सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक पहल : प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा राजस्थानी में शिक्षा प्रदान करने के मुद्दे पर राजस्थान सरकार से मांगा जवाब

Historic initiative of Supreme Court: Answer sought from Rajasthan Government on the issue of providing education in mother tongue Rajasthani in primary education

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थानी भाषा के लिए पिछली आधी सदी से संघर्षरत दैनिक जलतेदीप और राजस्थानी भाषा की एक मात्र मासिक पत्रिका माणक के प्रधान संपादक पदम मेहता और डॉ कल्याण सिंह शेखावत की एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई के बाद राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करते हुए प्राथमिक विद्यालयों में राजस्थानी भाषा में शिक्षा प्रदान करने के मुद्दे पर जवाब मांगा है।

इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मनीष सिंघवी व उनके सहायक अपूर्व सिंघवी ने पैरवी की ।

याचिकाकर्ताओं पदम मेहता और डॉ कल्याण सिंह शेखावत ने राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट)-2024 में राजस्थानी भाषा को विषय के रूप में शामिल करने को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर कर चुनौती दी थी। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में दायर याचिका को 27 नवम्बर 2024 को खारिज कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि राजस्थानी भाषा को प्रदेश में 4.36 करोड़ लोग बोलते हैं, लेकिन इसके बावजूद रीट में भी राजस्थानी भाषा की शिक्षण माध्यम के तौर पर शामिल नहीं किया गया है जबकि रीट की विज्ञप्ति में गुजराती, पंजाबी,सिन्धी और उर्दू जैसी बहुत कम बोली जाने वाली भाषाओं को शामिल किया गया है लेकिन राजस्थानी भाषा को शामिल नहीं किया गया हैं। साथ ही प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को इस भाषा में शिक्षा नहीं दी जा रही है जबकि संविधान, शिक्षा का अधिकार और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों में कहा गया है कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृ भाषा में होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी प्रायः मातृ भाषा में शिक्षा पर जोर देते रहे है।

याचिकाकर्ता के अनुसार मातृभाषा में शिक्षा न मिलने से न केवल बच्चों के साथ अन्याय हो रहा है, बल्कि राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति और भाषा को भी खोता जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि भाषा के लुप्त होने से हजारों वर्षों की परंपराओं और अनुभवों का ह्रास होता आ रहा है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ‘बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009में प्रावधान है कि जहां तक संभव हो बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। इसके साथ ही नई शिक्षा नीति 2020 का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देना उनकी बेहतर समझ और विकास के लिए जरूरी है।

याचिका में कहा गया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व काल में राजस्थान विधानसभा दो दशक पहले 25 अगस्त 2003 को ही संकल्प पारित कर चुकी हैं। प्रस्ताव में भारत सरकार से राजस्थानी भाषा को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया गया था। राजस्थान में राजभाषा अधिनयम 1956 के तहत राजस्थानी राज्य की आधिकारिक भाषा नहीं होने के बाद भी व्यापक रूप से बोली जाती हैं।

इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मनीष सिंघवी एवं उनके सहायक अपूर्व सिंघवी ने उच्चतम न्यायालय में पक्ष रखा। अब सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से इस पर जवाब देने को कहा है। यह मामला बच्चों की शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़ा होने के वजह से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।