
सुनील कुमार महला
भारत अपनी सैन्य क्षमताओं में लगातार वृद्धि कर रहा है। इस क्रम में यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि भारत और फ्रांस ने हाल ही में राफेन मरीन विमान के ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने इस डील को हरी झंडी भी दिखा दी है। गौरतलब है कि आईजीए पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और फ्रांस के सशस्त्र सेना मंत्री सेबास्टियन लेकोर्नु ने हस्ताक्षर किए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह भारत की फ्रांस के साथ अब तक की सबसे बड़ी डिफेंस डील है, जिसके अंतर्गत भारत, फ्रांस से 26 राफेल मरीन विमान खरीदेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों देशों(भारत-फ्रांस) के बीच यह डील 63000 करोड़ रुपए में साइन की गई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस राफेल डील में हथियार, उपकरण, स्पेयर पार्ट्स और क्रू ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट भी शामिल होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत की फ्रांस से 26 राफेल एम (मरीन) की खरीद के समझौते पर हुए हस्ताक्षर रणनीतिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत और फ्रांस के बीच जो डील(सौदा) हुआ है उसके मुताबिक भारतीय नौसेना को फ्रांस द्वारा 26 राफेल मरीन फाइटर जेट उपलब्ध कराए जायेंगे, तथा इनमें से 22 फाइटर जेट सिंगल-सीटर होंगे। वहीं, नौसेना को चार ट्विन-सीटर वेरिएंट के ट्रेनिंग राफेल विमानों की डिलीवरी भी दी जाएगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत और फ्रांस के बीच यह सौदा ऐसे समय में हुआ है जब भारत ने आतंकवाद के खिलाफ(पहलगाम हमले के बाद) सख्त रुख अपनाया है, जिसके चलते पाकिस्तान में काफी बैचेनी है। पाकिस्तान इन दिनों नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी कर रहा है और भारतीय सेना पाकिस्तान को करारा जवाब दे रही है। इसी बीच भारतीय नौसेना के बेड़े में राफेल विमान शामिल हो जाने से भारत की शक्ति और अधिक बढ़ जाएगी।गौरतलब है यह देश के नौसैनिक बलों के लिए पहला बड़ा लड़ाकू विमान अपग्रेड है। हालाँकि, यह बात अलग है कि अभी इन विमानों की डिलीवरी में कुछ वर्षों का समय लगेगा। जानकारी के अनुसार पहले राफेल (एम) फाइटर जेट की डिलीवरी वर्ष 2028-29 में होगी। इसके बाद वर्ष 2031-32 तक नौसेना को सभी विमानों की आपूर्ति कर दी जाएगी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इन्हें(राफेल विमानों को) मुख्य रूप से, स्वदेशी रूप से निर्मित विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य पर तैनात किए जाएंगे। वास्तव में इन विमानों को युद्ध पोत पर तैनात करने के हिसाब से ही डिजाइन किया गया है तथा फ्रांस की सेना पहले से ही इनका इस्तेमाल कर रही है। इससे (इस सौदे से) जहां एक ओर भारत जहां हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रख सकेगा। वहीं, दूसरी ओर भारत पाकिस्तान की हरकतों का भी मुंहतोड़ जवाब और अधिक शक्ति से दे सकेगा। इन विमानों की सहायता से भारत न केवल पाकिस्तान बल्कि पड़ौसी चीन के नापाक मंसूबों पर भी भारत पानी फेर सकेगा, जैसा कि चीन भी समय समय पर सीमा पर भारत को आंख दिखाता रहता है और घुसपैठ की वारदातों को अंजाम देता रहता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इससे भारतीय नौसेना की समुद्री हमले की क्षमताओं को और अधिक मजबूती मिल सकेगी।गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना के पास भी राफेल विमानों के बेड़े है। वास्तव में, भारत के पास पहले से ही 36 राफेल विमान हैं। पाठकों को बताता चलूं कि साल 2016 में ही इन विमानों के लिए फ्रांस की कंपनी के साथ डील हुई थी तथा भारत की फ्रांस के साथ इस नई डील के बाद भारत में राफेल की संख्या बढ़कर 62 हो जाएगी। आज भारत ‘मेक इन इंडिया’ पर लगातार जोर दे रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि भारत ने पिछले एक दशक में अपनी सैन्य ताकत को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत विकसित किए गए घातक हथियार न केवल भारत की सुरक्षा को मजबूती प्रदान करते हैं, बल्कि पड़ोसी देशों विशेषकर पाकिस्तान और चीन के लिए एक बड़ी चुनौती भी पेश करते हैं। यदि हम यहां पर भारत की स्वदेशी हथियार प्रणालियों की बात करें तो इनमें क्रमशः अग्नि-V मिसाइल( 8,000 किमी तक मार करने की क्षमता),ब्रह्मोस(दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल),एच एसटीडीवी (7 मैक गति वाली हाइपरसोनिक मिसाइल),प्रलय मिसाइल(दुश्मन के बंकरों और कमांड सेंटरों के लिए घातक),निर्भय क्रूज मिसाइल(छुपकर हमला करने में माहिर),के-9 वज्र(स्वचालित तोपों का राजा),पिनाका(बारूद की बारिश करने वाला सिस्टम),अर्जुन टैंक(जमीनी युद्ध का विशेषज्ञ),एंटी-सैटेलाइट मिसाइल( अंतरिक्ष में दबदबा) शामिल हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भारत रक्षा ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ की ओर बढ़ रहा है। आधुनिक हथियारों (अस्त्र-शस्त्र) का निर्माण आज भारत में होने लगा है और भारत इनका निर्यात भी करने लगा है, लेकिन हमारी सैन्य सामग्री की आवश्यकताओं के चलते अब भी अरबों रुपयों की खरीद(हथियारों/विमानों) विदेशों से करना जरूरी