पहले देश के भीतर घुसपैठ के कैंसर को मिटाने के लिए कदम उठाना आवश्यक

First it is necessary to take steps to eradicate the cancer of infiltration within the country

अशोक भाटिया

पहलगाम में क्रूर आतंकी हमला, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, देश की आत्मा को चोट पहुंचाने के लिए सीमा पार से बलों द्वारा किया गया है। पीड़ितों के रिश्तेदारों ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें धर्म पूछकर मारा गया था। इसका मतलब यह है कि धर्मयुद्ध के लेंस के माध्यम से हमले को देखने के लिए आतंकवादियों का गुप्त इरादा कोई रहस्य नहीं है। भारतीय भूमि पर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी राष्ट्रिकों द्वारा अनियंत्रित घुसपैठ की जाती है। इतना ही नहीं, बल्कि उन्हें अवैध रूप से उपनिवेश बनाया गया है। कश्मीर में पहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार की चेतावनी के बाद, जांच एजेंसी अब तक भारत से भागने में कामयाब रही है और पूरे भारत में की गई छापेमारी में पाकिस्तानी नागरिकों को पाया है।खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि लगभग 2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासी, पाकिस्तानी मूल के हजारों निवासी, देश भर में अवैध रूप से रह रहे हैं। असम से दिल्ली तक, पश्चिम बंगाल से महाराष्ट्र तक, हजारों लोगों के पास फर्जी दस्तावेज, राशन कार्ड हैं, मतदाता पहचान पत्र और यहां तक कि आधार कार्ड का भी उपयोग कर रहे हैं।

2003-04 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेशी घुसपैठिए देश में 25 लोकसभा सीटों और 120 विधानसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि 2003 तक दिल्ली में 6 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए भारतीय पहचान पत्र हासिल कर चुके थे। लगभग यही स्थिति देश के कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में हो सकती है। अनुमान है कि अभी 3-5 करोड़ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में रह रहे हैं। इनमें से कुछ गलत गतिविधियों में सक्रिय हो सकते हैं।साथ ही, यह भी देखा गया है कि कट्टरपंथियों के सत्ता में आने पर बांग्लादेश से अतीत में घुसपैठ बढ़ी है। 2001 में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों के सहयोग से BNP सत्ता में आई, तो भारत में घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियां बढ़ गई थीं। उस वक्त बांग्लादेश में आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप तेजी से बढ़ने लगे थे। भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर पकड़े गए उग्रवादियों ने पूछताछ के दौरान, ईस्टर्न बॉर्डर के करीब इन कैंपों में कई बड़े आंतकवादी समूहों की मौजूदगी की पुष्टि भी हुई थी।11 सितंबर 2001 के बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने बांग्लादेश में आतंकी गतिविधियां और तेज कर दी थीं। 2002 में कोलकाता में कई ISI एजेंटों की गिरफ्तारी हुई थी, जो बांग्लादेश बॉर्डर पार कर भारत आए थे। तब भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने संसद में कहा था, ‘ढाका में पाकिस्तानी हाई कमिशन, ISI का नर्व सेंटर है, जो भारत के खिलाफ आंतकी गतिविधियों में लिप्त है।’ उन्होंने यह भी बताया था कि कई उग्रवादी संगठनों ने बांग्लादेश में ट्रेनिंग कैंप बना लिए हैं और बॉर्डर के करीब बड़ी संख्या में मदरसे भी बने हैं।

