
विजय गर्ग
हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर यदि सामाजिक सरोकार रखने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता तथा पीत पत्रकारिता के बारे में बात न हो,तो हिंदी पत्रकारिता दिवस की महत्वत्ता का आंकलन नही किया जा सकता। वर्तमान परिदृश्य में पीत पत्रकारिता की प्रबलता और स्वार्थसाधनी राजनीति निजी महत्वकांक्षा के चलते पत्रकारिता मिशन न रहकर व्यवसाय बन चुका है। स्वतंत्रता संग्राम की ध्वजावाहक रही हिंदी पत्रकारिता वर्तमान समय में अपना अस्तित्व खोने लगी है और यही कारण है कि हमें केवल हर वर्ष 30 मई के दिन ही हिंदी पत्रकारिता का महत्व पता चलता है। हिंदी पत्रकारिता दिवस को मनाने की सार्थकता,हिंदी पत्रकारिता को समझने और मानने से सिद्ध हो सकती है। वर्तमान परिदृश्य में जहाँ अंग्रेजी बोलना व पढऩा प्रतिष्ठा प्रतिक समझा जाने लगा है वहीं एक समय में हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम में ध्वजवाहक का कार्य किया था। देश की कुल आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी हिंदी समाचार पत्र पढ़ता है परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि अंग्रेजी अखबार में छपने वाली खबर की प्रमाणिकता हिंदी समाचारपत्र की अपेक्षा अधिक मानी जाने लगी है। हालांकि आधुनिकता की दौड़ में हिंदी पत्रकारिता की प्राथमिकता कदाचित न हो परन्तु प्रजाति कदापि नहीं है। हिंदी माध्यम से जुड़े समाचारपत्रों और डिजिटल माध्यमों में अब हिंग्लिश का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। जिसके चलते इस आधुनिक दौर में हिंदी पत्रकारिता को बचाए रखने और पाठकों को हिंदी समाचार पत्रों के साथ जोड़े रखने के लिए अत्यधिक संघर्ष किया जा रहा है। पंडित जुगल किशोर और राजा राममोहन राय की ओर से सामाजिक सरोकार और निष्पक्ष पत्रकारिता का यह मिशन मूल उद्देश्य से अनिभिज्ञ दिखाई दे रहा है और यह सम्पूर्ण देश के लिए चिंता का विषय है।
वर्तमान परिदृश्य में पत्रकारिता का स्वरूप एवं उसका महत्व बदल गया है। राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते सूचना देने वाले विभिन्न माध्यमों में सामाजिक सरोकार की खबरें लगातार कम होती जा रही हैं। खबरों में सनसनी परोसना और टीवी चैनलों की दिशाहीन डिबेट की होड़ में प्रिंट मीडिया तथा विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता को अस्तित्व की लड़ाई लडऩी पड़ रही है। हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ की बात न करना न्यायसंगत नही होगा। एक समय था,जब किसी भी समाचार पत्र में संपादकीय उस समाचार पत्र आधार माना जाता था परंतु जब से पत्रकारिता की बागडोर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के मालिकों के हाथों में गई है, तब से पत्रकारिता धीरे-धीरे सामाजिक सरोकार से दूर होते हुए एक व्यवसाय बनने की ओर अग्रसर हो चुकी है। हिन्दी शब्द से ही अपनत्व का भाव झलकता है। हिंदी हमारी मातृभाषा है मातृ अर्थात माँ के समान। जिस प्रकार एक मनुष्य की भावनाएं माँ से जुड़ी होती है और माँ से अपना दुख व सुख सरल रूप से व्यक्त कर सकते हैं ठीक उसी प्रकार हिंदी के माध्यम से हम अपनी हर वो बात प्रतियेक भारतीय से सांझा कर सकते हैं जो कदाचित किसी और भाषा में करना संभव न हो। हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ भी देश,समाज और व्यक्तिविशेष की भावनाओं व अपेक्षाओं को सांझा करने के लिए ही हुआ था।
हिंदी पत्रकारिता दिवस प्रति वर्ष 30 मई को मनाया जाता है 30 मई 1826 को हिंदी भाषीय समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड”साप्ताहिक पत्र पंडित जुगल किशोर शुक्ल के द्वारा कलकत्ता से शुरू किया गया था और तब से इस तिथि को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में विदित किया जाता है। निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले पत्रकार आज भी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। पंडित जुगल किशोर शुक्ल जी इस साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक व प्रकाशक स्वंम ही थे, पंडित जी का हिंदी पत्रकारिता जगत में विशेष सम्मान है। पेशे से अधिवक्ता जुगल किशोर जी मूल रूप से कानपुर के रहने वाले थे परन्तु उन्होंने उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना था। दरअसल उन्होंने यह समाचार पत्र व्यवसाय की दृष्टि से नही अपितु तत्कालीन अग्रेजी हकूमत के विरुद्ध, कलम का युद्ध आरम्भ किया था। दुर्भाग्यवश इस समाचारपत्र की केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए और आर्थिक अभाव के चलते 1827 में यह समाचार पत्र बंद भी हो गया किंतु हिंदी पत्रकारिता को हथियार बनाकर स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज चुका था।
