प्रो. (डॉ.) संजय कुमार श्रीवास्तव
2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है। दिल्ली की राजनीति पिछले कुछ वर्षों में कई परिवर्तनों से गुजरी है, और अब आने वाला चुनाव इस दिशा को एक नई राह दिखा सकता है। इस विश्लेषणात्मक लेख में हम उन प्रमुख कारकों पर विचार करेंगे जो दिल्ली के सत्ता संघर्ष को प्रभावित करेंगे। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, मुद्दों की भूमिका, पार्टी विशेष की रणनीति और नए मतदाताओं की पसंद सभी एक अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
2013 में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) के आगमन ने एक बड़ी हलचल मचाई थी। तब से लेकर आज तक, पार्टी ने अपनी खास पहचान बनाई है। 2020 के चुनाव में आप ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी और अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में पुनः चुना गया था।
आप की सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और महिला सुरक्षा के मुद्दों पर काम करके जनता का विश्वास जीता है। सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों में सुधार के साथ, लोगों ने आप के “दिल्ली मॉडल” को सराहा है। लेकिन पांच साल बाद, क्या जनता का विश्वास उसी प्रकार बरकरार रहेगा? पार्टी पर कुछ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, और दिल्ली की जनता अब अधिक जागरूक हो चुकी है। इसके अलावा, विपक्षी पार्टियां भी उनके कार्यों की आलोचना करने में पीछे नहीं हैं।
दिल्ली की सत्ता बरकरार रखने के लिए आप को न केवल अपने पिछले कार्यों का सटीक प्रचार करना होगा, बल्कि नए और प्रभावी वादों के साथ जनता के सामने आना होगा। अगर वे इस बार भी शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने सुधार के एजेंडे को बढ़ावा दे पाते हैं, तो उनके पास मजबूत संभावनाएँ हैं।
भारतीय जनता पार्टी भाजपा ने दिल्ली विधानसभा में लंबे समय से अपने प्रभाव को मजबूत करने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता हासिल की है, और भाजपा इसका लाभ दिल्ली में भी उठाना चाहती है। भाजपा की कोशिश होगी कि वह राष्ट्रीय और सुरक्षा मुद्दों को आधार बनाकर जनता को अपने पक्ष में करे।
बीते वर्षों में भाजपा ने दिल्ली नगर निगम आप (एमसीडी) पर अपना कब्जा बनाए रखा है और अब उनकी नजर विधानसभा पर है। भाजपा केंद्र की योजनाओं का प्रचार करते हुए दिल्ली के विकास के लिए एक नई दृष्टि प्रस्तुत कर सकती है। हालाँकि, भाजपा को दिल्ली के जमीनी मुद्दों पर काम करना होगा, जैसे प्रदूषण, स्वच्छता, और जल आपूर्ति। साथ ही, भाजपा के पास एक अनुभवी नेतृत्व की कमी है जो जनता में अपनी जड़ें जमा सके। भाजपा के सामने चुनौती यह होगी कि वह स्थानीय मुद्दों पर जनता के सामने अपने प्रभावशाली एजेंडे को पेश कर सके।
दिल्ली में कभी प्रमुख पार्टी रह चुकी कांग्रेस अब खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। शीला दीक्षित के समय में दिल्ली में कांग्रेस का शासन लगभग 15 साल तक रहा था। लेकिन उसके बाद कांग्रेस ने अपनी पकड़ खो दी।
अब कांग्रेस दिल्ली में नए चेहरे और नई ऊर्जा के साथ वापसी की कोशिश कर रही है। हाल के समय में पार्टी ने कई नीतियों पर अपना रुख स्पष्ट किया है और अपनी छवि को सुधारा है। कांग्रेस की समस्या यह है कि उसने लम्बे समय से सत्ता में न रहने के कारण दिल्ली में अपनी जमीनी पकड़ खो दी है। पार्टी के पास अब भी एक बड़ा जनाधार है, खासकर उन लोगों का जो पिछले कांग्रेस शासन के कामों को याद करते हैं।
