
सोनम लववंशी
बच्चों की शिक्षा और समग्र विकास में अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही है। वर्तमान समय में जब शिक्षा प्रणाली अत्यधिक प्रतिस्पर्धी हो गई है, बच्चों पर मानसिक दबाव भी बढ़ता जा रहा है। परीक्षा और करियर की चिंता ने उनकी मासूमियत को छीन लिया है। कई बच्चे इस दबाव को झेल नहीं पाते और अवसादग्रस्त हो जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग 12,000 छात्र परीक्षा और करियर संबंधी तनाव के कारण आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं। यह स्थिति समाज के लिए एक गहरी चिंता का विषय है। ऐसे में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा जारी किया गया पैरेंटिंग कैलेंडर न केवल एक नवाचार है, बल्कि यह बच्चों की शिक्षा को तनावमुक्त और आनंदमय बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास भी है। इस पहल का मूल उद्देश्य अभिभावकों और शिक्षकों के बीच संवाद को सशक्त करना है, जिससे बच्चों को एक सुरक्षित, प्रेमपूर्ण और सहयोगी वातावरण मिल सके।
एक बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उसका शैक्षणिक प्रदर्शन। शोध बताते हैं कि जिन बच्चों को अपने अभिभावकों और शिक्षकों से निरंतर समर्थन मिलता है, वे न केवल अकादमिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, बल्कि उनका आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता भी मजबूत होती है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, जिन बच्चों के माता-पिता स्कूल की गतिविधियों में भाग लेते हैं, वे 30 प्रतिशत अधिक आत्मविश्वासी होते हैं और उनकी सीखने की क्षमता भी 20 फीसदी तक बेहतर होती है। सीबीएसई द्वारा जारी पैरेंटिंग कैलेंडर इसी दिशा में एक ठोस प्रयास है। इस कैलेंडर को तैयार करने के लिए सीबीएसई ने जनवरी 2025 में एक दस सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, जिसने विस्तृत अध्ययन के बाद अपनी सिफारिशें दीं। इन सिफारिशों के आधार पर अप्रैल 2025 से इस पहल को लागू किया गया है। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जो शिक्षा में भागीदारी और समग्र विकास पर बल देती है। यह कैलेंडर अभिभावकों और शिक्षकों के बीच सतत संवाद को बढ़ावा देगा और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान करेगा।
आज की शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर विषय बन गया है। परीक्षा के दिनों में बच्चों का तनाव चरम पर होता है, जिससे उनकी निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास प्रभावित होते हैं। ऐसे में शिक्षकों और अभिभावकों के बीच समन्वय बहुत आवश्यक हो जाता है। यह कैलेंडर इस समन्वय को बढ़ाने के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान करता है। इसमें छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अभिभावकों के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जिनका पालन करके वे अपने बच्चों को बेहतर सहायता प्रदान कर सकते हैं। बच्चों की शिक्षा केवल स्कूल तक सीमित नहीं होती; उनके विकास में घर का वातावरण भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। जब अभिभावक बच्चों की शिक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, तो बच्चों की सीखने की क्षमता बेहतर होती है। पैरेंटिंग कैलेंडर न केवल शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देगा, बल्कि बच्चों के साथ अभिभावकों के भावनात्मक संबंध को भी मजबूत करेगा।
इसके अतिरिक्त, इस पहल से स्कूलों में अभिभावकों की भागीदारी बढ़ेगी, जिससे शिक्षा का स्तर भी सुधरेगा। जब शिक्षक और अभिभावक मिलकर बच्चों की प्रगति की निगरानी करते हैं, तो बच्चों का प्रदर्शन स्वाभाविक रूप से बेहतर होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन स्कूलों में अभिभावकों की भागीदारी अधिक होती है, वहां छात्रों के परीक्षा परिणाम 15-20 फीसदी तक बेहतर होते हैं। ऐसे में सीबीएसई की इस पहल की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। डिजिटल युग में, जहां बच्चे स्क्रीन पर अधिक समय बिताते हैं और परिवारों के बीच संवाद की खाई बढ़ती जा रही है, यह कैलेंडर न केवल संवाद बढ़ाने का काम करेगा, बल्कि एक संरचनात्मक बदलाव भी लेकर आएगा। यह कैलेंडर बच्चों की शिक्षा को केवल अंकों तक सीमित न रखते हुए उनके समग्र विकास पर केंद्रित करेगा और निःसन्देह सीबीएसई द्वारा जारी पैरेंटिंग कैलेंडर शिक्षा क्षेत्र में एक प्रभावी और सराहनीय प्रयास है। यह केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि बच्चों के सर्वांगीण विकास और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाला एक सशक्त माध्यम है। जब अभिभावक और शिक्षक मिलकर कार्य करेंगे, तो बच्चों की शिक्षा न केवल प्रभावी होगी, बल्कि वे मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। यह पहल शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत करने की क्षमता रखती है, जहां बच्चे तनावमुक्त होकर अपने भविष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।