एक हजार साल की उपेक्षा और आघात से उबरता आदि तीर्थ संभल

Adi Tirtha Sambhal recovering from thousand years of neglect and trauma

  • स्वतंत्रता के बाद भी उपेक्षित रहा सम्भल
  • 68 तीर्थ,19 कूपोंउत्तर प्रदेश की दूसरी काशी है सम्भल का नगर है सम्भल
  • त्रिकोण में स्थापित हैं शिवलिंग

सर्वेश कुमार सिंह

सम्भल चर्चा के केन्द्र में है। उत्तर प्रदेश विधान सभा में 16 दिसम्बर को सम्भल पर हुई चर्चा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ओजस्वी और सीधे संदेश के साथ दिये गए वक्तव्य के बाद से देश में सम्भल की एक बार फिर चर्चा शुरु हुई है। हालांकि जामा मस्जिद के सर्वे के आदेश के बाद लोगों ने सम्भल के विवाद को जाना। किन्तु सम्भल का महत्व कितना अधिक है और यह भारत के किसी भी धर्म स्थल या तीर्थ से कम महत्व नहीं रखता। इसकी प्राचीनता और पौराणिक महत्व के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। एक हजार साल पहले तक संभल भारतीय आध्यात्मिक,सांस्कृतिक और भक्ति के केन्द्र में था। लेकिन जब भारत पर आक्रमण शुरु हुए और विदेशी आक्रांताओं ने धार्मिक महत्व के प्रमुख स्थलों को ध्वस्त करके अपनी राजनैतिक और धार्णिक सत्ता को स्थापित करने का प्रयास किया, तब संभल भी अयोध्या,मथुरा और काशी की भांति ही प्रभावित हुआ। यहां भी मन्दिर तोडे गए और यह एहसास कराया गया कि तोडने वालों का धर्म ही श्रेष्ठ है।

इस हजार साल की उपेक्षा और पराजय से उपजी नियति ने सम्भल को इतिहास में गुमनाम नगर के रूप में स्थापित कर दिया। यह छोटी काशी है। काशी में जो तीर्थ और धर्मस्थल हैं वे सभी सम्भल में भी हैं। जिस सम्भल नगर में जामा मस्जिद बनाम हरिहर मन्दिर का विवाद शुरु हुआ है, वह नगर सामान्य नहीं है। यह अनेक विशिष्टताओं को समेटे है। यह नगर पौराणिक, सांस्कृतिक धरोहरों का केन्द्र है। इसमें 68 तीर्थ और 19 कूप हैं। इस कारण इसे छोटी काशी भी कहा जाता है। इस नगर को सृष्टि के आरम्भ में स्वयं ब्रह्मा ने बसाया था। आज यह शिल्प की दृष्टि से सींग के सामान के लिए प्रसिद्ध है।

पुराना है मन्दिर मस्जिद विवाद,चालीस साल पहले भी चर्चा में आया

सम्भल में मन्दिर और मस्जिद का विवाद कोई नया नहीं है। इस विवाद के कारण कई बार पहले भी हिंसा हो चुकी है। हिंसा में अनेक जानें गई हैं। वर्ष 1990 के दशक में भी यह विवाद उभरा था किन्तु उस समय के प्रशासन ने तत्परता से इसे सुलझा दिया था। उस समय सूचना विभाग ने मुरादाबाद की विकास पुस्तिका प्रकाशित की थी। सम्भल तब मुरादाबाद की एक तहसील थी। तत्कालीन जिला सूचना अधिकारी आईडी जोशी ने उक्त पुस्तिका का प्रकाशन किया था। पुस्तिका में उन्होंने उल्लेख किया था कि सम्भल में हरिहर मन्दिर पर अतिक्रमण के बाद मस्जिद बनाई गई है। इसके प्रकाशन के बाद एक स्थानीय उर्दू दैनिक ने इस पर सम्पादकीय प्रकाशित किया। इसके प्रकाशन के बाद विवाद बढ गया था और सम्भल के तत्कालीन प्रमुख नेता डा शफीकुर्रहमान वर्क ने, जो विधायक और सांसद भी रहे इस पुस्तिका के प्रकाशन पर आपत्ति की और थाने में जिला सूचना अधिकारी के खिलाफ तहरीर दे दी थी। किन्तु जिलाधिकारी ने तत्परता से उक्त पुस्तिका का वितरण रुकवा कर मामने को रफा दफा करा दिया था। जो पुस्तिकाएं बांटी गई थीं उन्हें वापस मंगा लिया गया था। लेकिन, जिला सूचना अधिकारी का कहना था कि उन्होंने उक्त संदर्भ मुरादाबाद के गजेटियर से लिया है। इसमें लिखा है कि यहां हरि मन्दिर था जिसके स्थान पर मस्जिद बनी है।