यदि कांग्रेस नए नेताओं को सामने लाकर और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देकर दिल्ली की जनता का विश्वास जीतने में सफल होती है, तो वह मुकाबले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पार्टी को यह भी ध्यान रखना होगा कि युवा मतदाताओं तक अपनी बात कैसे पहुँचाई जाए, जो दिल्ली की राजनीति में एक निर्णायक शक्ति बन चुके हैं।
दिल्ली के चुनाव में स्थानीय मुद्दे हमेशा एक प्रमुख भूमिका निभाते आए हैं। प्रदूषण का बढ़ता स्तर दिल्ली के निवासियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा बन गया है। चुनाव में जो भी पार्टी इस समस्या का ठोस समाधान प्रस्तुत करेगी, उसे जनता का समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा, यातायात जाम, ट्रांसपोर्ट सिस्टम में सुधार, पेयजल संकट, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
2020 के चुनाव में आप ने शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर जोर देकर जीत हासिल की थी। 2025 में भी ये मुद्दे प्रासंगिक बने रहेंगे। अब यह देखना होगा कि विपक्षी पार्टियां कैसे इन मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं। आम जनता को विश्वास दिलाना होगा कि उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है, और यह केवल वादों तक सीमित न रहे।
2025 का चुनाव निश्चित रूप से 2020 की तुलना में अधिक डिजिटल और तकनीकी आधार पर आधारित होगा। सोशल मीडिया, डिजिटल विज्ञापन और वर्चुअल रैलियों के माध्यम से पार्टियाँ अपने चुनावी अभियानों को जनता तक पहुँचाने की कोशिश करेंगी। विशेषकर युवा मतदाता, जो सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय रहते हैं, इस चुनाव में एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। डिजिटल माध्यम से संवाद का यह तरीका पार्टियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित होगा, जिससे वे सीधे मतदाताओं से जुड़ सकें।
दिल्ली में इस बार बड़ी संख्या में नए मतदाता भी शामिल होंगे। युवा और पहली बार मतदान करने वाले मतदाता किस पार्टी को अपना समर्थन देंगे, यह चुनाव का एक महत्वपूर्ण पक्ष हो सकता है। इन नए मतदाताओं की प्राथमिकताएं और उम्मीदें क्या हैं, यह समझना पार्टियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।
आप, बीजेपी, और कांग्रेस को यह समझना होगा कि ये नए मतदाता पुराने मतदाताओं से भिन्न दृष्टिकोण और अपेक्षाएं रखते हैं। उन्हें जागरूकता, रोजगार, शिक्षा और स्वस्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों पर जोर देना होगा, क्योंकि यह नई पीढ़ी अपने भविष्य के प्रति बेहद सजग है।
फिलहाल, आप के पास उनके कार्यों का मजबूत आधार है, और दिल्ली मॉडल की सफलता उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती है। दूसरी ओर, भाजपा के पास केंद्र का समर्थन और बड़ा संसाधन है, और वह इसे अपने पक्ष में भुनाने की पूरी कोशिश करेगी। वहीं, कांग्रेस अपनी पुरानी प्रतिष्ठा और नए दृष्टिकोण के साथ वापस लौटने की तैयारी में है।
यह कहना कठिन है कि कौन सा दल विजयी होगा, क्योंकि दिल्ली के मतदाताओं की प्राथमिकताएं और अपेक्षाएं लगातार बदल रही हैं। लेकिन एक बात निश्चित है। 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव मुद्दों, विचारों, और डिजिटल अभियानों के अनोखे संगम के रूप में उभरेगा।
दिल्ली के मतदाता अब अधिक जागरूक हो चुके हैं और अपने मुद्दों पर सही निर्णय लेना चाहते हैं। किसे जनता का समर्थन मिलेगा, यह समय ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है – इस बार का चुनाव एक नई दिशा और दृष्टिकोण को जन्म देगा, जो दिल्ली की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।