बचाना कितना जरूरी है। जिस जगह हम रहते हैं, वहां पर्यावरण से जुड़ी हर चीज की देखभाल करना हर व्यक्ति का फर्ज होना चाहिए। हर बीमारी का उपचार प्रकृति एवं पर्यावरण में है। इस दिवस की 2024 की थीम है पर्यावरण स्वास्थ्य, आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन के माध्यम से लचीले समुदायों का निर्माण।’ प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वैश्वीकरण और प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा है। मनुष्य को घेर रही तरह-तरह की बीमारियों का सबसे बड़ा कारण प्रकृति के प्रति लापरवाही एवं उपेक्षा है। ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई, नदियों में गंदगी फैलाना, पशुओं को हानि पहुंचाना आदि पर्यावरणीय स्वास्थ्य के नुकसान पहुंचाने के कई कारण हैं। अनियोजित औद्योगीकरण, बढ़ता प्रदूषण, घटते रेगिस्तान एवं ग्लेशियर, नदियों के जलस्तर में गिरावट, पर्यावरण विनाश, प्रकृति के शोषण और इनके दुरुपयोग के प्रति असंवेदनशीलता पूरे विश्व को एक बड़े संकट की ओर ले जा रही है। इन संकटों के बीच प्राकृतिक पर्यावरण, वायु, जल, भोजन, आवास और समुदायों की गुणवत्ता में सुधार को बढ़ावा देने के लिये इस दिवस की विशेष प्रासंगिकता है।
26 सितंबर, 2011 को इंडोनेशिया में आयोजित शिखर सम्मेलन में इस दिन की स्थापना हुई थी। यह दिवस लोगों को पर्यावरण के कई पहलुओं के बारे में शिक्षित करने का एक साधन है जो किसी न किसी तरह से स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकते हैं जैसे कि हवा और पानी की गुणवत्ता, ठोस अपशिष्ट निपटान, और खतरनाक पदार्थों का प्रभाव। यह दिवस मनुष्य स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका को बढ़ावा देने और सभी निवासियों के जीवन के लिए आवश्यक पर्यावरण की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त साधनों की खोज से जुड़ा है। हानिकारक पर्यावरणीय कारक श्वसन पथ के संक्रमण या जलजनित रोगों सहित विभिन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाती हैं। जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिये मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को समाप्त करने, नवीकरणीय ऊर्जा, कुशल स्वास्थ्यवर्द्धक ऊर्जा उपयोग और वनीकरण पर आधारित हैं। शमन का अर्थ है लोगों के व्यवहार को बदलना और सूखे का सामना करने वाली फसलों को विकसित करना और सिंचाई प्रणालियों में सुधार जैसे कठोर और नरम उपायों के माध्यम से उपयुक्त जलवायु के लिए पर्यावरण में आवश्यक संशोधन करना।
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस इस बात की याद दिलाता है कि पर्यावरण संरक्षण केवल प्राकृतिक दुनिया का संरक्षण नहीं है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और भविष्य की सुरक्षा है। इसलिए, जब लोग समुदायों में एक साथ मिलकर काम करते हैं, तो पर्यावरण के कारण होने वाली आपदाओं के बावजूद उन्हें स्वस्थ जीवन जीने में सक्षम बनाने के लिए अच्छे उपायों को अपनाना आसान हो जाता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इस दिन हम रुकें और इस बात पर विचार करें कि हम पर्यावरणीय स्वास्थ्य को कैसे बेहतर बना सकते हैं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए और अधिक प्रयास कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए हमें पर्यावरणीय स्वास्थ्य को सभी के लिए बेहतर और स्वस्थ भविष्य के मार्ग के रूप में अपनाने की आवश्यकता है। यह दिन विशेष रूप से आधुनिक वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और उन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो दुनिया को लोगों और पर्यावरण दोनों के लिए एक बेहतर स्थान बनाने में मदद कर सकते हैं। इस दिन को सेमिनार, कार्यशाला, मीटिंग आदि जैसी विभिन्न गतिविधियों द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह लोगों, संगठनों और सरकारों को एक साथ आने और समुदाय के बेहतर और अधिक टिकाऊ रूपों को बनाने के लिए रणनीतियों पर विचार करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह दिन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को एक दूसरे से निकटता से जुड़ा हुआ मानता है।