सम्भल चर्चा के मुख्य केन्द्र में 19 नवम्बर को आया, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पश्चिम उत्तर प्रदेश के लखनऊ खण्डपीठ के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन के पुत्र सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन ने के प्रयास से संभल जिला अन्तर्गत चन्दौसी के न्यायालय में एक याचिका दायर करके जामा मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई। याचिका में कहा गया कि इस स्थान पर पूर्व में हरिहर मन्दिर था। कोर्ट ने उसी दिन सर्वे का आदेश जारी कर दिया और सर्वे के लिए अधिवक्ता रमेश राघव को सर्वे कमिश्नर नियुक्त कर दिया। सर्वे भी उसी दिन आरंभ हुआ। लेकिन सम्भल में विवाद 24 नवम्बर को हुआ जब यहां पुनः सर्वे आरम्भ हुआ तो विवाद हो गया और हिंसा भड़क उठी।

राजनीतिक उपेक्षा का शिकार नहीं बन सका तीर्थ क्षेत्र

राजनीतिक रूप से यहां पहले कांग्रेस और बाद में जनता दल और समाजवादी पार्टी के नेताओं का प्रभुत्व रहा है। खासकर मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार ने यहां से लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। यहां से मुलायम सिंह यादव और प्रो रामगोपाल यादव दोनों सांसद रहे हैं। इनके पहले जनता दल के टिकट पर श्रीपाल सिंह यादव, डीपी यादव और कांग्रेस के समय श्रीमती शांति देवी यादव ने संसद में प्रतिनिधित्व किया। एक बार भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सिंह 2014 में चुनाव जीते। किन्तु किसी भी सरकार ने इसकी सांस्कृतिक और पौराणिक विरासत को ध्यान में रखकर इसके विकास और संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने पर भी इसकी सुधि नहीं ली गई। प्रदेश के अनेक धार्मिक महत्व के स्थानों को तीर्थ क्षेत्र घोषित कर दिया गया है किन्तु सम्भल को उस श्रेणी में नहीं रखा गया। हालांकि वर्ष 1999 में भाजपा की कल्याण सिंह के नेतृत्व की सरकार में एक बार इसके विकास पर चर्चा अवश्य आरंभ हुई थी तब पर्यटन विभाग को योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी किन्तु वह योजना आगे नहीं बढी। सम्भल के विकास के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन क्षेत्र प्रचारक स्व ओमप्रकाश जी ने रुचि ली थी। लेकिन बाद में योजना पर आगे अमल नहीं हुआ।

कल्कि अवतार की भविष्यवाणी

पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मण्डल अन्तर्गत सम्भल एक गुमनाम पौराणिक तीर्थ है। राज्य में स्थित प्रमुख धर्म स्थलों और तीर्थों की जब बात होती है तो अयोध्या, मथुरा, काशी और नैमिषारण्य का नाम सर्वोपरि होता है। किन्तु कम ही लोग जानते हैं कि मुरादाबाद से दक्षिण में 40 किमी की दूरी पर स्थित सम्भल नगर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसका उल्लेख कई पुराणों और इहितास की पुस्तकों में है। सम्भल पर लिखी गई पुस्तक ‘सम्भल महात्म’ के अनुसार यहां वह सभी तीर्थ मौजूद हैं जो काशी में हैं। पौराणिक मान्यता है कि कलयुग में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा और यह सम्भल में ही ब्राह्मण परिवार में होगा। इस अवतार के साथ ही सतयुग का आरम्भ हो जाएगा। यह अत्यन्त चिंता की बात है कि अति महत्व के स्थल सम्भल की उपेक्षा हुई है। इस कारण देश का जनमानस इस नगर की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता से वंचित है। सम्भल महात्म पुस्तक में इस नगर की प्राचीनता और पौराणिक महत्व को विस्तार से बताया गया है। सम्भल महात्म का प्रकाशन देववाणी प्रकाशन, नई दिल्ली ने किया है। सम्भल महात्म का सम्पादन डा. रमाकान्त शुक्ल ने तथा भूमिका स्वामी सुखबोधाश्रम ने लिखी है। संस्कृत से अनुवाद श्री वाणीशरण शर्मा ने किया।