है। यही कारण है कि साल 2016 में फ्रांस से 60,000 करोड़ रुपयों में 36 मल्टीरोल राफेल लड़ाकू विमान खरीद लेने के नौ साल बाद अब साल 2025 में भारत ने एक नये रक्षा सौदे के अंतर्गत फ्रांस से ही 26 राफेल एम विमानों की खरीद पर 63,000 करोड़ रुपये खर्च करने का समझौता किया है। वास्तव में,भारतीय पोतों और उनके कार्मिकों की सुरक्षा तथा अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप एवं हजारों मीलों तक फैले तटीय क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना की क्षमता में लगातार वृद्धि जरूरी है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि आज की तारीख में दुनिया के नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं और इन नौ देशों में रूस, अमेरिका, चीन, भारत, पाकिस्तान, फ्रांस, यूके, फ्रांस, इजराइल और उत्तर कोरिया शामिल हैं। एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में छपी एक खबर के अनुसार ग्लोबल फायरपावर 2025 के अनुसार, दुनिया के 145 शक्तिशाली देशों की सूची में चीन तीसरे स्थान पर है, वहीं भारत का स्थान चौथा है। यहां पर यदि हम आंकड़ों की बात करें तो भारतीय सेना के पास 4201 टैंक हैं। वहीं, चीनी सेना के पास 6800 टैंक हैं।भारतीय सेना के पास 148594 आर्मर्ड व्हीकल हैं। वहीं, चीनी सेना के पास 144017 आर्मर्ड व्हीकल हैं।भारतीय सेना के पास 3975 टो आर्टिलरी हैं। वहीं, चीनी सेना के पास 1000 टो आर्टिलरी हैं।भारतीय सेना के पास 264 रॉकेट लॉन्चर हैं। वहीं, चीनी सेना के पास 2750 रॉकेट लॉन्चर हैं।भारतीय सेना के पास 264 रॉकेट लॉन्चर हैं। वहीं, चीनी सेना के पास 2750 रॉकेट लॉन्चर हैं।भारतीय वायुसेना के पास कुल विमानों की संख्या 2229 है। वहीं, चीनी वायुसेना के कुल विमानों की संख्या 3309 है। हिंदी दैनिक लिखता है कि भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों की संख्या 513 है। वहीं, चीनी वायुसेना में लड़ाकू विमानों की संख्या 1212 है।भारतीय वायुसेना में हमलावर विमानों की संख्या 130 है। वहीं, चीनी वायुसेना में हमलावर विमानों की संख्या 371 है।भारतीय नौसेना की फ्लीट स्ट्रेंथ 293 है। वहीं, चीनी नौसेना की फ्लीट स्ट्रेंथ 754 है।भारतीय नौसेना के पास 18 पनडुब्बियां हैं। वहीं, चीनी नौसेना के पास 61 पनडुब्बियां हैं।भारतीय नौसेना के पास 13 विध्वंसक हैं। वहीं, चीनी नौसेना के पास 50 विध्वंसक हैं। जाहिर है कि यह खाई पाटना कोई एकाध दिन की बात नहीं है। भारत को विभिन्न स्तरों पर इसके लिए प्रयास करना है। इस दृष्टि से भारत का फ्रांस से राफेल एम की खरीद का निर्णय सामरिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण व बड़ा कदम है। हम सभी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत की सैन्य क्षमता पाकिस्तान के मुकाबले पहले से ही बहुत मजबूत है, लेकिन आज की स्थितियों में भारत को अपनी सैन्य क्षमता इसलिए भी बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत अनेक मोर्चों पर आज चीन की विस्तारवादी नीतियों और पाकिस्तान की साम्प्रदायिकता मानसिकता की ताकतों का लगातार मुकाबला कर रहा है। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर में चीन की गतिविधियां, विशेष रूप से उसकी नौसैनिक और रणनीतिक उपस्थिति, काफी बढ़ रही हैं। पाठक जानते होंगे कि जब श्रीलंका आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था, उस समय हंबनटोटा को 99 साल के लिए चीन को पट्टे पर दिया जाने ने यह दिखाया कि बीजिंग किस तरह से बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन को कड़ा संदेश देने की दृष्टि से भी भारत को अत्याधुनिक हथियारों की संख्या बढ़ाने की आज आवश्यकता है। गौरतलब है कि चीन म्यांमार में क्यौकप्यू में एक गहरे समुद्र बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। यह परियोजना भारत के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है क्योंकि यह चीन के ‘मोतियों की माला’ रणनीति के तहत बनाई जा रही है, जिसका उद्देश्य भारत को घेरना है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि ‘मोतियों की माला’ के तहत चीन भारत के आसपास के देशों में बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि चीन पहले ही पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में निवेश कर चुका है। इतना ही नहीं, चीन द्वारा मालदीव के मराओ अटोल में भी बंदरगाह का निर्माण किया गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इससे चीनी नौसेना की उपस्थिति से भारत की तटीय सुरक्षा पर कहीं न कहीं चिंता पैदा हुई है। अत: वर्तमान में भारत की फ्रांस के साथ यह राफेल डील बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी थी। निश्चित ही इस डील से भारत रक्षा के क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान को कड़ी टक्कर (यदि जरूरत पड़ती है तो) दे सकेगा। हालांकि भारत हमेशा शांति, संयम और सौहार्द को तवज्जो देता आया है और वह पंचशील के सिद्धांतों (एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना,आक्रामक कार्रवाई से बचना,एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना,समानता और पारस्परिक लाभ की नीति तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व)में विश्वास करता है।