
रविवार दिल्ली नेटवर्क
कोलकाता : एक समय हिंदुस्तान केबल्स के रूप में प्रसिद्ध लघु नगरी रूपनारायणपुर में साहित्य, संस्कृति को समर्पित 20 वां साहित्यिक लहमा उत्सव मनाया गया। इस उत्सव में बंगाल तथा आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में साहित्यकार, कलाकार उपस्थित हुए।
इस मौके पर प्रमुख अतिथि के रूप में आमंत्रित थे- वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार तथा पश्चिमबंग हिंदी अकादमी के सक्रिय सदस्य श्री रावेल पुष्प तथा विशेष अतिथि थीं प्रो.तथा अनुवादिका डॉ शुभ्रा उपाध्याय।
प्रमुख अतिथि के तौर पर रावेल पुष्प ने अपने संबोधन में इस तरह के उत्सव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अनुवाद की भूमिका पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की गीतांजलि अगर मूल भाषा बांग्ला में ही रह जाती, तो उसे नोबेल पुरस्कार नहीं मिल पाता। ये तो उसके अंग्रेजी अनुवाद से ही संभव हो सका और किसी गैर यूरोपीय को यह पहला नोबल पुरस्कार मिला। इसके अलावा हाल के वर्षों में भारतीय भाषा हिंदी में लिखे गए गीतांजलि श्री के उपन्यास रेत समाधि को पहला बूकर पुरस्कार मिला, वो भी तब जब इसका अंग्रेजी अनुवाद डेजी ओरवेल ने किया। आज अनुवादक को भी पूरा सम्मान मिलना शुरू हो गया है, तभी तो 50,000 पाउंड की बूकर पुरस्कार राशि को मूल लेखक तथा अनुवादक में बराबर-बराबर बांटा गया।
विशेष अतिथि के रूप में शुभ्रा उपाध्याय ने ख़ासतौर से लघु कथाओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भले ही आज लघुकथाओं को लेकर इतनी चर्चा है, लेकिन बंगाल में इसकी परंपरा बहुत पुरानी है और वरिष्ठ बांग्ला लेखक बनफूल का जिक्र किया। इसके अलावा हितोपदेश, शिक्षापूर्ण कहानियां,जातक कथाएं भी दरअसल लघुकथाएं ही थीं।
साहित्यकार अभिजीत जोआरदार के संचालन में उत्सव के संयोजक कल्याण भट्टाचार्य ने दो दशकों से हो रहे इस उत्सव- यात्रा पर अपने मधुर तथा कटु अनुभव साझा किये।
वरिष्ठ पत्रकार विश्वदेव भट्टाचार्य, लहमा के अध्यक्ष प्रसून राय तथा कुछ अन्य साहित्यकारों ने भी अपने विचार रखे।
इस मौके पर आवृत्ति, संगीत, नृत्य तथा उपस्थित साहित्यकारों के विविध विधाओं पर प्रकाशित पुस्तकों का जहां लोकार्पण किया गया वहीं कई महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
सारा दिन व्यापी चले इस लहमा उत्सव ने साहित्यकारों को आपसी मेल- बंधन का एक सार्थक मौका दिया और युवा पीढ़ी का साहित्य के प्रति झुकाव में भी कुछ इजाफा हुआ।