पुस्तक मेले की महिमा और गरिमा

The glory and dignity of the book fair

विनोद कुमार विक्की

कंबल,स्वेटर, गीजर,हीटर अथवा वैवाहिक बंधन में बंधने को आतुर वर-वधू को संभवतः सर्दी की प्रतीक्षा उतनी नहीं रहती होगी, जितनी हमारे देश के साहित्यकारों एवं पुस्तक प्रेमियों को रहती है। सर्दी का मौसम आते ही छोटे, मंझौले और बड़े कद व पद के मूर्द्धन्य, स्वनामधन्य से स्वघोषित साहित्यकारों के धमनी और शिरा में साहित्योग्लोबिन का संचार होने लगता है।

दरअसल ठंड के मौसम की शुरुआत के साथ ही विभिन्न प्रदेशों में पुस्तक मेले के रूप में साहित्यिक यज्ञ हवन का श्रीगणेश हो जाता है, जिसकी पूर्णाहुति विश्व पुस्तक मेला के समापन के साथ होता है।

यही वह मौसम होता है जब विभिन्न न्यूज चैनल वाले अपने-अपने‌ टेंट, तम्बू के अंदर साहित्यिक मंच का सृजन एवं संहार करने पर आमादा रहता है। पुस्तक मेला, जिसका ध्यान जेहन में आते ही साहित्यकारों में जोश आ जाता है। फेफड़ों में फड़फड़ाहट एवं भुजाएं फड़कने लगती है। पुस्तक मेला सप्ताह का आशय सैकड़ों पुस्तकों पर उंगली फेर कर सारा दिन व्यतीत करने के बाद निःशुल्क पुस्तक सूची या कैटलॉग लेकर देर शाम घर की वापसी वाले दिन से होता है। घरेलू उपेक्षा के शिकार वरिष्ठ साहित्यकारों के लिए पुस्तक मेला का अभिप्राय एकाध सप्ताह तक तनाव एवं जिम्मेदारियों से मुक्त होकर विभिन्न प्रकाशन स्टालों पर मुफ़्त की चाय सुरकने वाले अच्छे दिन से होता है। पुस्तक मेला अर्थात चारों तरफ सिर्फ किताबें ही किताबें। यह और बात है कि बुक स्टाॅल से ज्यादा रेलमपेल भीड़ और दिलचस्पी चाय-काॅफी, फुचका, सैंडविच,आइसक्रीम,चाट,पॉपकॉर्न, फ़ास्ट फ़ूड और भेलपूरी के स्टाॅलों पर देखने को मिल जाती है।

पुस्तक मेले में साहित्य के साथ-साथ सामाजिक विविधता भी देखने को मिल जाती है। मेला परिसर में साठ से अस्सी वर्ग फीट क्षेत्र में आशियाना जमाए नामी-गिरामी धन्ना सेठ प्रकाशनों के बीच महज पांँच-छ: फ़ीट परिसर में खुद को समायोजित किया हुआ गरीब-गुरबा प्रकाशन का स्टॉल देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो फोर स्टार अपार्टमेंट के बीच में झुग्गी झोपड़ी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा हो।

मेले के अंदर छात्र-छात्राओं से लेकर युवा,प्रौढ़ एवं वृद्ध वर्ग के बौद्धिक जंतु घूमते-फिरते नजर आ जाते हैं। कमोबेश सभी स्टॉलों पर पाठकों का पुस्तक प्रेम और लगाव देखते ही बनता है। ऐसे पुस्तक प्रेमी पुस्तकों को खरीदें ना खरीदें किंतु हथेलियों पर रखकर पन्नों को उलट-पलट कर स्पर्श सुख का परम आनंद लेने का मौका नहीं छोड़ते हैं।