अक्टूबर 2002 में BSF ने बांग्लादेश में चल रहे 99 आतंकी ट्रेनिंग कैंपों की लिस्ट बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स को सौंपी थी। 2002 में बांग्लादेश में अल कायदा, रोहिंग्या और कट्टरपंथी ताकतों के नेक्सस की रिपोर्ट भी मिली। यह नेक्सस अमेरिका के अफगानिस्तान में एक्शन के बाद और मजबूत हुआ, अल कायदा के 150 आतंकवादियों ने बांग्लादेश में शरण ली। सबसे खतरनाक बात यह थी कि इन्हें बांग्लादेश में प्रशासन और आर्मी का सपोर्ट मिला। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार इलाके में अल कायदा आतंकियों के मूवमेंट से भारत के लिए खतरा पैदा होने लगा। म्यांमार, चिटगांव और समुद्र के करीब होने से आंतकियों के लिए कॉक्स बाजार से कहीं भी जाना आसान था। इस इलाके में कई आतंकी संगठनों के कैंप की मौजूदगी भी रिपोर्ट हुई।

करीब 25 साल पहले, साल 2000 में भारत के गृह सचिव माधव गोडबोले ने भारत सरकार को एक बेहद महत्वपूर्ण रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि करीब 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सालाना 3 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी अवैध तरीकों से भारत में घुसते हैं। पिछले 25 सालों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ी ही है।असम के गवर्नर रहे एसके सिन्हा ने 1998 में भारत के राष्ट्रपति को सौंपी एक रिपोर्ट में लिखा था कि जिस तेजी से अवैध बांग्लादेशियों की संख्या बढ़ रही है, एक समय ऐसा आ सकता है, जब वे ग्रेटर बांग्लादेश की मांग करने लगें। यानी ये कहें कि भारत के जिन इलाकों में अवैध बांग्लादेशियों की आबादी बढ़ गई है, उन्हें भी बांग्लादेश को सौंप दिया जाए। सिन्हा ने इस समस्या के राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक खतरों से भी आगाह किया था।

बांग्लादेश और भारत की सीमा के करीब फर्जी आधार कार्ड और बाकी भारतीय पहचानपत्र बनाने वाले बिचौलियों की बात भी लगातार सामने आती रही है। इनसे पता चलता है कि कोई बांग्लादेशी बाद में भारत में दाखिल होता है, बिचौलिए पहले ही उसका फर्जी पहचानपत्र बनवा लेते हैं। ये सीमा के दोनों ओर मौजूद हैं। ऐसे में अवैध बांग्लादेशियों के लिए घुसपैठ करना आसान हो जाता है।दूसरी ओर, वीजा लेकर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी आते हैं, लेकिन उनमें कई वापस नहीं लौटते। साल 2023 में करीब 16 लाख बांग्लादेशी वीजा लेकर भारत आए थे। इनमें से कितने वापस गए? और कितने पासपोर्ट फाड़ कर गायब हो गए? इसे लेकर पूरे देश में आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाने की जरूरत है। इसके अलावा, सभी राज्य सरकारों, खास तौर पर बॉर्डर से सटे राज्यों की पुलिस और जिला प्रशासन को घुसपैठियों को पकड़ने और इनके फर्जी पहचानपत्र बनाने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

हालांकि 1974 में जब भारत- बांग्लादेश बॉर्डर गाइडलाइंस बनी थी, तब बांग्लादेश में माहौल बिल्कुल अलग था, तब शायद भारत को भी अंदाजा नहीं था कि बांग्लादेश में भारत के खिलाफ ऐसा माहौल होगा जैसा अब है, लिहाजा अब भारत-बांग्लादेश बॉर्डर गाइडलाइंस की समीक्षा की भी जरूरत है।

गौरतलब है कि ये घुसपैठिए एक ऐसी व्यवस्था की नाक के नीचे बेरोकटोक जी रहे हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के ऊपर वोट बैंक को प्राथमिकता देती है। इसलिए, नरम कूटनीति के युग का अंत होना चाहिए। यह सख्त कार्रवाई का समय है क्योंकि देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साथ-साथ हिंसक घटनाओं की बढ़ती संख्या के पीछे पाकिस्तान का छिपा हुआ एजेंडा है। भारत के स्थानीय लोगों का ब्रेनवॉश करके। वे आतंकवादी कृत्यों में शामिल हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों से बड़े खतरे के बावजूद, उन्हें तुरंत निर्वासित करने की प्रक्रिया सिर्फ एक या दो महीने के लिए नहीं होनी चाहिए।

