“जहां पद नहीं, कर्म बोलते हैं — माकड़ी की जनता ने दिया शिप्रा त्रिपाठी को अमर विदाई-सम्मान”

"Where there is no position, deeds speak - the people of Makdi gave an immortal farewell-honor to Shipra Tripathi"

मनीष कुमार त्यागी

कोंडागांव/माकड़ी, छत्तीसगढ़ : कुछ विदाई समारोह केवल औपचारिक नहीं होते, वे लोकमानस में गूंजते यशस्वी कर्मों के प्रति कृतज्ञता का जीवंत चित्रण होते हैं। ऐसा ही एक स्मरणीय क्षण 30 अप्रैल 2025 को माकड़ी विकासखंड ने देखा, जब महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी शिप्रा त्रिपाठी के शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त होने पर पूरा क्षेत्र भावनाओं से भीग उठा।

एक साधारण विदाई को असाधारण बनाते हुए ग्राम पंचायत माकड़ी, जनप्रतिनिधियों, विभागीय सहयोगियों और ग्रामीणजनों ने उन्हें सादर विदा किया। यह विदाई सम्मान नहीं, बल्कि उस ईमानदार सेवा, करुणामयी व्यवहार और प्रशासनिक निष्ठा के प्रति श्रद्धांजलि थी, जिसे उन्होंने न केवल निभाया, बल्कि आदर्श की ऊंचाई पर प्रतिष्ठित किया।

समारोह में उपस्थित सरपंच रुक्मणी पोयाम, पूर्व जनपद सदस्य लक्ष्मी पोयाम, वरिष्ठ समाजसेवी रामकुमार, प्राचार्य रमेश प्रधान, पार्षद मनीष श्रीवास्तव एवं विभागीय अधिकारीगणों ने अपने उद्गारों में कहा कि “श्रीमती त्रिपाठी जैसे अधिकारी अब विरले ही मिलते हैं, जिनका हर कदम सेवा का पर्याय बन जाता है।”

उनकी विदाई पर, शॉल-श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र और विशेष स्मृति-चिन्ह भेंट किए गए। आभार ज्ञापन प्राचार्य रमेश प्रधान के द्वारा किया गया। अभी बताया गया कि सभी विभागीय सभी कर्मचारी तथा अधिकारियों की ओर से शिप्रा त्रिपाठी के सेवानिवृत्ति के अवसर पर उन्हें विदाई देने हेतु 5 मई को माकड़ी में अलग से एक और विदाई पार्टी भी रखी गई है । निश्चित रूप से यह सहकर्मियों का शिप्रा त्रिपाठी के प्रति स्नेह तथा लगाव को प्रदर्शित करता है।

सहकर्मियों की आंखें नम थीं, क्योंकि उन्होंने केवल एक अधिकारी नहीं, एक स्नेहशील मार्गदर्शक को विदा किया।

श्रीमती त्रिपाठी ने कहा, “यह सम्मान मेरे लिए एक पुरस्कृत पद नहीं, बल्कि एक स्थायी पारिवारिक बंधन जैसा है। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे माकड़ी जैसे आत्मीय स्थान पर कार्य करने का अवसर मिला। आप सभी का स्नेह,सहयोग तथा समर्थन मिला”

उनकी सेवा-यात्रा भानुप्रतापपुर, किलेपाल, दरभा और बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित दुर्गम अंचलों से होती हुई माकड़ी तक आई। जहाँ सुविधाएं कम थीं, वहाँ उन्होंने संसाधनों से नहीं, संकल्प से कार्य किए। उन दिनों जब चारामा से कोंटा तक अविभाजित बस्तर एक ही जिला था शिप्रा त्रिपाठी को जिले की सर्वश्रेष्ठ पर्यवेक्षक का अवार्ड 26 जनवरी के भव्य आयोजन में प्रदान किया गया था। तीन-तीन विषयों में एम.ए. की डिग्री तथा संगीत में विशेष योग्यता हासिल करने के बावजूद उनकी सेवा-शैली में न कोई आडंबर था,न अहंकार और न ही कर्तव्यों से विराम।

श्रीमती त्रिपाठी का व्यक्तित्व सरलता में गरिमा और प्रशासन में जन-संवेदनशीलता का सजीव उदाहरण रहा है। उनके जैसे अधिकारी, सेवानिवृत्त भले हो जाएं, जनता के मन से कभी सेवानिवृत्त नहीं होते।

यह केवल एक ईमानदार सरकारी अधिकारी की विदाई मात्र नहीं थी, यह थी — “कर्तव्य, करुणा और कर्म और इमानदारी की सच्ची वंदना”।