मजदूर दिवस: एक दिन सम्मान, साल भर अपमान

Labor Day: Respect for one day, disrespect for the whole year

मजदूर दिवस केवल एक तारीख नहीं, श्रमिकों की मेहनत, संघर्ष और हक की पहचान है। 1 मई को मनाया जाने वाला यह दिन उस आंदोलन की याद है जिसने काम के सीमित घंटे, सम्मानजनक वेतन और श्रम अधिकारों की लड़ाई लड़ी। लेकिन भारत जैसे देशों में मजदूर आज भी असंगठित, असुरक्षित और उपेक्षित हैं। महिला श्रमिकों की स्थिति और भी दयनीय है। एक दिन की प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि से आगे बढ़कर हमें हर दिन श्रमिकों को सम्मान, सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। तभी मजदूर दिवस वास्तव में सार्थक होगा।

प्रियंका सौरभ

हर वर्ष 1 मई को मनाया जाने वाला मजदूर दिवस, श्रमिकों के संघर्ष, बलिदान और अधिकारों की रक्षा का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि समाज की नींव उन हाथों से बनती है जो दिन-रात मेहनत करते हैं। लेकिन क्या हम सच में इन मेहनतकशों को वह सम्मान और अधिकार देते हैं, जिसके वे हकदार हैं? क्या यह सिर्फ एक दिन का प्रतीक बनकर रह गया है या फिर इसका सार्थकता का कार्य पूरे वर्ष में होना चाहिए?

मजदूर दिवस की शुरुआत 1886 में शिकागो, अमेरिका से हुई थी। उस समय श्रमिकों ने 8 घंटे काम के दिन की मांग को लेकर आंदोलन किया। इस संघर्ष में कई श्रमिकों की जान गई, और यह घटना ‘हेमार्केट कांड’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके बाद, 1889 में पेरिस में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। भारत में, यह दिन पहली बार 1923 में मद्रास (अब चेन्नई) में मनाया गया। तब से लेकर आज तक, मजदूर दिवस श्रमिकों के अधिकारों और उनके संघर्ष की याद दिलाने का दिन बना हुआ है।

भारत में श्रमिकों की स्थिति अब भी चिंताजनक है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, भारत में बेरोजगारी की दर अप्रैल 2024 में बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गई है। इसके अलावा, भारत में लगभग 43 करोड़ लोग दिहाड़ी मजदूरी या कृषि कार्यों में लगे हुए हैं, जो असुरक्षित और अनौपचारिक श्रमिक माने जाते हैं। यह असुरक्षा उनके जीवन को एक कठिन संघर्ष बना देती है, क्योंकि वे किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा या भविष्य की गारंटी के बिना काम करते हैं।

भारत में श्रमिकों के अधिकारों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मजदूरों की औसत मासिक कमाई 10,000 से 20,000 रुपये के बीच है, जो अमेरिकी मजदूरों की तुलना में काफी कम है। इसके अलावा, श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और स्थिर रोजगार की कमी है। विशेष रूप से महिला श्रमिकों को समान वेतन, मातृत्व अवकाश और यौन उत्पीड़न से सुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

भारत में लाखों श्रमिकों का पंजीकरण नहीं होता, जिसके कारण वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। अगर श्रमिकों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए, तो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सकता है। इससे सरकार को श्रमिकों की सही संख्या का भी पता चलेगा और उनके लिए योजनाओं का संचालन और भी बेहतर हो सकेगा।

श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार किया जाना चाहिए। इसमें स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य योजनाएं शामिल हो सकती हैं। यदि श्रमिकों को इन योजनाओं का लाभ मिलता है, तो उनके जीवन में स्थिरता और सुरक्षा आ सकती है।

श्रमिकों को कौशल विकास के अवसर प्रदान किए जाएं, ताकि वे बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकें। खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसर मिलें, जिससे उनका रोजगार और जीवनस्तर बेहतर हो सके।

महिला श्रमिकों के लिए विशेष सुरक्षा उपायों और समान वेतन की गारंटी दी जाए। इसके लिए विशेष कानूनों और प्रोटोकॉल का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे महिला श्रमिकों को सुरक्षा और सम्मान प्राप्त हो सके।

श्रमिकों के लिए प्रभावी कानूनों का निर्माण और उनके अनुपालन की निगरानी करनी चाहिए। अगर श्रमिकों को उनका कानूनी संरक्षण सही तरीके से मिलता है, तो वे अपने अधिकारों का पालन करवा सकते हैं और बेहतर कार्य परिस्थितियों में काम कर सकते हैं।

भारत में श्रमिक आंदोलनों का इतिहास लंबा और संघर्षपूर्ण रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी श्रमिकों ने अपनी आवाज़ उठाई थी। हालांकि, आजादी के बाद भी श्रमिकों की हालत में ज्यादा सुधार नहीं आया। श्रमिक आंदोलनों ने कई बार सरकारों को जागरूक किया है और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। फिर भी, श्रमिकों की असुरक्षा और अधिकारों की स्थिति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है।

भारत में प्रमुख श्रमिक आंदोलनों में मजदूरों की असुरक्षा, वेतन, और श्रमिक अधिकारों के लिए आंदोलन होते रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1970 के दशक में मुंबई के ‘गेट वे ऑफ इंडिया’ पर हुए श्रमिक आंदोलन ने मजदूरों के हक के लिए आवाज़ उठाई थी। वहीं, 1991 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने का फैसला लिया गया, तो उस समय भी श्रमिकों के अधिकारों के खिलाफ कई विवाद हुए थे।

मजदूर दिवस केवल एक दिन का आयोजन नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक निरंतर संघर्ष का प्रतीक बनना चाहिए। यह दिन श्रमिकों के संघर्ष, बलिदान और अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित है। अगर हम वास्तव में मजदूरों के योगदान का सम्मान करना चाहते हैं, तो हमें उनके अधिकारों का पालन करना होगा, उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन करना होगा और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे। श्रमिकों को उनका हक मिलना चाहिए, उनका सम्मान होना चाहिए, और उनका जीवन बेहतर बने। तभी हम सच्चे अर्थों में मजदूर दिवस को सार्थक बना सकते हैं।

इसलिए, हमें सिर्फ एक दिन मजदूरों को सम्मानित करने से ज्यादा, उनके अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करना होगा। यही मजदूर दिवस का असली उद्देश्य है, और यही हमारी जिम्मेदारी भी है।