भारत में अवैध रूप से रह रहा हर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मानव बम की तरह है। आतंकवादी संगठनों में भर्ती एजेंटों द्वारा देश में सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता लाने की एक साजिश है। यह कोई संयोग नहीं है कि पश्चिम बंगाल, असम, केरल, बिहार या उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध आप्रवासियों की संख्या बढ़ रही है। सांप्रदायिक तनाव, अपराध दर और सांस्कृतिक टूटन बढ़ रही है। यह भारत को भीतर से कमजोर करने के लिए बनाया गया एक कुंभड़ा है। पहलगाम नरसंहार एक गुप्त सीमा पार हमले का हिस्सा है। 2014 से पहले केंद्र में सत्ता में सरकारों का प्रभाव अब सीमा पार अपराध और वोट बैंक की राजनीति की उपेक्षा के कारण दिखाई दे रहा है।

कई भारतीय राज्यों में सत्ता में आने वाली कई सरकारों ने सबूत देने की आड़ में शिथिलता के बजाय तुष्टिकरण का विकल्प चुना है। उन्होंने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को सामूहिक रूप से बसने में मदद की है। दूसरी ओर, खुफिया एजेंसियों द्वारा भारतीय महानगरों में पाकिस्तानी स्लीपर सेल के सक्रिय होने और बांग्लादेशी प्रवासी आपराधिक गिरोहों को मजबूत करने की चेतावनी के बावजूद, तत्कालीन शासक चुप रहे और बदतर स्थिति में रहे। उन्होंने हमले के खिलाफ बोलने की हिम्मत करने वाले विपक्ष को नस्लवादी, विदेशी विरोधी या धर्मनिरपेक्ष विरोधी घोषित करते हुए अपराधी बना दिया। अब, पहलगाम के शहीदों और अनगिनत अन्य लोगों का खून उन्हीं राजनेताओं की अंधी नकल का हिस्सा बन गया है। इसलिए, भारत में पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों का पता लगाया जाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

पहलगाम त्रासदी के मद्देनजर, घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक मजबूत अभियान की आवश्यकता है। यह कार्रवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा संवेदनशील क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर छापे मारकर और स्लीपर सेल को नष्ट करके शुरू की गई है। घुसपैठियों के घरों को नष्ट करना। केंद्र सरकार ने राज्यों को अवैध प्रवासियों की पहचान करने और निर्वासित करने का अधिकार दिया है। जाली दस्तावेजों की जांच।विशेष रूप से असम, बंगाल और पंजाब में तलाशी अभियान तेज करने और प्रत्येक राज्य से बुर्का पहने भारतीय नागरिकों को पकड़ने के लिए प्रशासनिक स्तर पर एक मजबूत प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है। अवैध प्रवासियों को ट्रैक करने, अलग करने और निर्वासित करने के लिए खुफिया एजेंसियों द्वारा नए डेटाबेस बनाए जा रहे हैं। यह एक अच्छी बात है। साथ ही जिहादी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले मदरसों पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।

हमें भारत में किसी भी बांग्लादेशी, पाकिस्तानी मुसलमान के लिए जगह आरक्षित नहीं करनी चाहिए जो भारत की संप्रभुता, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को बनाए रखते हुए धर्म के आधार पर भारत में घुसपैठ करते हैं। देश को तब तक चुप नहीं बैठना चाहिए जब तक कि हर घुसपैठिए को बाहर नहीं निकाल दिया जाता। वास्तविकता कठोर है, लेकिन बिना किसी डर के कार्रवाई की जानी चाहिए। यदि भारत अभी कार्रवाई नहीं करता है, तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए आतंकवाद, हमें आपराधिक और जनसांख्यिकीय विनाश के साये में रहना होगा। इसलिए, केवल सर्जिकल स्ट्राइक या नारों से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि देश के भीतर घुसपैठ के कैंसर को मिटाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार