नृपेन्द्र अभिषेक नृप
“योग कोई प्राचीन मिथक नही है। यह वर्तमान की सबसे बहुमूल्य विरासत है। यह आज की आवश्यकता है और कल की संस्कृति” – स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का यह कथन सुंदर शब्दों में योग की महत्ता को दर्शा रहा है ।आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपनी सेहत को नजरअंदाज करते जा रहे हैं। आज की व्यस्त कार्यशैली में लोगों के पास समय नही है कि वो खुद पर ध्यान दे यही वजह है कि लोग दवाईयों के आदि होते जा रहे है और मानसिक रूप से भी परेशान और तनाव में रहने लगे हैं। मानसिक और शारिरीक रूप से स्वस्थ रहने के लिए सबसे सरल उपाय योगा है। स्वास्थ सबसे बड़ा उपहार हैं, संतोष सबसे बड़ा धन हैं, यह दोनों योग से ही मिलते हैं। समस्त सृष्टि और संस्कार में योग समाहित है। योग विकारों से मुक्ति का मार्ग है। योग हमारा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। योग की सार्थकता को दुनिया के कई धर्मों ने स्वीकार किया है। योग सिर्फ व्यायाम का नाम नहीं है बल्कि मन, मस्तिष्क, शारीरिक और विकारों को नियंत्रित करने का माध्यम भी है।
योग जीवन का वह दर्शन हैं , जो मनुष्य को उसकी आत्मा से जोड़ता हैं। यह भारतीय समाज का अभिन्न अंग है। योग, संयोग और सहयोग हमारे जीवन के तीन मुख्य पैरोकार हैं। योग के रूप में भारत द्वारा दुनिया को उसकी एक मूल्यवान देन है। दशकों से योग पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय रहा है। स्वास्थ्य को सामान्यतः शरीर से जोड़कर देखा जाता है लेकिन पूर्ण स्वास्थ्य के लिए शरीर के साथ-साथ मन का शांत व संतुलित होना तथा भावों में निर्मलता आवश्यक है। शरीर और मन दोनों का स्वस्थ रहना पूर्ण स्वास्थ्य की आवश्यक शर्त है।यही कारण है कि योग से शारीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है। योग संस्कृत शब्द, ‘यूयूजे’ से आता है। इसका अर्थ है जुड़ना, जुड़ना या एकजुट होना। यह सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का मिलन है। योग 5000 साल पुराना भारतीय दर्शन है। इसका उल्लेख सबसे पुराने पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में किया गया था । विश्व में हर साल 21 जून का दिन “विश्व योग दिवस” के रूप में मनाया जाता है। 2014 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने “विश्व योग दिवस” मनाने की घोषणा की थी। योग का अर्थ है “बांधना” या “एकता”। यह विश्व के अनेक देशों में प्रचलित हो गया है।
योग का फ़ायदा हमारे जिन्दगी को सुंदर बनाने की एक विधि के रूप में हमारे काम आता है। जब तक जीवन में शालीनता, उदारता, दयाभाव, करुणा, प्रेम, परोपकार, ईमानदारी, सच्चाई और अहिंसा के अंकुर नहीं फूटेंगे, तब तक महानता दूर की कौड़ी ही रहेगी। योग प्रकृति के, आत्मा के, ईश्वर के गुणों को उत्पन्न करता है; मनुष्य को मानसिक तनाव से दूर रखता है; चिन्ता व भय से मुक्ति में मददगार रहता है; मनुष्य को ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से बचाता है। योग की खूबसूरती यह है कि यह हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक की देख-रेख करते हुए बराबर उनकी मरम्मत करता है। शरीर लयबद्ध योगासन द्वारा प्रशिक्षित व स्वस्थ किये जाते हैं तो मन या मानस को ध्यान एवं प्राणायाम द्वारा। इन सबसे ऊपर है हमारी आध्यात्मिक आवश्यकताएं जिसकी देखभाल और पूर्ति दिव्यता पर एकाग्रता के जरिए योग ही करता है।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता के जीवाश्म अवशेष प्राचीन भारत में योग की उपस्थिति का प्रमाण हैं। इस उपस्थिति का लोक परंपराओं में उल्लेख मिलता है। यह सिंधु घाटी सभ्यता, बौद्ध और जैन परंपराओं में शामिल है। अध्ययनों के अनुसार, एक गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में योग का अभ्यास किया जा रहा था और इसके आध्यात्मिक महत्व को बहुत अधिक महत्व दिया गया था। वैदिक काल के दौरान सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया गया था और बाद में सूर्यनमस्कार का आविष्कार कैसे किया गया था। हालाँकि, महर्षि पतंजलि को आधुनिक योग के पिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने योग का आविष्कार नहीं किया क्योंकि यह पहले से ही विभिन्न रूपों में था।