आज यदि हम हिंदी पत्रकारिता के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहे हैं तो हमें यह भी अवश्य जानना चाहिए कि1826 से लेकर 2023 तक के इस सफर में पत्रकारिता जगत और एक पत्रकार की कार्यशैली में क्या क्या परिवर्तन आया है! प्रारंभ से लेकर वर्तमान सफर की यात्रा के दृष्टिगत हिंदी पत्रकारिता का संघर्ष आज भी जारी है। स्वाधीनता की अपेक्षाओं के गर्भ से उत्पन्न हुई हिंदी पत्रकारिता आज उपेक्षाओं का शिकार होने लगी है और इसका मुख्य कारण मिशन से व्यवसाय में परिवर्तित होना है। निष्पक्ष पत्रकारिता अप्रत्यक्ष रूप से निजी स्वार्थों की पूर्ति के साधन बन चुका है। हिंदी पत्रकारिता का मूल उद्देश्य लोकतांत्रिक व्यवस्था वास्तविक स्वरूप उजागर करने के साथ साथ सामाजिक सरोकार भी है किंतु वर्तमान परिस्थितियों में पत्रकारिता व पत्रकार अपने मूल उद्देश्य से भटक रहे हैं।
पत्रकारिता का यह स्वरूप दिल्ली से देहात तक की वर्तमान पत्रकारिता में देखा जा सकता है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पत्रकारिता को हम व्ययसाय न बना कर एक विधा के रूप में सम्पूर्ण विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करें। सूचना एकत्रित करना केवल मात्र पत्रकारिता का उद्देश्य नही है बल्कि समाज से पहले ज्ञान और विविध प्रकार की जानकारियां हासिल करके समाज को शिक्षित करने और उचित मार्ग निर्देशन की विधा ही हिंदी पत्रकारिता का सही स्वरूप है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अशिक्षा, धार्मिक उन्माद, दंगा फसाद, रिश्वतखोरी, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध मुखर होना हिन्दी पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए। जिस दौरान हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ उस समय समाज में राष्ट्रीय चेतना की आवश्यकता थी समाज मे देशप्रेम की भावना जागृत करने में पत्रकारिता का अतुल्य योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत हिंदुस्तानियों के हित के हेत उद्देश्य से हुई थी उसी उद्देश्य की पूर्ति हेतू वर्तमान के परिदृश्य में भी हिंदी पत्रकारिता भीष्मपितामह की भूमिका निभा रही है।
आधुनिकता की प्रतिस्पर्धा के दौर में भी हिंदी पत्रकारिता स्वंम के अस्तित्व को बचाए रखने में सक्षम दिखाई दे रही है और यह हिंदी पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए गर्व की बात है। सर्वेक्षण के अनुसार देश में पंजीकृत प्रकाशनों की संख्या अन्य भाषाओं के समाचार पत्रों के तुलनात्मक हिंदी समाचार पत्रो की पंजीकृत संख्या सबसे अधिक होना, हिन्दी पत्रकारिता की सफलता व सार्थकता का जीवंत प्रमाण माना जा सकता है परन्तु इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि हिन्दी पत्रकारिता के अस्तित्व के लिए कार्य करने की आवश्यकता नहीं है अपितु हिंदी पत्रकारिता को और अधिक प्रखर व सशक्त बनाने के लिए पत्रकार जगत में कार्य कर रहे लोगों को आगे आना होगा।
हिन्दी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष में पत्रकार जगत से जुड़े महानुभावों को यह प्रण लेना होगा कि जिस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम में स्वाधीनता के उद्देश्य से हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभ हुआ था,इसी प्रकार वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सच्चाई से ओतप्रोत, निर्भिक, निस्वार्थ भाव की पत्रकारिता करके स्वस्थ व सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने का सकारात्मक प्रयास करें तदुपरांत ही आज के दिवस अर्थात हिंदी पत्रकारिता दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब