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समीक्षक: नृपेन्द्र अभिषेक नृप
मनीषा मंजरी समकालीन हिंदी कविता की एक संवेदनशील और भावप्रवण कवयित्री हैं। उनकी रचनाएँ प्रेम, विरह, आत्मसंघर्ष और जीवन के गूढ़ अनुभवों को गहराई से अभिव्यक्त करती हैं। उनकी काव्यशैली में कोमलता और तीव्रता का अनूठा संतुलन देखने को मिलता है, जो पाठकों के हृदय को गहराई तक स्पर्श करता है। मनीषा मंजरी का काव्य-संग्रह “अधूरी दस्तक” प्रेम, विरह, आकांक्षाओं और आत्मसंघर्ष की उन अनकही कहानियों को उकेरता है, जो अक्सर हृदय के सबसे गहरे कोनों में मौन रह जाती हैं। यह संग्रह शब्दों का मात्र संकलन नहीं, बल्कि संवेदनाओं का वह पुलिंदा़ है, जो पाठक को अपनी भावनाओं से जोड़कर रखता है। इस संकलन में प्रेम का वह अद्भुत रूप प्रस्तुत किया गया है, जो अधूरा होकर भी सम्पूर्ण है, जिसमें प्रतीक्षा भी है और आशा भी, जिसमें पीड़ा भी है और एक अव्यक्त संतोष भी। कवयित्री ने अपने काव्य में जीवन के उन पहलुओं को उकेरा है, जो प्रेम और बिछोह की जटिलताओं से होकर गुजरते हैं।
इस संग्रह की कविताएँ मानवीय अनुभूतियों की सूक्ष्मतम परतों को छूती हैं और पाठकों के हृदय को गहराई तक आंदोलित करती हैं। इनमें प्रेम की तीव्रता और विरह की अनुगूँज स्पष्ट रूप से सुनाई देती है। यहाँ प्रेम केवल एक परिभाषा नहीं, बल्कि एक जीवंत अनुभव के रूप में उभरकर सामने आता है। कवयित्री की लेखनी में एक विलक्षण माधुर्य है, जो पाठक को न केवल भावनात्मक रूप से स्पर्श करता है, बल्कि उसे आत्मचिंतन की स्थिति में भी ले जाता है। उनकी कविताओं में एक प्रवाहमयी लय है, जो न केवल शब्दों के सौंदर्य को बढ़ाती है, बल्कि उनके भीतर छिपे भावों को और भी प्रखर बना देती है।
“अधूरी दस्तक” की कविताएँ प्रेम और जीवन के उस पहलू को उजागर करती हैं, जिसे अक्सर हम महसूस तो करते हैं, पर शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते। यह संग्रह उन मौन धड़कनों की अभिव्यक्ति है, जो किसी के इंतजार में थम गई हैं, उन निगाहों का बयान है, जो किसी के लौटने की आस में सदियों तक ठहरी रहीं। इस संकलन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी हर कविता पाठक को अपने जीवन के किसी न किसी क्षण से जोड़ देती है। जब हम “एक अधूरी दस्तक देकर..” पढ़ते हैं, तो ऐसा लगता है कि कोई भावनाओं के द्वार पर आकर ठिठक गया हो, कोई पुकार अनसुनी रह गई हो। इसी प्रकार “ख़्वाहिशों को कहाँ मिलता, कोई मुकम्मल ठिकाना है..” कविता हमें उन अधूरी आकांक्षाओं की याद दिलाती है, जो समय के प्रवाह में कहीं गुम हो जाती हैं।
इस संग्रह की कविताओं में भाषा का सौंदर्य और भावनाओं की तीव्रता समान रूप से उपस्थित हैं। कवयित्री ने हिंदी, उर्दू और फ़ारसी के शब्दों का ऐसा संयोजन किया है, जो कविता को न केवल कलात्मक ऊँचाई प्रदान करता है, बल्कि उसे संवेदनशीलता की पराकाष्ठा तक भी ले जाता है। संग्रह की एक कविता “सर्द आसमां में दिखती हैं, अधूरे चाँद की अंगड़ाईयाँ..” प्रेम के अधूरेपन और प्रतीक्षा की व्यथा को चाँद की अधूरी छवि के माध्यम से व्यक्त करती है। यहाँ अधूरापन केवल एक कमी नहीं, बल्कि एक सौंदर्यबोध भी है, जो पाठक को एक नई दृष्टि से प्रेम को समझने के लिए प्रेरित करता है।
“अधूरी दस्तक” के भीतर छिपी कविताएँ पाठक को केवल भावुक नहीं करतीं, बल्कि उन्हें सोचने के लिए भी विवश करती हैं। यह संग्रह प्रेम की उस अवस्था को दर्शाता है, जहाँ इन्तजार एक आदत बन जाता है, जहाँ शब्द मौन होकर भी बोलते हैं, और जहाँ मोहब्बत की गहराई आँसुओं की भाषा में प्रकट होती है। “शब्द हमारे यूँ तो मौन थे, पर ये निःशब्दिता मुझे सताती है..” कविता इस मौन की तीव्रता को दर्शाती है। जब प्रेम अपने चरम पर पहुँचता है, तो कई बार शब्द फीके पड़ जाते हैं, केवल अनुभूतियाँ रह जाती हैं।
इस संग्रह में केवल प्रेम और विरह ही नहीं, बल्कि आत्मसंघर्ष और जीवन की वास्तविकताओं का भी अद्भुत चित्रण किया गया है। “आजमाती है ज़िन्दगी तो, इम्तिहान कड़े होते हैं..” कविता हमें उन संघर्षों की याद दिलाती है, जिनसे होकर हर व्यक्ति गुजरता है। यह कविता केवल एक अनुभव नहीं, बल्कि जीवन का एक सत्य है, जो पाठकों को अपनी परिस्थितियों से जूझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
मनीषा मंजरी की कविताएँ प्रेम में स्वाभिमान की भी बात करती हैं। “एक बिखरा ख़्वाब हूँ मैं, तू नींदों में दीदार ना कर.” कविता इस आत्मसम्मान को एक नए रूप में प्रस्तुत करती है। यह कविता बताती है कि प्रेम में सिर्फ समर्पण ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान का भी उतना ही महत्व है। जब कोई प्रेम में टूटता है, तो वह केवल खोता नहीं, बल्कि अपने भीतर एक नई शक्ति भी संचित करता है।
“अधूरी दस्तक” के काव्य संसार में प्रवेश करने के बाद पाठक को ऐसा प्रतीत होता है मानो वह किसी ऐसे भावनात्मक जाल में उलझ गया हो, जहाँ से बाहर निकलना असंभव हो। यह संग्रह हृदय को छूने वाली कविताओं का ऐसा समुच्चय है, जिसमें प्रेम की कोमलता और जीवन की कठोरता, दोनों का अद्भुत समन्वय है। “सोचा नहीं था एक दिन, तू यूँ हीं हमें छोड़ जाएगा..” कविता प्रेम के उस पक्ष को उभारती है, जहाँ एक ओर समर्पण है, तो दूसरी ओर बिछड़ने की पीड़ा।
इस संग्रह की एक और विशेषता यह है कि इसमें प्रयुक्त प्रतीक और बिंब अत्यंत सजीव और सशक्त हैं। “मोहब्बत हीं तो आँखों को वीरानगी के नज़ारे दिखाती है।…” कविता प्रेम की गहराइयों को दर्शाने का एक अनूठा प्रयास है। यहाँ प्रेम केवल आनंद देने वाला अनुभव नहीं, बल्कि एक गहन अनुभूति है, जो कभी-कभी मन को एक वीरान रेगिस्तान में बदल देती है।
“अधूरी दस्तक” अपने शीर्षक की तरह ही एक ऐसी दस्तक है, जो पाठकों के मन में एक गहरी छाप छोड़ती है। यह संग्रह हमें प्रेम की उस अवस्था तक ले जाता है, जहाँ भावनाएँ इतनी तीव्र हो जाती हैं कि वे शब्दों के परे चली जाती हैं। यह केवल प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए है, जो जीवन के सूक्ष्मतम अनुभवों को महसूस करना चाहते हैं। यह संग्रह पाठकों को न केवल भावनात्मक रूप से आंदोलित करता है, बल्कि उन्हें उनके अपने जीवन के अधूरे पहलुओं से भी रूबरू कराता है।
मनीषा मंजरी की लेखनी में वह शक्ति है, जो साधारण घटनाओं में असाधारण गहराई भर देती है। उनकी कविताएँ केवल पढ़ी नहीं जातीं, बल्कि वे पाठकों के भीतर गूँजती हैं, उनकी भावनाओं का हिस्सा बन जाती हैं। यह संग्रह केवल एक बार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि बार-बार लौटने के लिए है, क्योंकि इसकी कविताएँ हर बार एक नई संवेदना, एक नया अर्थ और एक नया अनुभव लेकर आती हैं। “अधूरी दस्तक” हर पाठक के हृदय की उस संवेदनशील कोने को छूने में सक्षम है, जहाँ प्रेम, प्रतीक्षा, पीड़ा और स्वीकृति के भाव एक साथ विद्यमान रहते हैं। यही इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता है और यही इसकी सबसे बड़ी सफलता भी।
पुस्तक: अधूरी दस्तक
कवयित्री: मनीषा मंजरी
प्रकाशन: साहित्यपीडिया
मूल्य: 150 रुपये