पतंजलि के अनुसार योग के 8 सूत्र बताए गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
(1) यम – इसके अंतर्गत सत्य बोलना, अहिंसा, लोभ न करना, विषयासक्ति न होना और स्वार्थी न होना शामिल है।
(2) नियम – इसके अंतर्गत पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन, और ईश्वर को आत्मसमर्पण शामिल हैं।
(3) आसन – इसमें बैठने का आसन महत्वपूर्ण है
(4) प्राणायाम – सांस को लेना, छोड़ना और स्थगित रखना इसमें अहम है।
(5) प्रत्याहार – बाहरी वस्तुओं से, भावना अंगों से प्रत्याहार।
(6) धारणा – इसमें एकाग्रता अर्था एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना महत्वपूर्ण है।
(7) ध्यान – ध्यान की वस्तु की प्रकृति का गहन चिंतन इसमें शामिल है।
(8) समाधि – इसमें ध्यान की वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना शामिल है। इसके दो प्रकार हैं – सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प में संसार में वापस आने का कोई मार्ग नहीं होता। अत: यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।
भगवद गीता में योग के जो तीन प्रमुख प्रकार बताए गए हैं वे हैं –
(1) कर्मयोग – इसमें व्यक्ति अपने स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है।
(2) भक्ति योग – इसमें भगवत कीर्तन प्रमुख है। इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है।
(3) ज्ञाना योग – इसमें ज्ञान प्राप्त करना अर्थात ज्ञानार्जन करना शामिल है।
योग मनुष्य के मानसिक, शारीरिक और आध्यत्मिक उर्जा को बढाता हैं। भारत में शास्त्रों में हठयोग को सामान्य तौर पर प्राण निरोध साधना माना गया है। सिद्ध सिद्धांत पद्धति में ह का अर्थ सूर्य बताया गया है, ठ का अर्थ चंद्र। सूर्य और चंद्र के योग को हठयोग कहते हैं। इसकी व्याख्याएं कई और तरीके से भी की जाती हैं। एक- सूर्य का तात्पर्य प्राणवायु से है, और चंद्र का अपान वायु से; इन दोनों का योग अर्थात प्राणायाम से वायु का निरोध करना ही हठयोग है। एक और व्याख्या- सूर्य इड़ा नाड़ी को कहते हैं, चंद्र्र पिंगला को, इसलिए इड़ा-पिंगला नाड़ियों को रोक कर सुषुम्ना मार्ग से ही प्राणवायु को प्रवाहित करना हठयोग है।
योग की व्यख्या करते हुए सद्गुरुजग्गी वासुदेव कहते हैं- ‘‘जब पतंजलि ने योग सूत्र दिया, तो उन्होंने कोई भी विशेष तरीका नहीं बताया। इसमें कोई भी अभ्यास नहीं बताया गया है। उन्होंने तो बस जरूरी सूत्र दे दिए। अब इन सूत्रों से कैसा हार बनाना है, यह अपने आसपास मौजूद लोगों और परिस्थितियों के आधार पर हर गुरु अपने हिसाब से तय कर सकता है।…उन्होंने इन सूत्रों को इस तरह रचा कि ये उन्हीं को समझ आएं जिनको एक खास स्तर का अनुभव है; वरना ये शब्दों के ढेर बनकर रह जाते हैं।’’
बिना किसी समस्या के जीवन भर तंदरुस्त रहने का सबसे अच्छा, सुरक्षित, आसान और स्वस्थ तरीका योग है। इसके लिए केवल शरीर के क्रियाकलापों और श्वास लेने के सही तरीकों का नियमित अभ्यास करने की आवश्यकता है। यह शरीर के तीन मुख्य तत्वों; शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के बीच संपर्क को नियमित करना है। यह शरीर के सभी अंगों के कार्यकलाप को नियमित करता है और कुछ बुरी परिस्थितियों और अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली के कारण शरीर और मस्तिष्क को परेशानियों से बचाव करता है। यह स्वास्थ्य, ज्ञान और आन्तरिक शान्ति को बनाए रखने में मदद करता है। अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने के द्वारा यह हमारी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, ज्ञान के माध्यम से यह मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और आन्तरिक शान्ति के माध्यम से यह आत्मिक आवश्यकता को पूरा करता है, इस प्रकार यह हम सभी के लिए लाभप्रद है।
शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है। यह इतना शक्तिशाली और प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह सद्भाव और एकीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है। योग के सभी आसनों से लाभ प्राप्त करने के लिए सुरक्षित और नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। योग का अभ्यास आन्तरिक ऊर्जा को नियंत्रित करने के द्वारा शरीर और मस्तिष्क में आत्म-विकास के माध्यम से आत्मिक प्रगति को लाना है। योग के दौरान श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन लेना और छोड़ना सबसे मुख्य वस्तु है। दैनिक जीवन में योग का अभ्यास करना हमें बहुत सी बीमारियों से बचाने के साथ ही भयानक बीमारियों; जैसे- कैंसर, मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च व निम्न रक्त दाब, हृदय रोग, किडनी का खराब होना, लीवर का खराब होना, गले की समस्याओं और अन्य बहुत सी मानसिक बीमारियों से भी बचाव करता है।
वैश्वीकरण के इस युग में योग भी वैश्विक बन चुका है। करोड़ों लोग योग की साधना कर रहे हैं। इससे लाभप्रद हैं। इसके माध्यम से लोग अपने स्वास्थ्य को भी ठीक रख रहे हैं।व्यक्ति शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कितना जागरूक है, इस पर भी शरीर की आंतरिक क्षमता का विकास निर्भर करता है। इसीलिए भारतीय जीवन-पद्धति के केन्द्र में योग शामिल रहा है। हमारे पुरखों द्वारा योग को जीवन के साथ जोड़ना उनकी इसी दूर-दृष्टि को बताता है कि यह जीवन शैली का हिस्सा बना रहे और हमारा समाज स्वस्थ रहे। हमारी जीवन शैली ही हमारे स्वास्थ्य की धूरी है। हमारा तन-मन दोनों स्वस्थ रहे, यह इसी पर निर्भर करता है कि हम अपना दैनंदिन जीवन कैसे जीते हैं। मानसिक स्वास्थ्य मनुष्य के भावनात्मक पक्ष से विशेषतः जुड़ा है जो समाज की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और समाज कल्याण को महत्व देता है। स्वस्थ मानसिकता ही हमारे दैनंदिन जीवन को खुशगवार बनाती है, सुखी बनाती है जबकि अधिकांश सामाजिक समस्यायें, दैनिक व्यवहार में लोगों का एक-दूसरे के साथ रूढ़ बर्ताव ही पैदा करता है। एक दूसरे का ध्यान रखना, मदद करना, सकारात्मक सोच को अपनी जीवन शैली में ढालना और प्रसन्न चित्त के साथ प्रगति की दिशा में सक्रिय रहना ही हमें शांति प्रदान करता है और अंततः सुख भी।
योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, ख़ास तौर से वहाँ जहाँ आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है। एचआईवी (HIV) पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है। अधिकांश लोगों के लिए, हालांकि, योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाए रखने का मुख्य साधन हैं। योग बुरी आदतों के प्रभावों को उलट देता है, जैसे कि सारे दिन कुर्सी पर बैठे रहना, मोबाइल फोन को ज़्यादा इस्तेमाल करना, व्यायाम ना करना, ग़लत ख़ान-पान रखना इत्यादि। इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं। इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर महसूस करने पड़ेंगे। हर व्यक्ति को योग अलग रूप से लाभ पहुँचाता है। तो योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें।
हमारी हजारों साल की वैदिक परंपरा को वैश्विक मंच मिला है। योग का प्रयोग अब दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान के रूप में भी होने लगा है, उसे स्थिति हमें अपने जीवन के साथ जीने का नजरिया भी बदलना होगा। योग से संबंधित यूनिवर्सिटी, शोध संस्थान, आयुर्वेद मेडिसिन उद्योग नई उम्मीदें और आशाएं लेकर आएगा। भारत और दुनिया भर में योग के लिए संस्थान स्थापित हुए हैं। योग को पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है। योग स्वस्थ दुनिया की तरफ बढ़ता कदम है। इसका सहभागी बन अपनी जिंदगी को आइए हम शांत और खुशहाल बनाएं। परिवार जब स्वस्थ होगा तो सेहतमंद समाज का निर्माण होगा।
अगर हम योग को सिर्फ एक महा आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के पूरे परिप्रेक्ष्य में देखना चाहते हैं तो हमें अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों से निपटने के बारे में भी सोचना होगा। इसी तरह, अगर हम योग के दर्शन को भी अपनाना चाहते हैं, तो हमें लोगों को जोड़ने वाली बातों पर जोर देना होगा, न कि उनमें आपसी टकराव पैदा करने वाली बातों पर। योग हमारे स्वस्थ के साथ कैरियर में भी अधिक उपयोगी है- “यदि शरीर व मन स्वस्थ नही हैं तो लक्ष्य को पाना असम्भव हैं योग करने से मन और शरीर दोनों स्वस्थ होते हैं।” और ‘सफलता तीन चीज़ो से मापी जाती हैं धन, प्रसिद्धी और मन की शांति धन और प्रसिद्धी पाना आसान हैं “मन की शांति” केवल योग से मिलती हैं।”