यह उल्लेखनीय है कि प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियाँ कई बीमारियों का मूल कारण हैं, उदाहरण के लिए, श्वसन रोग, जलजनित रोग और पुरानी बीमारियाँ। विशेषतः वायु प्रदूषण जानलेवा होता जा रहा है, जीवन की औसत आयु को कम कर रहा है। दरअसल, हमारे नीति-नियंता प्रदूषण कम करने के लिये नागरिकों को जागरूक करने में भी विफल रहे हैं। हमारी सुख-सुविधा की ललक ने भी वायु प्रदूषण बढ़ाया है। अब चाहे गाहे-बगाहे होने वाली आतिशबाजी हो, प्रतिबंध के बावजूद पराली जलाना हो, या फिर सार्वजनिक परिवहन सेवा से परहेज हो, तमाम कारण प्रदूषण बढ़ाने वाले हैं। कल्पना कीजिए बच्चों और दमा, एलर्जी व अन्य सांस के रोगों से जूझने वाले लोगों पर इस प्रदूषण का कितना घातक असर होगा? यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की हालिया रिपोर्ट फिक्र बढ़ाती है जिसमें कहा गया कि वायु प्रदूषण के चलते भारत में जीवन प्रत्याशा में गिरावट आ रही है।
दुनिया की आबादी आठ अरब से अधिक हो चुकी है। इसमें से लगभग आधे लोगों को साल में कम से कम एक महीने पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण 2000 से बाढ़ की घटनाओं में 134 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सूखे की अवधि में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पानी के संरक्षण और समुचित उपलब्धता को सुनिश्चित कर हम पर्यावरण को भी बेहतर कर सकते हैं तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या का भी समाधान निकाल सकते हैं। पैकेट और बोतल बन्द पानी आज विकास के प्रतीकचिह्न बनते जा रहे हैं और अपने संसाधनों के प्रति हमारी लापरवाही अपनी मूलभूत आवश्यकता को बाजारवाद के हवाले कर देने की राह आसान कर रही है। विशेषज्ञों ने जल को उन प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है, जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। सदियों से निर्मल जल का स्त्रोत बनी रहीं नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र बिगड़ रहा है, और भू-जल स्तर लगातार घट रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीसरी पारी में अब प्रकृति- पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण-मुक्ति के साथ बढ़तेे रेगिस्तान को रोकने के लिये सक्रिय हैं। बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने एवं पर्यावरण की रक्षा को लेकर प्रधानमंत्री का संकल्प एक शुभ संकेत है, नये भारत के अभ्युदय का प्रतीक है। सरकार की नीतियों में जल, जंगल, जमीन एवं जीवन की उन्नत संभावनाएं और भी प्रखर रूप में झलक रही है।
मनुष्य का लोभ एवं संवेदनहीनता भी त्रासदी की हद तक बढ़ी है, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश का बड़ा सबब बना है। मनुष्य के कार्य-व्यवहार से ऐसा मालूम होने लगा है, जैसे इस धरती पर जितना अधिकार उसका है, उतना किसी ओर का नहीं- न वृक्षों का, न पशुओं का, न पक्षियों का, न नदियों-पहाड़ों-तालाबों का। ये स्थितियां मनुष्य एवं पर्यावरण स्वास्थ्य को चौपट कर रही है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को कहना पड़ा कि हमारी पृथ्वी एक तरह से जलवायु अराजकता की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इंसानी सभ्यता के सामने अब सिर्फ ‘सहयोग करने या खत्म हो जाने’ का विकल्प बचा है। विश्व के पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, उससे मुक्ति के लिये जागना होगा, संवेदनशील होना होगा। विश्व के शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को सहयोग के लिये कमर कसनी होगी तभी हम विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस को सार्थक सकेंगे।