स्कन्द पुराण के भूखण्ड में सम्भल के महात्म का उल्लेख

सम्भल महात्म पुस्तक के अनुसार 81000 श्लोकों वाले स्कन्द पुराण के भूखण्ड में सम्भल के महात्म का उल्लेख है। सत्ताईस अध्याय वाले इस महात्म में सम्भल के 68 तीर्थों और 19 कूपों का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के भूमि खण्ड में जिसे भूमिवाराह खण्ड भी कहा गया है, कल्कि भगवान विष्णु के अवतार की भविष्यवाणी की गई है। गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण के संक्षिप्त स्कन्द पुराण में भी कलियुग के अन्तिम चतुर्थ खण्ड में सम्भल में भगवान विष्णु के अवतार का निर्देश है। इसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार-

चराचरगुरोर्विशणोरीश्वरस्याखिलात्मनः। धर्मत्राणाय साधूनां जन्मकर्मापनुत्तये।।

शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशस: कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

चर अचर जगत के गुरु सर्वान्तरा्मा परमात्मा धर्म और धर्मात्माओं की रक्षा के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। सम्भल में विष्णुयशा ब्राह्मण के घर श्री कल्कि विष्णु भगवान का अवतार होगा।

सम्भल की प्राचीनता

सृष्टि के आरम्भ में ही 68 तीर्थों और 19 कूपों सहित सम्भल का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था। वेदों में इन्हें त्वष्टा कहा गया है। पाणिनीय व्याकरण के अनुसार तक्ष और त्वक्षु ये दो धातु शिल्प क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त होती हैं। विष्णु भगवान के कल्कि अवतार की भूमि होने के कारण सृष्टि के आरम्भ में ही विश्वकर्मा ने सम्भल को बसाकर इसमें तीर्थों और कूपों का निर्माण किया था। सतयुग में सम्भल का नाम सत्यव्रत था। त्रेता में महद्गिरि. द्वापर में पिंगल, कलियुग में सम्भल नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई। चारों युगों में सम्भल के पूर्वोक्त नामों का उल्लेख डा ब्रजेन्द्र मोहन सांख्यधर की पुस्तक “Sambhal, A historical survey ” युगानुसार सम्भल के इन नामों का उल्लेख डा संख्यधर ने 1981 में प्रकाशित “ F. Alexandar, final report on the settlement of the Moradabad district ” पुस्तक में किया है।

देश की राजधानी रहा है सम्भल

सम्भल को पृथ्वीराज चौहान ने राजधानी बनाया था। पृथ्वीराज चौहान के पराभव के बाद सम्भल में अनेक मुस्लिम शासकों का राज रहा। अकबर ने इसे कुछ समय के लिए अपनी राजधानी भी बनाया था। सम्भल मुगल काल में भी व्यापक क्षेत्रफल वाला राज्य रहा है। इसमें 47 परगने थे। जिसमें वर्तमान मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, बदायुं और बरेली का क्षेत्र शामिल था। .सन 1620 में सम्भल से मुगल साम्राज्य को कुल 35 लाख 41 हजार 8 सौ 43 रुपये राजस्व दिया जाता था। जोकि दिल्ली और सरहन्दि को छोड़कर पूरे साम्राज्य में सबसे अधिक था। 1594 ई में सम्भल का क्षेत्रफल 40 लाख 47 हजार 193 बीघा था। यह क्षेत्रफल दिल्ली राज्य से भी एक लाख बीघा अधिक था। 1801 में सम्भल ईस्ट इण्डिया के अधीन आ गया था।

(लेखक परिचयः स्वतंत्र पत्रकार, राज्य मुख्यालय लखनऊ)