मेले में किताबों से भरी हुई बोरी या झोले के साथ कभी-कभी अधेड़ पाठक भी नजर आ जाते हैं।हालांकि भटकते हुए ऐसे शख्स के कंधों पर पुस्तक का बोझ देखकर यह मुगालता पालना यथोचित नहीं कि मोबाइल युग मेंं पुस्तक खरीद कर पढ़ने वाला वह कोई पाठक ही होगा, संभव है कि विभिन्न प्रकाशनों के स्टॉल पर आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का मुख्य अतिथि हो और उनके कंधों पर बेताल की तरह टिकी हुई गठरी में प्रत्येक घंटे चल रहे विमोचन कार्यक्रम के दौरान प्राप्त फोकट की किताबें हों। पुस्तक मेले में ऐसे साहित्य शिरोमणि काफी व्यस्त दिखाई देते हैं। व्यस्तता लाज़िमी है दरअसल अगले स्टॉल के विमोचन मंच पर चाय-समोसा और लोकार्पित पुस्तक की प्रति उनकी प्रतीक्षा में रहती हैं।

पुस्तक मेला स्थल वह पावन भूमि होती है जहां साहित्य के मठाधीश अपने-अपने साहित्यिक चेलों के साथ विचार-विमर्श अथवा ग्रुप फोटो खिंचवाते दिख जाते हैं। पुस्तक मेला के पावन परिसर में सभी लेखक अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक का विमोचन रूपी सारस्वत यज्ञ करवाने को उत्साहित दिखता हैं। ऐसे व्यग्र एवं उत्साहित साहित्यकारों की श्रेणी में साहित्य का वमन करने में कुशल एवं बारह महीने में छत्तीस पुस्तक लिख मारने वाले धुरंधर अथवा स्वभिप्रमाणित व्यंग्यकारों की संख्या काफी ज्यादा होती है।

स्वपोषित वित्तीय सहायता से अपनी पहली प्रकाशित पुस्तक का प्रोमो करनेे प्रकाशन के स्टॉल पर पहुंचा नवोदित साहित्यकार जगह छेंक कर उसी तरह से टिका हुआ दिख जाता हैं जैसे सस्ती सुर्खियां बटोरने हेतु बिग बॉस में पहुंचा कलाकार अथवा रील्स इंफ्लुएंसर ।

कोई अपनी लिखी पुस्तक को छाती से चिपकाकर फोटो खींचवाता नज़र आता है, तो कुछ अन्य साहित्यकारों के हाथों में पुस्तक थमाकर फोटो लेने एवं साहित्य को धन्य करने में मस्त और व्यस्त नजर आता है। साहित्यिक हवन कुंड सदृश लेखक-पाठक मंच पर साहित्य के पुरोहितों द्वारा साहित्यिक जजमानों की पुस्तक पर साहित्यिक चर्चा स्वरूप हवन का दौर भी निर्बाध रूप से चलता रहता है। यद्यपि लेखक मंच से प्रत्येक घंटा फ्लैक्स बैनर के साथ प्रकाशक और लेखक को परिवर्तित होते देखा जा सकता हैं, तथापि इस परिवर्तनशील स्थल पर चाय-नाश्ता की उम्मीद में कुर्सियों पर तशरीफ़ टिकाए धैर्यवान श्रोतागण कुछ घंटों तक अपरिवर्तनशील मुद्रा में बने रहते हैं।

बहुसंख्य लेखकों की औपचारिक मुलाकात और उनके आवभगत में चाय पर होने वाले व्यय से प्रकाशक जबरदस्त मेरा मतलब जबरदस्ती प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देता हैं। सेल्समैन पोज में लेखकों का फोटो खींच आत्ममुग्ध प्रकाशक पाँच-पांँच मिनट के अंतराल पर सोशल मीडिया पर अपडेट कर साहित्य के उद्धार में तन्मयता से लगा रहता है। मेले में प्रत्येक लेखक दूसरे लेखक को अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तकों के संदर्भ में उसी प्रकार अपडेट दे रहा होता है, जैसे अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य,एनपीआर,वक्फ बोर्ड की संपत्ति आदि के बारे में न्यूज चैनल।

बहरहाल पुस्तक मेला वह पर्यटन स्थल हैं जहां हर आगंतुक साहित्य से ज्यादा सेल्फी में रूचि लेता है। सर्द मौसम में गरमागरम चाय और छोले भटूरे के व्यक्तिगत खर्च पर हजारों रुपए मूल्य के सैकड़ों पुस्तकों के नरम-नरम पेजों को उलट-पलट कर छेड़ने और छोड़ने का भौतिक सुख सिर्फ और सिर्फ पुस्तक मेला में ही प्राप्त किया जा सकता है।