‘ईवीएम को लेकर कांग्रेस का जनांदोलन’ : हुज़ूर आते आते बहुत देर कर दी

'Congress's mass movement regarding EVM' : Sir, you have come very late

तनवीर जाफ़री

भारत में ईवीएम (EVM ) अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का चलन कोई बहुत पुराना नहीं है। 1990 के दशक तक तो चुनावों के दौरान कागज़ के मतपत्रों अथवा बैलट पेपर का ही उपयोग किया जाता था। चूँकि भारत की गिनती विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में होती है इसलिये यहाँ पर्याप्त मात्रा में काग़ज़ के मतपत्रों के अतिरिक्त इनकी छपाई, मतपत्र व मत पेटियों के आवागमन(परिवहन ), इनके भंडारण और मतपत्रों की गिनती हेतु पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती थी। इन बैलेट पेपर्स में धोखाधड़ी वाले मतदान और बूथ कैप्चरिंग की संभावना तो थी ही,साथ ही बूथों पर क़ब्ज़ा करने व उनमें जाली मतपत्र भरने की घटनायें भी सामने आती रहती थीं। इस तरह की अनियमिताओं की शुरुआत हालांकि 1950 के दशक के उत्तरार्ध से ही शुरू हो चुकी थी परन्तु 1950 और 1980 के दशक के बीच यह समस्या निरंतर बढ़ती चली गई। कुछ राज्यों में तो चुनाव,धांधली व बूथ क़ब्ज़ा को लेकर बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुआ करती थी। भारत के चुनाव आयोग ने इन्हीं समस्याओं से निजात पाने की ग़रज़ से 1970 के दशक के उत्तरार्ध में इस समस्या का समाधान खोजा जिसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का विकास हुआ। इस प्रणाली को भारत के चुनाव आयोग के लिए राज्य के स्वामित्व वाली इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा विकसित किया गया था। 1990 के दशक के उत्तरार्ध में उन्हें चरणबद्ध तरीक़े से भारतीय चुनावों में पेश किया गया था। भारतीय चुनाव आयोग हमेशा यह दावा करता रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, सिस्टम जाँच, सुरक्षा प्रक्रियाएँ और चुनाव प्रोटोकॉल आदि किसी से भी छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

परन्तु ईवीएम के प्रचलन में आने के फ़ौरन बाद से ही इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने खड़े हो चुके थे। कांग्रेस के शासन काल में शुरू की गयी ई वी एम से मतदान प्रक्रिया का न केवल लाल कृष्ण आडवाणी व सुब्रमण्यम स्वामी जैसे नेता विरोध करते रहे हैं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वयं पहले ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं और इसकी विश्वसनीयता पर संदेह जताते रहे हैं। देश के कई साफ़्ट वेयर विशेषज्ञ भी यह दावा कर चुके हैं कि ईवीएम के साथ छेड़ छाड़ की जा सकती है। देश में विभिन्न सामाजिक संगठन भी ईवीएम के विरोध स्वरूप कई बार आंदोलित हो चुके हैं। परन्तु अभी तक किसी राजनैतिक दल ने ईवीएम से चुनाव कराने के विरोध में जनांदोलन करने की घोषणा नहीं की । यह पहला अवसर है जब कांग्रेस ने आगामी 26 दिसंबर से कर्नाटक के बेलगाम से ईवीएम के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है। 26 दिसंबर को बेलगाम में पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी उसके बाद एक विशाल रैली आयोजित की जाएगी। और यहीं से कांग्रेस ईवीएम के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने जा रही है। कांग्रेस के अनुसार जिस तरह लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी, उसी तर्ज़ पर बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने के समर्थन में व्यापक राष्ट्रीय जन समर्थन जुटाने के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में देशव्यापी भारत जोड़ो यात्रा निकाली जाएगी।

कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों के नेता वैसे तो अपने अपने स्तर पर ईवीएम का विरोध करते रहे हैं। परन्तु जब भी चुनावी नतीजे विपक्षी दलों के पक्ष में जाते हैं उस समय ईवीएम का विरोध करने वाले यही दल व नेता अपनी जीत के जश्न में डूबकर यह भूल जाते हैं कि जिस ईवीएम ने उन्हें जीत दिलाई है वह संदिग्ध है? बजाये इसके वही विपक्ष अपनी जीत को सत्ता के विरुद्ध जनता का फ़रमान बताने लगता है। परन्तु पिछले दिनों देश के सर्वोच्च न्यायलय ने एक बार फिर ईवीएम का विरोध करने वाली याचिकाओं को ख़ारिज करते हुये विपक्षी दलों को आईना दिखाया और अपनी टिप्पणी में अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से राजनीतिक पार्टियों को दिक़्क़त नहीं है, आपको क्यों है? ऐसे आइडिया कहां से लाते हो.” अदालत ने कहा, “चंद्रबाबू नायडू या जगन मोहन रेड्डी जब चुनाव हार जाते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ होती है. जब वे जीतते हैं, तो ईवीएम में सब ठीक रहता है?”इसी अदालती निर्णय के बाद कांग्रेस ने सड़कों पर उतरकर ईवीएम का विरोध करने का निर्णय लिया है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस तरह प्रत्येक चुनावों के दौरान ईवीएम को लेकर संदेहपूर्ण ख़बरें आती हैं। कहीं से ईवीएम ग़ायब होने का समाचार मिलता है तो कहीं अनिधकृत रूप से ईवीएम पकड़ी जाती हैं। कहीं इन मशीनों का आवागमन संदिग्ध रहता है तो कहीं से यह ख़बर आती है कि मतदाता ने वोट तो किसी अन्य दल को दिया परन्तु वी वी पैट में किसी दूसरे दल का निशान नज़र आया। कई बार यह भी हो चुका है कि पोल सम्बन्धी सभी भविष्यवाणियों यहाँ तक कि राजनैतिक दलों व विशेषज्ञों के सभी आंकलनों को धत्ता बताने वाले हैरत अंगेज़ चुनाव नतीजे सामने आये। तब भी संदेह ईवीएम की कार्यप्रणाली पर ही जाता है। परन्तु अदालत का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि यदि ‘आप हार जाएं तो ईवीएम ख़राब और जीतें तो सब ठीक’ ? उधर कांग्रेस चुनाव आयोग की कार्यशैली व चुनाव प्रक्रिया को संदेह पूर्ण बता रही है। इसलिए कांग्रेस इसको लेकर जनांदोलन के द्वारा जनता के बीच जाएगी और इस मुद्दे पर जनता से संवाद करेगी। वैसे भी एलन मस्क जैसे उद्योगपति भी यह कह चुके हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है। एलन मस्क ने 150 से अधिक देशों का दौरा किया है और यह पाया कि अधिकांश देशों ने बैलेट पेपर वोटिंग को अपनाया है और यही तर्क दिया कि भारत को भी यही तरीक़ा अपनाना चाहिए।

ईवीएम की कार्यप्रणाली पर संदेह का मामला किसी एक दल की हार या जीत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह उस भारतीय लोकतंत्र की शुचिता का सवाल है जो दुनिया के समक्ष एक आदर्श चुनाव की मिसाल पेश करने के दावे करता है। साथ ही देश के करोड़ों मतदाताओं को भी इस बात का यक़ीन होना ज़रूरी है कि जिस दल अथवा प्रत्याशी को उसने वोट दिया है वह सही जगह पर पहुंचा भी या नहीं ? इसलिये चुनावी पारदर्शिता की ख़ातिर ईवीएम को लेकर कांग्रेस का जनांदोलन लोकतंत्र को बचाने व जीवित रखने की दिशा में उठाया गया एक क़दम तो ज़रूर है परन्तु यह भी सच है कि कांग्रेस ने इस निर्णय तक आते आते बहुत देर कर दी।